संकष्टी चतुर्थी व्रत 2025

संकष्टी चतुर्थी 2025
संकष्टी चतुर्थी
10
सितंबर 2025
बुधवार
भगवान गणेश और चंद्रोदय
संकष्टी चतुर्थी
चतुर्थी तिथि प्रारंभ10 सितंबर 2025, सुबह 04:54 बजे

चतुर्थी तिथि समाप्त11 सितंबर 2025, सुबह 05:10 बजे

चंद्रोदय का समय10 सितंबर 2025, रात 08:31 बजे

यह चतुर्थी बुधवार को पड़ने के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है, क्योंकि बुधवार का दिन स्वयं भगवान गणेश को समर्पित है।

हर माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। यह दिन भगवान गणेश को समर्पित है और इस दिन विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं। बुधवार, 10 सितंबर 2025 को संकष्टी चतुर्थी है। इस दिन का व्रत और पूजा आपके जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य ला सकते हैं। आइए, जानते हैं इस शुभ दिन के महत्व, पूजा विधि और नियमों के बारे में।

🙏 संकष्टी चतुर्थी का महत्व

‘संकष्टी’ शब्द का अर्थ है “संकटों को हरने वाला”। इस दिन व्रत रखने और गणेश जी की पूजा करने से जीवन के सभी दुख, बाधाएं और संकट दूर होते हैं। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायी माना जाता है, जो किसी भी प्रकार की परेशानी से गुजर रहे हों। भगवान गणेश को बुद्धि, ज्ञान और सौभाग्य का देवता माना जाता है। इस दिन उनकी आराधना करने से शिक्षा, करियर और पारिवारिक जीवन में सफलता मिलती है। चूंकि यह चतुर्थी बुधवार के दिन पड़ रही है, जो स्वयं गणेश जी का दिन माना जाता है, इसलिए इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

📜 पूजा विधि

संकष्टी चतुर्थी का व्रत और पूजा बहुत ही सरल होती है, जिसे आप घर पर आसानी से कर सकते हैं।

  1. सुबह की तैयारी: व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूरे घर की साफ-सफाई करें और पूजा का संकल्प लें।
  2. पूजा की चौकी: घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में एक चौकी स्थापित करें। उस पर लाल या पीला कपड़ा बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र रखें।
  3. पूजा सामग्री: गणेश जी को दूर्वा घास, मोदक या लड्डू, रोली, अक्षत, फूल, चंदन, और एक दीपक अर्पित करें।
  4. पूजा प्रारंभ: गणेश जी की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं, फिर उन्हें तिलक लगाएं। इसके बाद फूल और दूर्वा घास अर्पित करें।
  5. कथा और मंत्र: अब गणेश जी के सामने दीपक जलाकर संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें। इस दौरान **”ॐ गं गणपतये नमः”** मंत्र का जाप करना बहुत शुभ होता है।
  6. भोग और आरती: पूजा के बाद गणेश जी को मोदक या लड्डू का भोग लगाएं। अंत में कपूर या घी के दीपक से आरती करें।
  7. चंद्र दर्शन: यह व्रत चंद्र दर्शन के बिना अधूरा माना जाता है। रात में चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को जल, दूध, फूल और अक्षत मिलाकर अर्घ्य दें। अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण करें।

🎨 गणेश जी को क्यों प्रिय हैं लाल रंग और मोदक?

भगवान गणेश की पूजा में कुछ चीजें विशेष रूप से अर्पित की जाती हैं, क्योंकि वे उन्हें अत्यंत प्रिय हैं। इनमें लाल रंग और मोदक प्रमुख हैं।

  • लाल रंग: लाल रंग शक्ति, ऊर्जा, और शुभता का प्रतीक माना जाता है। यह मंगल ग्रह से भी संबंधित है, जो सभी बाधाओं को दूर करने का कार्य करता है। यही कारण है कि गणेश जी को लाल वस्त्र, लाल फूल और लाल चंदन अर्पित किया जाता है।
  • मोदक: मोदक भगवान गणेश का सबसे प्रिय भोग है। मोदक का बाहरी हिस्सा कठोर होता है और अंदर की फिलिंग मीठी होती है, जो इस बात का प्रतीक है कि ज्ञान और सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है, लेकिन उसका फल अत्यंत मीठा और आनंदमय होता है।

🌟 गणेश जी के अन्य नाम

भगवान गणेश को उनके गुणों और रूपों के आधार पर कई नामों से जाना जाता है। उनके कुछ प्रमुख नाम और उनके अर्थ इस प्रकार हैं:

  • विघ्नहर्ता: सभी बाधाओं और विघ्नों को हरने वाले।
  • एकदंत: एक दांत वाले, यह नाम उनकी एक पौराणिक कथा से जुड़ा है।
  • गजानन: हाथी के मुख वाले।
  • लंबोदर: बड़े पेट वाले, जो सभी ब्रह्मांड को अपने अंदर समाहित किए हुए हैं।
  • हेडम्ब: जिसका अर्थ है, जो सबसे पहले पूजे जाते हैं।

🐘 गणेश जी का स्वरूप और उनका महत्व

भगवान गणेश के प्रत्येक अंग का अपना एक प्रतीकात्मक और गहरा आध्यात्मिक महत्व है।

  • बड़ा सिर: यह ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है, जो यह सिखाता है कि हमें हमेशा बड़ा सोचना चाहिए।
  • बड़े कान: यह दर्शाता है कि हमें सभी की बातों को ध्यान से सुनना चाहिए, लेकिन केवल ज्ञान की बातों को ही ग्रहण करना चाहिए।
  • छोटी आंखें: छोटी आंखें एकाग्रता और सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक हैं।
  • लंबी सूंड: सूंड लचीलेपन और दक्षता का प्रतीक है, जो यह सिखाता है कि हमें किसी भी परिस्थिति में ढलने के लिए तैयार रहना चाहिए।
  • छोटा मुँह: यह बताता है कि हमें कम और सोच-समझकर बोलना चाहिए।
  • बड़ा पेट: बड़ा पेट सभी अच्छी और बुरी बातों को अपने अंदर समाहित करने की क्षमता का प्रतीक है, जो हमें सहनशीलता और धैर्य का पाठ पढ़ाता है।
  • चूहा (वाहन): चूहा अहंकार और लालच का प्रतीक है। गणेश जी का उस पर विराजमान होना यह दर्शाता है कि उन्होंने अहंकार पर विजय प्राप्त कर ली है।

🎶 गणेश जी के शक्तिशाली मंत्र और उनके लाभ

भगवान गणेश की पूजा में मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। यहां कुछ प्रमुख मंत्र और उनके लाभ दिए गए हैं:

  • ॐ गं गणपतये नमः: यह गणेश जी का सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार के विघ्न दूर होते हैं और कार्यों में सफलता मिलती है।
  • वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥: यह मंत्र किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले जपा जाता है। इसका जाप करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्य बिना किसी रुकावट के पूरा होता है।
  • ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा: इस मंत्र को “गणेश कुबेर मंत्र” भी कहा जाता है। इसका जाप करने से धन-समृद्धि, सफलता और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • गणेश अथर्वशीर्ष: यह गणेश जी को समर्पित एक विशेष स्तोत्र है। इसका पाठ करने से जीवन के सभी दुख, रोग और परेशानियां दूर होती हैं, और व्यक्ति को ज्ञान, धन और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

📖 गणेश जी का जन्म: एक पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने स्नान के लिए जाने से पहले अपने शरीर के उबटन से एक बालक की प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस बालक को द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया और कहा कि किसी को भी अंदर न आने दें।

जब भगवान शिव वहां आए तो बालक ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया। बालक के हठ से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती बाहर आईं और अपने पुत्र को मृत देखा तो वे बहुत दुखी और क्रोधित हुईं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा में जाएं और जो भी पहला जीवित प्राणी मिले, उसका सिर ले आएं। गणों को एक हाथी का बच्चा मिला और वे उसका सिर ले आए। भगवान शिव ने उस हाथी के बच्चे के सिर को बालक के धड़ से जोड़ा और उसे फिर से जीवित कर दिया।

तभी से उस बालक को हाथी के सिर के कारण ‘गजानन’ कहा जाने लगा और भगवान शिव ने उसे यह वरदान दिया कि किसी भी शुभ कार्य से पहले उसकी ही पूजा की जाएगी।

📍 गणेश जी के प्रमुख मंदिर

भारत में भगवान गणेश के कई प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर हैं, जहां भक्तगण दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं। ये मंदिर आस्था और वास्तुकला के अद्भुत संगम हैं।

  • सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई: महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में स्थित यह मंदिर सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक है। यहां की मूर्ति की सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है।
  • दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर, पुणे: पुणे का यह मंदिर अपनी भव्यता और सुंदर सजावट के लिए जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दौरान यहां की रौनक देखने लायक होती है।
  • रणथंभौर गणेश मंदिर, राजस्थान: राजस्थान के रणथंभौर किले के भीतर स्थित यह मंदिर त्रिनेत्र गणेश के लिए प्रसिद्ध है। यहां भक्त अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए गणेश जी को पत्र लिखते हैं।
  • मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर: जयपुर में एक पहाड़ी पर स्थित यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1761 में हुआ था।
  • खजराना गणेश मंदिर, इंदौर: मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में स्थित यह मंदिर 1735 में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा बनवाया गया था।

व्रत के नियम: क्या करें और क्या न करें

क्या करें:

  • दिन भर फलाहार पर रहें या साबूदाना, आलू, सिंघाड़े के आटे का सेवन करें।
  • व्रत के दौरान जल का सेवन कर सकते हैं।
  • व्रत खोलने के लिए चंद्र दर्शन और अर्घ्य के बाद ही भोजन करें।
  • पूरा दिन सात्विक और सकारात्मक सोच रखें।

क्या न करें:

  • प्याज, लहसुन, मांस-मदिरा का सेवन बिल्कुल न करें।
  • व्रत के दौरान किसी का अपमान न करें और किसी से झगड़ा न करें।
  • झूठ बोलने या अपशब्दों का प्रयोग करने से बचें।

📖 कथा: क्यों मनाया जाता है यह व्रत?

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती और भगवान शिव चौसर खेल रहे थे। खेल में कौन जीतेगा, इसका निर्णय करने के लिए उन्होंने एक मिट्टी की प्रतिमा बनाई और उसमें प्राण डालकर उससे पूछा कि कौन जीतेगा। उस बालक ने भगवान शिव का नाम लिया, जिससे माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को श्राप दे दिया कि वह एक अपाहिज बन जाएगा और अपने स्थान पर ही पड़ा रहेगा। तब बालक ने अपनी भूल स्वीकार करते हुए उनसे क्षमा मांगी। माता पार्वती ने कहा कि श्राप वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन एक उपाय है। उन्होंने बताया कि जब भी संकष्टी चतुर्थी आएगी, तो उस दिन पूजा और व्रत करने से तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। बालक ने ऐसा ही किया और उसे श्राप से मुक्ति मिल गई। तभी से इस व्रत का महत्व बढ़ गया और यह माना जाता है कि इस व्रत को करने से सभी संकट दूर होते हैं।

🎁 दान का महत्व

संकष्टी चतुर्थी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को अन्न, वस्त्र या धन दान करने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं और शुभ फल देते हैं।

इस तरह, बुधवार, 10 सितंबर 2025 को संकष्टी चतुर्थी का व्रत करके आप भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन के सभी संकटों से मुक्ति पा सकते हैं।

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