सिंह संक्रांति 2025
सूर्य का सिंह राशि में प्रवेश – 17 अगस्त 2025 को सुबह लगभग 02:00 बजे (भारतीय समयानुसार)।
पुण्यकाल (स्नान-दान का शुभ समय) – सूर्य गोचर के आसपास का समय (स्थानीय पंचांग अनुसार)
सूर्य का राशि परिवर्तन हिंदू धर्म और ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसे ‘संक्रांति’ के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक माह सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इसी क्रम में, रविवार, 17 अगस्त 2025 को सूर्य देव अपनी ही राशि सिंह में गोचर करेंगे, जिसे सिंह संक्रांति के रूप में मनाया जाएगा। यह गोचर न केवल ज्योतिषीय रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी इसका गहरा महत्व है।
आइये, इस पावन पर्व के बारे में विस्तार से जानते हैं।
सिंह संक्रांति का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
सिंह राशि का स्वामी ग्रह स्वयं सूर्य है, जो साहस, आत्मविश्वास, नेतृत्व और यश का प्रतीक है। जब सूर्य अपनी स्वराशि में आते हैं, तो उनकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है।
- ग्रहों के राजा का अपनी शक्ति में आना: सूर्य को सौरमंडल का राजा और आत्मा का कारक माना जाता है। सिंह राशि में उनका प्रवेश सभी राशियों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, खासकर उन लोगों के लिए जो नेतृत्व, राजनीति, या सरकारी कार्यों से जुड़े हैं।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार: यह समय आत्मविश्वास, साहस और रचनात्मकता को बढ़ावा देने वाला माना जाता है। इस अवधि में किए गए कार्य सफल होते हैं और व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में अधिक सक्षम महसूस करता है।
- धार्मिक महत्व: सिंह संक्रांति का दिन भगवान सूर्य देव की उपासना के लिए समर्पित है। इस दिन दान-पुण्य, पवित्र नदियों में स्नान और सूर्य पूजा का विशेष फल प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इससे व्यक्ति को आरोग्य, धन और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
सिंह संक्रांति पर क्या करें? (पूजा विधि और शुभ कार्य)
सिंह संक्रांति पर निम्नलिखित कार्यों को करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
- पवित्र स्नान: संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- सूर्य देव को अर्घ्य: स्नान के बाद तांबे के लोटे में जल, लाल फूल, अक्षत और थोड़ी सी रोली मिलाकर उगते हुए सूर्य को ‘ॐ घृणि सूर्याय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए अर्पित करें।
- आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ: सूर्य देव की कृपा पाने के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना बहुत ही लाभकारी होता है।
- दान-पुण्य: इस दिन अपनी क्षमतानुसार गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन और मसूर की दाल का दान करें। ये वस्तुएं सूर्य से संबंधित मानी जाती हैं।
- पितरों का तर्पण: कई जगहों पर इस दिन पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म भी किए जाते हैं। इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- गाय को भोजन: इस दिन गाय को हरा चारा खिलाना भी शुभ माना जाता है।
निष्कर्ष
सिंह संक्रांति का पर्व हमें सूर्य देव की दिव्य ऊर्जा और उनके महत्व की याद दिलाता है। यह दिन दान, पुण्य और उपासना के माध्यम से जीवन में सकारात्मकता, आत्मविश्वास और सफलता लाने का एक सुनहरा अवसर है। तो, आइए इस सिंह संक्रांति पर सूर्य देव की आराधना करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें!
सिंह संक्रांति से जुड़ी कुछ और रोचक बातें
उत्तराखंड में घी संक्रांति (Ghee Sankranti) के रूप में
उत्तराखंड में सिंह संक्रांति को **”घी संक्रांति”** के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन स्थानीय लोग घी का सेवन करते हैं और एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। यह माना जाता है कि इस दिन घी का सेवन करने से बुद्धि, स्मरण शक्ति और स्वास्थ्य में सुधार होता है। स्थानीय लोग इस दिन एक-दूसरे के सिर पर और पैरों में घी लगाते हैं। यह त्योहार कृषि और पशुधन से जुड़ा हुआ है।
मासिक संक्रांति का महत्व
हर महीने सूर्य की राशि बदलने से जो संक्रांति आती है, उसका अपना एक विशेष नाम और महत्व होता है। जैसे मकर संक्रांति (जनवरी), मेष संक्रांति (अप्रैल), और सिंह संक्रांति (अगस्त)। ये सभी संक्रांतियां सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति के साथ हमारे संबंधों को दर्शाती हैं। सिंह संक्रांति विशेष रूप से बारिश के मौसम (मानसून) के बीच में आती है, जिससे यह कृषि के लिए भी एक महत्वपूर्ण समय होता है।
ज्योतिषीय प्रभाव
सिंह राशि में सूर्य का गोचर सभी 12 राशियों पर अलग-अलग प्रभाव डालता है। सिंह राशि के लोग, जिनके लिए यह गोचर सीधे उनके लग्न में होता है, विशेष रूप से मजबूत और ऊर्जावान महसूस करते हैं। यह उनके आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता को बढ़ाता है। अन्य राशियों के लिए, यह गोचर उनके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे कि करियर, परिवार, या स्वास्थ्य में बदलाव ला सकता है।
सूर्य और सिंह का संबंध
ज्योतिष में, सूर्य को सिंह राशि का स्वामी माना जाता है। सूर्य का सिंह राशि में होना एक राजा का अपने महल में लौटने जैसा है। इस दौरान सूर्य सबसे शक्तिशाली होता है। यह अवधि नेतृत्व, सम्मान और सरकारी कार्यों से जुड़े मामलों में सफलता ला सकती है।
दान का विशेष फल
इस दिन दान का विशेष महत्व है। दान करने से सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है। सूर्य से संबंधित वस्तुएं, जैसे **गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र और तांबे के बर्तन**, का दान करना सबसे उत्तम माना जाता है।
ये सभी बिंदु सिंह संक्रांति को केवल एक ज्योतिषीय घटना से कहीं अधिक एक सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व बनाते हैं, जिसका जीवन के कई पहलुओं पर प्रभाव पड़ता है।
संक्रांति के बारे में कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य
संक्रांति और मौसम का संबंध
संक्रांति सिर्फ ज्योतिषीय घटना नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध मौसम और कृषि चक्र से भी है।
- मकर संक्रांति (14-15 जनवरी): यह पर्व सर्दी के मौसम के अंत और फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक है।
- मेष संक्रांति (14-15 अप्रैल): यह हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है और बसंत ऋतु के आगमन को दर्शाता है।
- कर्क संक्रांति (16-17 जुलाई): इसे दक्षिणायन की शुरुआत माना जाता है, जब सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं। इस अवधि को देवताओं के लिए रात्रि काल माना जाता है।
- सिंह संक्रांति (17 अगस्त): यह मानसून के बीच में आती है और कृषि के लिए महत्वपूर्ण समय होता है।
उत्तर और दक्षिण में अलग-अलग नाम
पूरे भारत में संक्रांति को अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
- उत्तर भारत: मकर संक्रांति को ‘खिचड़ी’ (उत्तर प्रदेश), ‘लोहड़ी’ (पंजाब), ‘माघी’ (हरियाणा) के नाम से जाना जाता है।
- दक्षिण भारत: इसे ‘पोंगल’ (तमिलनाडु), ‘संक्रांति’ (आंध्र प्रदेश, कर्नाटक) के रूप में मनाया जाता है।
- असम: ‘बिहू’ के रूप में।
- पश्चिम बंगाल: ‘पौष संक्रांति’ के रूप में।
ज्योतिषीय गणना
प्रत्येक संक्रांति का समय बहुत सटीक होता है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में गोचर का समय, जिसे ‘संक्रांति काल’ कहते हैं, पंचांग के अनुसार तय होता है। इसी समय में स्नान, दान और पूजा-पाठ करना सबसे शुभ माना जाता है।
संक्रांति और दान का महत्व
हर संक्रांति पर विशेष वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता है, जो सूर्य के साथ-साथ उस राशि के ग्रह से भी संबंधित होती हैं। जैसे:
- मकर संक्रांति: तिल, गुड़ और खिचड़ी का दान।
- सिंह संक्रांति: गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन।
संक्रांति का वैज्ञानिक पहलू
संक्रांति को खगोलीय घटना (सूर्य का राशि परिवर्तन) के रूप में देखा जाता है। इस समय ग्रहों की स्थिति और उनकी ऊर्जा में बदलाव आता है, जिसका पृथ्वी और उस पर रहने वाले जीवों पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। यह परंपरा प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान की गहराई को भी दर्शाती है।
संक्रांति के बारे में कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य
विभिन्न राज्यों में संक्रांति की परंपराएं
पूरे भारत में संक्रांति को अलग-अलग नामों और अनूठी परंपराओं के साथ मनाया जाता है। ये त्योहार अक्सर फसल कटाई के मौसम और प्रकृति के प्रति आभार से जुड़े होते हैं।
- उत्तराखंड में घी संक्रांति: उत्तराखंड में सिंह संक्रांति को ‘घी संक्रांति’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग घी का सेवन करते हैं और एक-दूसरे के सिर पर और पैरों में घी लगाते हैं, जिससे बुद्धि और स्वास्थ्य में सुधार होने की मान्यता है।
- राजस्थान में निर्माता संक्रांति: राजस्थान में इसे ‘निर्माता संक्रांति’ कहते हैं। इस दिन विशेष राजस्थानी व्यंजन बनाए जाते हैं और विवाहित महिलाएं 13 अन्य विवाहित महिलाओं को उपहार देती हैं।
- उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी: उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति को ‘खिचड़ी’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने का विशेष महत्व है। प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर लगने वाले माघ मेले की शुरुआत भी इसी दिन से होती है।
- तमिलनाडु में पोंगल: तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मकर संक्रांति को चार दिनों तक चलने वाले फसल उत्सव ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और पारंपरिक पकवान ‘पोंगल’ बनाया जाता है।
- गुजरात में उत्तरायण: गुजरात में मकर संक्रांति को ‘उत्तरायण’ कहते हैं और यह दो दिनों तक मनाया जाता है। इस अवसर पर यहाँ अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें दुनियाभर के लोग हिस्सा लेते हैं।
- पंजाब में लोहड़ी और माघी: पंजाब में मकर संक्रांति से एक रात पहले ‘लोहड़ी’ मनाई जाती है। संक्रांति के दिन को ‘माघी’ कहते हैं, जिसमें पवित्र नदी में स्नान करने और तिल के तेल का दीपक जलाने का महत्व है।
संक्रांति का वैज्ञानिक और पौराणिक महत्व
- उत्तरायण और दक्षिणायन: मकर संक्रांति से सूर्य की ‘उत्तरायण’ गति शुरू होती है, यानी सूर्य दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्ध की ओर बढ़ना शुरू करता है। इस अवधि को देवताओं का दिन और सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है, जबकि कर्क संक्रांति से शुरू होने वाले ‘दक्षिणायन’ को देवताओं की रात्रि माना जाता है।
- पौराणिक कथाएं: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते हैं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग करने के लिए इसी दिन का चयन किया था। यह भी माना जाता है कि इसी दिन गंगा नदी भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से सागर में मिली थीं।
ये सभी परंपराएं संक्रांति को एक ऐसा पर्व बनाती हैं जो पूरे भारत को एक सूत्र में बांधता है, भले ही इसे अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता हो।
साल 2025 की सभी संक्रांति की लिस्ट
| क्रम संख्या | संक्रांति का नाम | तिथि | दिन | सूर्य का राशि परिवर्तन |
|---|---|---|---|---|
| 1. | **मकर संक्रांति** | 14 जनवरी 2025 | मंगलवार | धनु से मकर राशि में |
| 2. | **कुंभ संक्रांति** | 12 फरवरी 2025 | बुधवार | मकर से कुंभ राशि में |
| 3. | **मीन संक्रांति** | 14 मार्च 2025 | शुक्रवार | कुंभ से मीन राशि में |
| 4. | **मेष संक्रांति** | 14 अप्रैल 2025 | सोमवार | मीन से मेष राशि में |
| 5. | **वृषभ संक्रांति** | 15 मई 2025 | गुरुवार | मेष से वृषभ राशि में |
| 6. | **मिथुन संक्रांति** | 15 जून 2025 | रविवार | वृषभ से मिथुन राशि में |
| 7. | **कर्क संक्रांति** | 16 जुलाई 2025 | बुधवार | मिथुन से कर्क राशि में |
| 8. | **सिंह संक्रांति** | 17 अगस्त 2025 | रविवार | कर्क से सिंह राशि में |
| 9. | **कन्या संक्रांति** | 17 सितंबर 2025 | बुधवार | सिंह से कन्या राशि में |
| 10. | **तुला संक्रांति** | 17 अक्टूबर 2025 | शुक्रवार | कन्या से तुला राशि में |
| 11. | **वृश्चिक संक्रांति** | 16 नवंबर 2025 | रविवार | तुला से वृश्चिक राशि में |
| 12. | **धनु संक्रांति** | 16 दिसंबर 2025 | मंगलवार | वृश्चिक से धनु राशि में |
- यह सभी तिथियां भारतीय पंचांग और ज्योतिषीय गणना पर आधारित हैं।
- संक्रांति का समय (मुहूर्त) अलग-अलग स्थानों के लिए थोड़ा भिन्न हो सकता है। सटीक जानकारी के लिए आप अपने स्थानीय पंचांग का उपयोग कर सकते हैं।