परिवर्तिनी एकादशी 2025
एकादशी समाप्त: 04 सितंबर 2025, 04:21 ए एम बजे तक
पारण (व्रत तोड़ने का समय): 04 सितंबर 2025, सुबह 01:35 पी एम से 04:02 पी एम तक
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 03 सितंबर 2025 को रखा जाएगा।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रत्येक एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित होती है और भक्तों को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करती है। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे वामन एकादशी, पार्श्व एकादशी और जयझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह वह विशेष दिन है जब भगवान विष्णु क्षीरसागर में अपनी शयन मुद्रा बदलते हैं, इसलिए इसे ‘परिवर्तिनी’ कहा जाता है।
✨ परिवर्तिनी एकादशी का महत्व:
- भगवान विष्णु की करवट बदलना: यह एकादशी चातुर्मास के मध्य में आती है, और इस दिन भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं। यह सृष्टि के संचालन में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
- पापों का नाश: मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- अश्वमेध यज्ञ के समान फल: इस व्रत को अश्वमेध यज्ञ के समान फलदायी माना जाता है।
- वामन अवतार की पूजा: इस दिन भगवान वामन की पूजा का भी विशेष विधान है, क्योंकि यह एकादशी भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी जुड़ी हुई है।
- सुख-समृद्धि: भक्त भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करते हैं ताकि घर में सुख-समृद्धि बनी रहे।
📜 परिवर्तिनी एकादशी की पौराणिक कथा:
परिवर्तिनी एकादशी की कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से संबंधित है। प्राचीन काल में राजा बलि नामक एक अत्यंत पराक्रमी और दानी असुर राजा थे। उन्होंने अपने तप और बल से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। इंद्र सहित सभी देवता उनसे भयभीत थे। तब सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और उनसे राजा बलि के अहंकार को तोड़ने का निवेदन किया।
भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। राजा बलि ने वामन देव का स्वागत किया और उनसे कुछ भी मांगने को कहा। वामन देव ने राजा बलि से केवल तीन पग भूमि मांगी। राजा बलि को लगा कि यह तो बहुत छोटी सी मांग है और उन्होंने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया।
जैसे ही राजा बलि ने तीन पग भूमि देने का संकल्प लिया, वामन देव ने विराट रूप धारण कर लिया। पहले पग में उन्होंने पृथ्वी को नाप लिया, दूसरे पग में आकाश को। अब तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा। राजा बलि ने अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए अपना सिर वामन देव के सामने रख दिया और कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रखें। भगवान वामन ने उनके सिर पर तीसरा पग रखा और उन्हें पाताल लोक भेज दिया। भगवान विष्णु राजा बलि की दानवीरता से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि वे हमेशा उनके साथ पाताल लोक में निवास करेंगे।
यह कथा हमें अहंकार त्यागने, दानशीलता और भगवान के प्रति समर्पण का महत्व सिखाती है।
🙏 परिवर्तिनी एकादशी व्रत के अनुष्ठान और पूजा विधि:
परिवर्तिनी एकादशी का व्रत अत्यंत श्रद्धा और निष्ठा के साथ किया जाता है। यहाँ इसके मुख्य अनुष्ठान और पूजा विधि दी गई है:
- दशमी को तैयारी: एकादशी से एक दिन पहले, यानी दशमी तिथि को, सात्विक भोजन ग्रहण करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- एकादशी के दिन:
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- भगवान को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराएं।
- पीले वस्त्र, पीले फूल, चंदन, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य (फल, मिठाई) अर्पित करें। तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
- विष्णु सहस्त्रनाम, भगवान विष्णु के मंत्रों (जैसे ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’) का जाप करें और परिवर्तिनी एकादशी की कथा सुनें या पढ़ें।
- दिन भर निराहार रहें। यदि संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। जल का सेवन कर सकते हैं।
- रात्रि में जागरण करें और भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन करें।
- द्वादशी को पारण:
- द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें।
- किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान-दक्षिणा दें।
- इसके बाद स्वयं सात्विक भोजन ग्रहण करें।
💖 भगवान विष्णु को क्या पसंद है और क्या नहीं पसंद है:
✅ भगवान विष्णु को प्रिय वस्तुएं और कार्य:
- तुलसी दल: तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। उनकी पूजा में तुलसी दल का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है। तुलसी के बिना भगवान विष्णु का भोग अधूरा माना जाता है।
- पीले वस्त्र और फूल: भगवान विष्णु को पीला रंग बहुत पसंद है। इसलिए उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल (जैसे गेंदा, चंपा) और पीले फल अर्पित किए जाते हैं।
- पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से बना पंचामृत भगवान विष्णु को स्नान कराने और भोग लगाने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
- मोदक और लड्डू: हालांकि यह गणेश जी को भी प्रिय हैं, भगवान विष्णु को भी मीठे व्यंजन, विशेषकर मोदक और लड्डू, प्रिय हैं।
- शंख: शंख भगवान विष्णु का प्रिय वाद्य यंत्र है और उनकी पूजा में शंख ध्वनि का विशेष महत्व है।
- कमल का फूल: कमल का फूल पवित्रता और दिव्यता का प्रतीक है, और यह भगवान विष्णु को प्रिय है।
- सात्विक भोजन: भगवान विष्णु को सात्विक भोजन, जिसमें प्याज, लहसुन और मांसाहार शामिल न हो, ही अर्पित किया जाता है।
- एकादशी व्रत: यह व्रत स्वयं भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है, और इसका पालन करने वाले भक्तों पर वे विशेष कृपा करते हैं।
- धर्म और सत्य का पालन: भगवान विष्णु धर्म के रक्षक हैं, इसलिए जो लोग धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हैं, वे उन्हें प्रिय होते हैं।
- दान-पुण्य: गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना और पुण्य कार्य करना भगवान विष्णु को प्रसन्न करता है।
❌ भगवान विष्णु को क्या अप्रिय है:
- तुलसी का अनादर: तुलसी को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है, इसलिए तुलसी का अनादर करना या उसे बिना स्नान किए तोड़ना उन्हें अप्रिय है।
- तामसिक भोजन: प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि तामसिक भोजन का सेवन और उन्हें अर्पित करना भगवान विष्णु को अप्रिय है।
- अहंकार और अभिमान: जैसा कि वामन अवतार की कथा में देखा गया, भगवान विष्णु अहंकार और अभिमान को पसंद नहीं करते हैं।
- झूठ और अधर्म: भगवान विष्णु सत्य और धर्म के प्रतीक हैं, इसलिए झूठ बोलना, अधर्म का आचरण करना या किसी को धोखा देना उन्हें अप्रिय है।
- कलह और हिंसा: भगवान विष्णु शांति और प्रेम के देवता हैं, इसलिए घर में कलह, लड़ाई-झगड़ा या किसी भी प्रकार की हिंसा उन्हें अप्रिय है।
- अपवित्रता: शारीरिक और मानसिक अपवित्रता भगवान विष्णु को अप्रिय है। पूजा से पहले स्नान और शुद्ध वस्त्र धारण करना आवश्यक है।
इन बातों का ध्यान रखकर भक्त भगवान विष्णु की कृपा आसानी से प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
💡 कुछ महत्वपूर्ण बातें:
🌿 चातुर्मास में विशेष महत्व:
- परिवर्तिनी एकादशी चातुर्मास के दौरान आती है, जो भगवान विष्णु के शयनकाल का चार महीने का पवित्र समय होता है।
- इस एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी करवट बदलते हैं, जिसे सृष्टि में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन माना जाता है।
- इस एकादशी का पालन करने से चातुर्मास के दौरान की गई तपस्या का विशेष फल मिलता है और यह आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है।
👶 वामन जयंती से संबंध:
- कुछ क्षेत्रों में परिवर्तिनी एकादशी को वामन जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि यह भगवान विष्णु के वामन अवतार की जयंती होती है।
- इस दिन वामन देव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उनकी कथा का पाठ किया जाता है।
🍎 फलाहार के नियम:
जो भक्त एकादशी का व्रत रखते हैं, वे अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार निर्जला (बिना पानी) या फलाहारी (केवल फल और कुछ विशेष खाद्य पदार्थ) व्रत रख सकते हैं। फलाहार में आप ये चीजें ले सकते हैं:
- फल और सूखे मेवे
- दूध और दूध से बने उत्पाद (दही, पनीर)
- कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, समा के चावल, राजगीरा
- सेंधा नमक का उपयोग करें, सामान्य नमक का नहीं।
- आलू, शकरकंद, अरबी जैसी सब्जियां खा सकते हैं, लेकिन प्याज, लहसुन और अनाज (गेहूं, चावल, दालें) वर्जित हैं।
📿 विशेष मंत्र जाप:
भगवान विष्णु के कुछ विशेष मंत्र जिनका आप इस दिन जाप कर सकते हैं:
- महामंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- विष्णु गायत्री मंत्र: “ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु प्रचोदयात्।”
- विष्णु मूल मंत्र: “ॐ विष्णवे नमः”
इन मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
🌟 भगवान विष्णु के प्रमुख नाम और उनका महत्व:
भगवान विष्णु के सहस्रों नाम हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख नाम और उनके अर्थ यहाँ दिए गए हैं:
- विष्णु (Vishnu): ‘जो सर्वव्यापी है’ या ‘जो सब जगह व्याप्त है’। यह उनका मूल नाम है जो उनकी व्यापकता को दर्शाता है।
- नारायण (Narayana): ‘जल में निवास करने वाला’ या ‘मनुष्यों का आश्रय’। यह उनके क्षीरसागर में शयन करने और सभी जीवों के पालक होने को दर्शाता है।
- दामोदर (Damodara): ‘जिसके पेट पर रस्सी बंधी हो’। यह नाम भगवान कृष्ण के बाल रूप से जुड़ा है, जब माता यशोदा ने उन्हें ऊखल से बांध दिया था।
- केशव (Keshava): ‘सुंदर केशों वाला’ या ‘जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश का नियंत्रक है’। यह उनकी सर्वोच्चता को दर्शाता है।
- माधव (Madhava): ‘लक्ष्मी के पति’ या ‘ज्ञान के स्वामी’। यह उनकी समृद्धि और ज्ञान के प्रतीक के रूप में पूजा को दर्शाता है।
- गोविंदा (Govinda): ‘गायों के रक्षक’ या ‘इंद्रियों को प्रसन्न करने वाला’। यह उनके कृष्ण अवतार से जुड़ा है और भक्तों को आनंद देने वाला है।
- त्रिविक्रम (Trivikrama): ‘तीन पगों से तीनों लोकों को नापने वाला’। यह उनके वामन अवतार की शक्ति को दर्शाता है।
- श्रीधर (Shridhara): ‘जो लक्ष्मी को धारण करते हैं’। यह उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी के साथ उनके संबंध को दर्शाता है।
- पद्मनाभ (Padmanabha): ‘कमल नाभि वाला’। यह उनके नाभि से ब्रह्मा के जन्म और सृष्टि के निर्माण का प्रतीक है।
- हृषीकेश (Hrishikesha): ‘इंद्रियों के स्वामी’ या ‘इंद्रियों को नियंत्रित करने वाला’। यह उनकी आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है।
- वासुदेव (Vasudeva): ‘जो सभी प्राणियों में निवास करते हैं’ या ‘वसुदेव के पुत्र’। यह उनकी सर्वव्यापकता और कृष्ण अवतार को दर्शाता है।
- जनार्दन (Janardana): ‘जो लोगों को मुक्ति देते हैं’ या ‘दुष्टों का नाश करने वाला’। यह उनके भक्तों को बचाने वाले और बुराई को खत्म करने वाले स्वरूप को दर्शाता है।
इन नामों का स्मरण करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
🕉️ भगवान विष्णु के अन्य प्रमुख व्रत:
भगवान विष्णु को समर्पित कई अन्य महत्वपूर्ण व्रत भी हैं, जो विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए रखे जाते हैं। एकादशी व्रत के अलावा, कुछ प्रमुख व्रत इस प्रकार हैं:
- सत्यनारायण व्रत: यह व्रत किसी भी शुभ अवसर पर या मनोकामना पूर्ति के लिए रखा जाता है। इसमें भगवान सत्यनारायण (भगवान विष्णु का ही एक रूप) की कथा सुनी जाती है और उनकी पूजा की जाती है। यह व्रत सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करता है।
- नृसिंह जयंती: भगवान विष्णु के चौथे अवतार, भगवान नृसिंह के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और भय से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है।
- राम नवमी: भगवान विष्णु के सातवें अवतार, भगवान राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम की पूजा की जाती है और उनके आदर्शों का स्मरण किया जाता है।
- कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान विष्णु के आठवें अवतार, भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के बाल रूप की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।
- अक्षय तृतीया: यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है और इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य या दान अक्षय फल देता है।
- गंगा दशहरा: इस दिन देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। भगवान विष्णु से भी इस दिन का संबंध है, क्योंकि गंगा उनके चरणों से निकली मानी जाती हैं। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है।
👑 भगवान विष्णु का सबसे महत्वपूर्ण व्रत:
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु को समर्पित सभी व्रतों में **एकादशी व्रत** को ही सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ माना गया है। स्वयं भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया है। सभी एकादशियों में से, **निर्जला एकादशी** को विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसका व्रत रखने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है। यह व्रत बिना जल ग्रहण किए रखा जाता है, जो इसकी कठिनता और अत्यधिक पुण्य फल को दर्शाता है।
एकादशी व्रत को मोक्ष का द्वार माना जाता है और यह सीधे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका है।
🗺️ भगवान विष्णु को भारत में कहाँ-कहाँ ज्यादा माना जाता है:
भगवान विष्णु की पूजा भारत के कोने-कोने में की जाती है, लेकिन कुछ क्षेत्र और मंदिर ऐसे हैं जहाँ उनकी विशेष महत्ता और व्यापक रूप से आराधना की जाती है:
- चार धाम (Char Dham): हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का अत्यधिक महत्व है, और इनमें से अधिकांश भगवान विष्णु को समर्पित हैं:
- बद्रीनाथ (उत्तराखंड): हिमालय में स्थित यह भगवान विष्णु का प्रमुख धाम है, जहाँ वे बद्रीनाथ के रूप में विराजमान हैं।
- द्वारका (गुजरात): भगवान कृष्ण की नगरी, जहाँ द्वारकाधीश के रूप में भगवान विष्णु की पूजा होती है।
- जगन्नाथ पुरी (ओडिशा): भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु का एक रूप) का प्रसिद्ध मंदिर, जहाँ हर साल भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है।
- रामेश्वरम (तमिलनाडु): हालांकि यह मुख्य रूप से भगवान शिव का धाम है, लेकिन चार धाम में इसका महत्व भगवान राम (विष्णु के अवतार) से भी जुड़ा है।
- दक्षिण भारत: वैष्णव धर्म का दक्षिण भारत में गहरा प्रभाव है और यहाँ कई विशाल तथा प्रसिद्ध विष्णु मंदिर हैं:
- तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर (आंध्र प्रदेश): तिरुपति में स्थित यह भारत के सबसे प्रसिद्ध और धनी मंदिरों में से एक है, जहाँ भगवान वेंकटेश्वर (विष्णु का एक रूप) की पूजा होती है।
- श्री रंगनाथस्वामी मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु): यह दुनिया के सबसे बड़े कार्यशील हिंदू मंदिर परिसरों में से एक है और भगवान रंगनाथ (विष्णु की शयन मुद्रा) को समर्पित है।
- पद्मनाभस्वामी मंदिर (तिरुवनंतपुरम, केरल): यह मंदिर भगवान विष्णु के अनंतशयनम (शेषनाग पर शयन) रूप को समर्पित है और अपनी अपार संपत्ति के लिए प्रसिद्ध है।
- कांचीपुरम (तमिलनाडु): यहाँ कई महत्वपूर्ण विष्णु मंदिर हैं, जैसे उलगलनथा पेरुमल मंदिर और वरदराजा पेरुमल मंदिर।
- श्रीरंगपट्टना (कर्नाटक): यहाँ भी एक महत्वपूर्ण रंगनाथस्वामी मंदिर है।
- उत्तर भारत:
- मथुरा और वृंदावन (उत्तर प्रदेश): भगवान कृष्ण की जन्मभूमि और लीलाभूमि होने के कारण ये वैष्णव धर्म के प्रमुख केंद्र हैं।
- अयोध्या (उत्तर प्रदेश): भगवान राम की जन्मभूमि होने के कारण यह भी एक महत्वपूर्ण वैष्णव तीर्थ स्थल है।
- हरिद्वार (उत्तराखंड): यहाँ हर की पौड़ी पर भगवान विष्णु के पदचिह्न माने जाते हैं, जिससे यह एक पवित्र वैष्णव स्थल बन जाता है।
- नाथद्वारा (राजस्थान): यहाँ श्रीनाथजी (भगवान कृष्ण का एक रूप) का प्रसिद्ध मंदिर है।
- महाराष्ट्र:
- पंढरपुर (महाराष्ट्र): यहाँ भगवान विट्ठल (भगवान विष्णु का एक रूप) का प्रसिद्ध मंदिर है, जो वारकरी संप्रदाय का प्रमुख केंद्र है।
- पूर्वोत्तर भारत:
- माजुली (असम): असमिया वैष्णववाद का एक महत्वपूर्ण केंद्र है, जहाँ कई सात्र (मठ) हैं जो भगवान कृष्ण की पूजा पर केंद्रित हैं।
यह दर्शाते हैं कि भगवान विष्णु की भक्ति भारत के भौगोलिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में कितनी गहराई तक समाई हुई है।
📈 परिवर्तिनी एकादशी व्रत के लाभ:
इस व्रत को करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- पापों का नाश: मान्यता है कि इस व्रत के पालन से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत व्यक्ति को मोक्ष की ओर अग्रसर करता है और उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाता है।
- सुख-समृद्धि: भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- शारीरिक और मानसिक शुद्धि: व्रत रखने से शरीर और मन दोनों शुद्ध होते हैं।
- इच्छाओं की पूर्ति: सच्ची श्रद्धा से किया गया यह व्रत भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता है।
परिवर्तिनी एकादशी एक पवित्र अवसर है जो भक्तों को भगवान विष्णु के करीब लाता है और उन्हें आध्यात्मिक उत्थान का अवसर प्रदान करता है। इस दिन व्रत और पूजा करके आप भी भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं और अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं।