नवपत्रिका पूजा: दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग

नवपत्रिका पूजा 2025
नवपत्रिका पूजा
29
सितंबर 2025
सोमवार
नवपत्रिका
नवपत्रिका पूजा
पूजा का शुभ समय: महा सप्तमी की सुबह

नवपत्रिका पूजा महा सप्तमी के दिन सुबह-सुबह, सूर्योदय के बाद और दोपहर से पहले की जाती है। यह समय प्रकृति और देवी शक्तियों का आह्वान करने के लिए सबसे शुभ माना जाता है। सटीक स्थानीय मुहूर्त के लिए अपने पंचांग का अवलोकन करें।

दुर्गा पूजा का आरंभ सिर्फ मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करने से नहीं होता, बल्कि एक और बेहद खास अनुष्ठान से होता है जिसे नवपत्रिका पूजा कहते हैं। यह पूजा नौ अलग-अलग पौधों और पत्तियों से मिलकर बनती है, जो मां दुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं।

यह अनुष्ठान विशेष रूप से बंगाली परंपरा का एक अभिन्न अंग है, जो शारदीय नवरात्र के सातवें दिन यानी महा सप्तमी को किया जाता है। इस वर्ष, यह शुभ दिन सोमवार, 29 सितंबर 2025 को पड़ रहा है।

🌿 नवपत्रिका क्या है?

नवपत्रिका, जिसका शाब्दिक अर्थ ‘नौ पत्तियां’ है, वास्तव में नौ पौधों का समूह है। इन पौधों को एक साथ बांधकर, उन्हें देवी की तरह पूजा जाता है। यह प्रकृति और दिव्य शक्ति के आपसी संबंध का प्रतीक है।

🌸 नवपत्रिका के नौ पौधे और उनसे जुड़ी देवियाँ

इन नौ पौधों में से हर एक, मां दुर्गा के एक रूप को समर्पित है। इनकी पूजा कर हम प्रकृति और देवी के नौ रूपों का एक साथ सम्मान करते हैं:

  • केले का पौधा (रम्भा): यह मां **ब्राह्मणी** का रूप है। इन्हें ब्रह्मचारिणी का प्रतीक माना जाता है। यह पौधा ब्रह्म शक्ति और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अरबी का पत्ता (कचु): यह मां **काली** का रूप है। अरबी के पत्ते अपने आप में एक अनोखी शक्ति रखते हैं और इन्हें देवी काली की ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।
  • हल्दी का पौधा (हरिद्रा): यह मां **दुर्गा** का रूप है। हल्दी को शुभता, समृद्धि और आरोग्य का प्रतीक माना जाता है। यह देवी दुर्गा के शुभ स्वरूप को दर्शाता है।
  • जया का पौधा: यह मां **कार्तिकी** का रूप है। इस पौधे को जय और विजय का प्रतीक माना जाता है, जो देवी कार्तिकी के गुणों को दर्शाता है।
  • बेल पत्र (बिल्व): यह मां **शिवा** का रूप है। बेल पत्र भगवान शिव और माता पार्वती दोनों को प्रिय है, और यह पवित्रता और तपस्या का प्रतीक है।
  • अनार का पत्ता (दारिम्ब): यह मां **रक्तदंतिका** का रूप है। अनार का पत्ता लाल रंग का होता है, जो देवी रक्तदंतिका के उग्र और शक्तिशाली स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है।
  • अशोक का पत्ता: यह मां **शोकहारिणी** का रूप है। अशोक का अर्थ ‘बिना शोक’ होता है, और यह पौधा दुखों और कष्टों को दूर करने वाली देवी का प्रतीक है।
  • धान की बाली (धान्य): यह मां **लक्ष्मी** का रूप है। धान को अन्न और धन का प्रतीक माना जाता है। यह देवी लक्ष्मी की समृद्धि और संपन्नता की शक्ति को दर्शाता है।
  • कचू का पत्ता: यह मां **चंडी** का रूप है। कचू का पत्ता देवी चंडी के शक्तिशाली और पराक्रमी स्वरूप का प्रतीक है।

नवपत्रिका का महत्व

नवपत्रिका पूजा का महत्व सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के प्रति हमारे सम्मान को भी दर्शाता है। यह माना जाता है कि इन नौ पौधों में देवी दुर्गा की शक्तियां समाहित होती हैं।

इस पूजा के माध्यम से हम प्रकृति को पूजते हैं, जो हमारे जीवन का आधार है, और देवी से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारे जीवन से सभी नकारात्मकता और दुखों को दूर करें। यह एक तरह से प्रकृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम है।

🙏 पूजा विधि: कैसे करें नवपत्रिका पूजा?

महा सप्तमी के दिन सुबह-सुबह, इन नौ पौधों को इकट्ठा किया जाता है। उन्हें एक साथ, अक्सर एक पीले धागे या डोरी से बांधा जाता है।

  1. पवित्र स्नान: नवपत्रिका को पहले किसी नदी, तालाब या पवित्र जल में स्नान कराया जाता है।
  2. वस्त्र धारण: स्नान के बाद, नवपत्रिका को एक लाल या सफेद साड़ी पहनाई जाती है, जैसे किसी देवी को वस्त्र पहनाए जाते हैं।
  3. स्थापना: इसे फिर एक सजे हुए मंडप या पूजा स्थल पर, गणेश जी के बगल में स्थापित किया जाता है। इस प्रक्रिया को “कल्पारम्भ” कहते हैं।
  4. आवाहन और पूजा: इसके बाद, नवपत्रिका का विधिवत आवाहन और पूजा की जाती है, ठीक उसी तरह जैसे मां दुर्गा की प्रतिमा की जाती है। इस दौरान मंत्रों का जाप और आरती की जाती है।

यह ब्लॉग पोस्ट आपकी नवपत्रिका पूजा के लिए एक उपयोगी मार्गदर्शक हो सकती है। आप इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर कर सकते हैं ताकि वे भी इस अनोखी परंपरा के बारे में जान सकें।

नवपत्रिका पूजा हमें याद दिलाती है कि प्रकृति ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। यह दुर्गा पूजा को एक और भी गहरा आध्यात्मिक अर्थ देती है।

📜 नवपत्रिका से जुड़ी पौराणिक कथा और कोल बहू का महत्व

नवपत्रिका को अक्सर ‘कोल बहू’ (केले की बहू) भी कहा जाता है, जो दुर्गा पूजा का एक बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ‘कोल बहू’ को भगवान गणेश की पत्नी माना जाता है, लेकिन कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह देवी दुर्गा का ही एक रूप हैं, जो गणेश जी के दाईं ओर स्थापित होती हैं।

यह प्रथा एक प्राचीन कृषि परंपरा से जुड़ी है, जिसमें किसान नई फसल की देवी के रूप में नवपत्रिका की पूजा करते थे। बाद में, यह परंपरा दुर्गा पूजा से जुड़ गई, और आज यह प्रकृति और देवी की शक्तियों के मिलन का प्रतीक है।

नवपत्रिका को पवित्र जल में स्नान कराना और लाल किनारी वाली साड़ी पहनाना, इसे एक दुल्हन की तरह तैयार करने का प्रतीक है। यह देवी के आगमन और उनके स्वागत की एक रस्म है।

🌿 नवपत्रिका के हर पौधे का गहरा अर्थ

हर एक पौधा न सिर्फ एक देवी का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि एक विशेष शक्ति और गुण का भी प्रतीक है:

  • केले का पौधा (रम्भा): यह ब्रह्मशक्ति, ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
  • अरबी का पत्ता (कचु): यह देवी काली की शक्ति और बुराई का नाश करने का प्रतीक है।
  • हल्दी का पौधा (हरिद्रा): यह शुभता, आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक है।
  • जया का पौधा: यह विजय और सफलता का प्रतीक है।
  • बेल पत्र (बिल्व): यह पवित्रता, तपस्या और भगवान शिव के साथ देवी के जुड़ाव का प्रतीक है।
  • अनार का पत्ता (दारिम्ब): यह रक्तदंतिका देवी की उग्र शक्ति और शक्ति का प्रतीक है।
  • अशोक का पत्ता: यह शोक को हरने वाला, यानी दुखों और कष्टों को दूर करने का प्रतीक है।
  • धान की बाली (धान्य): यह धन, अन्न और संपन्नता का प्रतीक है।
  • कचू का पत्ता: यह चंडी देवी की शक्ति और साहस का प्रतीक है।
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