कल्पारंभ 2025

दुर्गा पूजा की शुरुआत
कल्पारंभ
28
सितंबर 2025
रविवार
माँ दुर्गा का आगमन
माँ दुर्गा
कल्पारंभ शुभ मुहूर्त: शाम 05:30 बजे से 06:45 बजे तक (लगभग)

दुर्गा पूजा 2025 की शुरुआत 28 सितंबर, रविवार को कल्पारंभ से होगी। यह वह शुभ क्षण है जब भक्त माँ दुर्गा का अपने पंडालों और घरों में स्वागत करते हैं।

कल्पारंभ का महत्व

कल्पारंभ, जिसे बंगाली दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक अनुष्ठान माना जाता है, ‘दुर्गा पूजा’ के पांच दिवसीय उत्सव की औपचारिक शुरुआत का प्रतीक है। इस अनुष्ठान के दौरान, भक्त माँ दुर्गा की प्रतिमा को जीवंत करने और उन्हें पृथ्वी पर आने का आह्वान करते हैं। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह देवी को पंडाल या घर में विराजमान होने का निमंत्रण भी है।

यह दिन देवी के “बोधन” (जागृत करने), “अधिवास” (प्रतिमा में देवी की चेतना स्थापित करने) और “आमंत्रण” (आमंत्रित करने) का होता है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय के महान उत्सव की शुरुआत है।

📜 कल्पारंभ की पूजा विधि

कल्पारंभ के अनुष्ठान में कई चरण शामिल होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना गहरा महत्व है:

  1. कलश स्थापना: सबसे पहले, एक कलश (घट) स्थापित किया जाता है, जो देवी का प्रतीक है। इसमें पवित्र जल, पंच रत्न और पाँच प्रकार की पत्तियाँ रखी जाती हैं।
  2. जौ बोना: कलश के पास एक मिट्टी के बर्तन में जौ बोई जाती है, जो समृद्धि और जीवन का प्रतीक है।
  3. नवपत्रिका पूजा: नौ तरह की वनस्पतियों (केला, हल्दी, धान, अशोक, बेल, अनार, धान्य, अरबी और जयन्ती) की पूजा की जाती है, जिन्हें नवपत्रिका कहते हैं। इन्हें देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है।
  4. बोधन (जागृत करना): यह देवी को जागृत करने की रस्म है। पुरोहित देवी का ध्यान करके उन्हें आह्वान करते हैं और उन्हें पंडाल में स्थापित होने का निमंत्रण देते हैं।
  5. अधिवास और आमंत्रण: यह वह अनुष्ठान है जिसमें देवी को औपचारिक रूप से पूजा के लिए आमंत्रित किया जाता है। इसके बाद, बेल के पेड़ के नीचे अधिवास किया जाता है, जो देवी के आगमन का प्रतीक है।
  6. आरती और प्रसाद: इन सभी अनुष्ठानों के बाद, माँ दुर्गा की आरती की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है।

⚔️ पौराणिक कथा

कल्पारंभ की पौराणिक कथा माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध से जुड़ी है। जब महिषासुर ने अपने वरदान के अहंकार में स्वर्ग पर कब्जा कर लिया, तो सभी देवताओं ने मिलकर अपनी शक्तियों का उपयोग करके देवी दुर्गा को बनाया। देवी दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है।

नवरात्रि के दौरान, देवी दुर्गा ने महिषासुर के साथ नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसे पराजित किया। कल्पारंभ उसी कहानी की शुरुआत का प्रतीक है। यह वह क्षण है जब भक्त देवी की शक्ति को जागृत करते हैं और उन्हें महिषासुर जैसे दुष्टों का नाश करने का आह्वान करते हैं।

💡 ध्यान रखने योग्य बातें

  • कल्पारंभ के लिए शुभ मुहूर्त का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
  • पूजा स्थल को साफ और पवित्र रखना चाहिए।
  • इस दिन सात्विक भोजन करना चाहिए और मन को शांत रखना चाहिए।
  • नवपत्रिका को पूजा के बाद पवित्र नदी में विसर्जित करना चाहिए।

🌸 नवरात्रि और दुर्गा पूजा में अंतर

कई लोग नवरात्रि और दुर्गा पूजा को एक ही मानते हैं, जबकि उनमें कुछ छोटे लेकिन महत्वपूर्ण अंतर हैं।

  • नवरात्रि: यह पूरे भारत में मनाया जाने वाला नौ रातों का त्योहार है, जिसमें देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।
  • दुर्गा पूजा: यह मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में मनाया जाने वाला पांच दिवसीय उत्सव है, जिसकी शुरुआत षष्ठी (छठवें दिन) को कल्पारंभ से होती है। इसमें देवी दुर्गा को उनके परिवार (गणेश, कार्तिकेय, लक्ष्मी और सरस्वती) के साथ पूजा जाता है।

🌿 नवपत्रिका का महत्व

नवपत्रिका, जिसे “कोला बोउ” (Kola Bou) भी कहते हैं, दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नौ तरह की वनस्पतियों (केले का पेड़, हल्दी, धान, अशोक, बेल, अनार, धान्य, अरबी, और जयन्ती) का एक समूह है, जिन्हें सफेद मोली से बाँधा जाता है और एक लाल कपड़े में लपेटा जाता है।

हर एक पौधा देवी दुर्गा के एक स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है, जैसे कि केले का पेड़ माँ ब्रह्मचारिणी का और हल्दी माँ दुर्गा का प्रतीक है। नवपत्रिका को महासप्तमी के दिन पंडाल में देवी की मूर्ति के पास स्थापित किया जाता है और इसकी पूजा की जाती है।

💃 दुर्गा पूजा के दौरान पारंपरिक खेल और रीति-रिवाज

दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक भव्य सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है।

  • सिंदूर खेला: विजयादशमी (दशहरा) के दिन, विवाहित महिलाएं देवी दुर्गा की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। यह एक बहुत ही joyous परंपरा है, जो सौभाग्य और सद्भाव का प्रतीक है।
  • धुनुची नाच: यह एक पारंपरिक नृत्य है जो दुर्गा पूजा के दौरान किया जाता है। इसमें एक धुनुची (मिट्टी का बर्तन) में जलते हुए नारियल के छिलके और धूप डालकर उस पर नृत्य किया जाता है। यह देवी को प्रसन्न करने का एक तरीका है।
  • भक्तों के लिए भोजन: दुर्गा पूजा के पंडालों में भक्तों को प्रसाद के रूप में खिचड़ी, सब्जी और अन्य पारंपरिक भोजन वितरित किया जाता है।

🗺️ दुर्गा पूजा कहाँ-कहाँ मनाई जाती है?

भारत में दुर्गा पूजा मुख्य रूप से पूर्वी राज्यों का सबसे बड़ा त्योहार है, लेकिन यह देश भर में अलग-अलग रूपों और नामों से मनाया जाता है। यहाँ कुछ प्रमुख स्थान दिए गए हैं जहाँ यह उत्सव भव्य रूप से मनाया जाता है:

  • पश्चिम बंगाल: कोलकाता को दुर्गा पूजा का गढ़ माना जाता है, जहाँ लाखों की संख्या में पंडाल बनते हैं। कोलकाता की दुर्गा पूजा को **UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत** सूची में भी शामिल किया गया है। यहाँ की पूजा अपनी कलात्मक मूर्तियों और भव्य थीम-आधारित पंडालों के लिए प्रसिद्ध है।
  • असम: गुवाहाटी और पूरे असम में दुर्गा पूजा बड़े उत्साह से मनाई जाती है। यहाँ भी भव्य पंडाल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
  • बिहार और झारखंड: इन राज्यों में भी दुर्गा पूजा का खासा महत्व है। यहाँ भी पंडाल सजाए जाते हैं और पारंपरिक विधि-विधान से पूजा की जाती है।
  • दिल्ली: दिल्ली में, खासकर **चितरंजन पार्क (CR Park)** को ‘मिनी कोलकाता’ कहा जाता है। यहाँ बंगाली समुदाय द्वारा आयोजित होने वाले दुर्गा पूजा पंडाल अपनी भव्यता और पारंपरिक बंगाली भोजन के लिए जाने जाते हैं।
  • ओडिशा: ओडिशा में, विशेषकर कटक और भुवनेश्वर में, दुर्गा पूजा का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। यहाँ पंडालों की सजावट में चांदी और सोने के तार का इस्तेमाल होता है, जो उन्हें एक अलग ही भव्यता प्रदान करता है।
  • त्रिपुरा: त्रिपुरा, जो बंगाली संस्कृति से बहुत प्रभावित है, में दुर्गा पूजा एक प्रमुख त्योहार है।

इसके अलावा, महाराष्ट्र (मुंबई, पुणे) और गुजरात (अहमदाबाद) जैसे राज्यों में भी बड़े शहरों में बंगाली समुदायों द्वारा भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन होता है।

🎉 कल्पारंभ के अन्य पारंपरिक अनुष्ठान

कल्पारंभ के दिन और भी कई छोटे-छोटे अनुष्ठान और परंपराएं निभाई जाती हैं, जो इस उत्सव की शुरुआत को और भी खास बनाती हैं:

  • चक्षुदान (आँखों को चित्रित करना): यह दुर्गा पूजा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस दिन कलाकार देवी की मूर्ति में आँखें बनाते हैं, जो मूर्ति को जीवंत करती हैं। मान्यता है कि इसी के बाद देवी की प्रतिमा में प्राण आते हैं।
  • प्रारंभिक पूजा: बोधन और अधिवास से पहले, पंडाल और पूजा स्थल की प्रारंभिक सफाई और पूजा की जाती है, ताकि देवी के आगमन का मार्ग साफ हो सके।
  • ढकी (ढोल) बजाना: दुर्गा पूजा के पंडालों में ढकी या ढोल बजाना एक अनिवार्य परंपरा है। यह उत्सव की शुरुआत की घोषणा करता है और भक्तों में खुशी और उत्साह का संचार करता है।

🏛️ माँ दुर्गा के प्रमुख मंदिर और उनकी मान्यताएं

भारत में माँ दुर्गा के कई ऐसे मंदिर हैं, जिनकी अपनी एक अनूठी पहचान, पौराणिक कथाएँ और गहरी मान्यताएँ हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत के भी प्रतीक हैं।

1. वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू

  • मान्यता: यह 108 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माँ वैष्णो देवी तीन पिंडियों (महाकाली, महालक्ष्म, महासरस्वती) के रूप में निवास करती हैं। इस पवित्र गुफा के दर्शन के लिए भक्तों को लंबी और कठिन यात्रा करनी पड़ती है।
  • प्रसाद: यहाँ मुख्य रूप से प्रसाद के रूप में सूखे मेवे, मिश्री, मखाने और नारियल दिए जाते हैं। श्राइन बोर्ड द्वारा दिए गए प्रसाद के पैकेट में एक पवित्र चांदी का सिक्का भी होता है।

2. कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी, असम

  • मान्यता: यह 51 शक्तिपीठों में सबसे प्रमुख है। मान्यता है कि यहाँ देवी सती की योनि गिरी थी। यह मंदिर तांत्रिक साधना का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।
  • प्रसाद: यहाँ का सबसे अनोखा प्रसाद लाल रंग का एक कपड़ा (अंबुबाची मेला के बाद) होता है, जिसे ‘अंबुबाची वस्त्र’ कहते हैं। यह कपड़ा देवी के मासिक धर्म चक्र का प्रतीक माना जाता है।

3. करणी माता मंदिर, देशनोक, राजस्थान

  • मान्यता: इस मंदिर को ‘चूहों वाला मंदिर’ भी कहते हैं। यहाँ हजारों की संख्या में चूहे रहते हैं, जिन्हें देवी करणी के वंशज माना जाता है। इन चूहों को ‘काबा’ कहते हैं और इन्हें भक्तों द्वारा लाया गया प्रसाद खिलाया जाता है।
  • प्रसाद: भक्त यहाँ चूहों को प्रसाद के रूप में दूध, अनाज और मिठाई चढ़ाते हैं। सफेद चूहे का दिखना बहुत शुभ माना जाता है।

4. कालीघाट काली मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल

  • मान्यता: यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहाँ देवी सती के दाएं पैर की उंगलियां गिरी थीं। यह मंदिर माँ काली के उग्र रूप को समर्पित है और यहाँ लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।
  • प्रसाद: माँ काली को लाल गुड़हल का फूल, मिठाई और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।

5. दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता, पश्चिम बंगाल

  • मान्यता: यह मंदिर हुगली नदी के तट पर स्थित है और यह रामकृष्ण परमहंस की साधना स्थली रही है। यहाँ माँ काली के एक सौम्य रूप की पूजा की जाती है।
  • प्रसाद: माँ को भोग में खिचड़ी, चावल, दाल, और अन्य सात्विक भोजन चढ़ाया जाता है। काली पूजा के दौरान, 56 भोग भी लगाए जाते हैं।

❤️‍🔥 माँ दुर्गा की प्रिय वस्तुएं और वर्जित चीजें

माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए, भक्तों को उनकी पसंद और नापसंद का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं:

पसंद (Likes):

  • रंग: माँ दुर्गा को **लाल रंग** अत्यंत प्रिय है। उन्हें लाल वस्त्र, लाल चुनरी और लाल फूल, विशेषकर गुड़हल (Hibiscus) या लाल गुलाब अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है।
  • शृंगार की सामग्री: माँ को शृंगार की वस्तुएं जैसे सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां, और मेहंदी चढ़ाने से वे प्रसन्न होती हैं।
  • फूल: माँ दुर्गा को कमल, चंपा, चमेली और सीता अशोक के फूल भी प्रिय हैं।
  • पंचमेवा और प्रसाद: घी से बने पकवान, खीर, हलवा, पूड़ी, और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। नौ दिनों तक हर दिन अलग-अलग भोग चढ़ाने का भी विधान है।
  • सात्विक भोजन: माँ को सात्विक भोजन का भोग लगाया जाता है और व्रत रखने वालों को भी सात्विक आहार ही ग्रहण करना चाहिए।

नापसंद/वर्जित (Dislikes/Prohibited):

  • तुलसी: माँ दुर्गा की पूजा में **तुलसी के पत्ते** और **दूर्वा घास** का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु और दूर्वा भगवान गणेश को प्रिय हैं।
  • खंडित वस्तुएं: पूजा में टूटे हुए चावल (अक्षत), खंडित नारियल, या मुरझाए हुए फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
  • तामसिक भोजन: व्रत के दौरान मांस, मछली, प्याज, और लहसुन का सेवन बिल्कुल वर्जित है।
  • अस्वच्छता: पूजा स्थल की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पूजा के दौरान चमड़े से बनी वस्तुओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • अप्रिय व्यवहार: क्रोध, झूठ बोलना, और किसी का अपमान करना माँ दुर्गा को अप्रिय है।

ये मंदिर माँ दुर्गा की शक्ति और भक्ति के विभिन्न रूपों को दर्शाते हैं।

कल्पारंभ के साथ, दुर्गा पूजा का भव्य और आनंदमय उत्सव शुरू होता है।

आपको और आपके परिवार को कल्पारंभ 2025 की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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