दुर्गा महा नवमी पूजा 2025

दुर्गा महा नवमी 2025
महा नवमी
01
अक्टूबर 2025
बुधवार
माँ दुर्गा की कृपा
दुर्गा महा नवमी पूजा
शुभ मुहूर्त: नवमी तिथि 1 अक्टूबर 2025 को शाम 07:14 बजे समाप्त होगी।

नवरात्रि का नौवां दिन, महा नवमी, देवी दुर्गा के विजय का प्रतीक है। इस दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। कन्या पूजा का आयोजन इसी दिन किया जाता है। सटीक मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंचांग का अवश्य अवलोकन करें।

**बुधवार, 1 अक्टूबर 2025** को, देश भर में देवी दुर्गा के भक्त महा नवमी का पवित्र त्यौहार मनाएंगे। यह दिन नवरात्रि के नौ दिनों की भक्ति और शक्ति की पराकाष्ठा है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो सभी सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।

दुर्गा महा नवमी का महत्व:

नवरात्रि का नौवां दिन, महा नवमी, देवी दुर्गा के विजय का प्रतीक है। यह वह दिन है जब देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करके धर्म की स्थापना की थी। इस दिन की पूजा विशेष रूप से शक्तिशाली मानी जाती है क्योंकि यह भक्तों को सभी बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति दिलाती है। यह दिन न केवल देवी दुर्गा की पूजा का है, बल्कि यह कन्या पूजा (कुमारी पूजा) के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसमें नौ कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है।

🙏 दुर्गा महा नवमी की पूजा विधि:

महा नवमी की पूजा बहुत ही श्रद्धा और विधि-विधान से की जाती है। यहाँ चरण-दर-चरण पूजा विधि दी गई है:

  1. स्नान और संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल से शुद्ध करें। देवी सिद्धिदात्री का ध्यान करते हुए पूजा का संकल्प लें।
  2. कलश पूजा: पूजा की शुरुआत कलश पूजा से करें। कलश में जल, सुपारी, सिक्का, आम के पत्ते और नारियल रखें। कलश को चावल से भरे एक पात्र पर स्थापित करें।
  3. देवी सिद्धिदात्री की पूजा: देवी सिद्धिदात्री की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। उन्हें लाल वस्त्र, फूल (विशेषकर गुड़हल), कुमकुम, अक्षत (चावल), और चंदन अर्पित करें। उन्हें फल, मिठाई, और हलवा-पूरी का भोग लगाएं। मंत्रों का जाप करें जैसे: “या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
  4. हवन: महा नवमी के दिन हवन का विशेष महत्व है। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करें। दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप करते हुए आहुति दें। हवन के बाद, देवी दुर्गा की आरती करें।
  5. कन्या पूजा (कुमारी पूजा): कन्या पूजा महा नवमी का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। नौ छोटी कन्याओं को देवी के नौ रूपों का प्रतीक मानकर उन्हें आमंत्रित करें। उनके पैरों को धोएं और उन्हें आसन पर बिठाएं। उनके माथे पर कुमकुम और तिलक लगाएं। उन्हें हलवा, पूरी, और चने का प्रसाद खिलाएं। उन्हें दक्षिणा (पैसे) और उपहार दें। उनका आशीर्वाद लें।

🔔 दुर्गा महा नवमी पूजा से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातें:

1. संध्या पूजा का महत्व

नवरात्रि में संध्या पूजा का विशेष महत्व होता है। यह महा अष्टमी और महा नवमी के बीच का एक महत्वपूर्ण समय होता है। यह वह समय है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि शुरू होती है। इस समय की गई पूजा को बहुत शक्तिशाली माना जाता है।

  • विशेष समय: संध्या पूजा का समय केवल 48 मिनट का होता है। इसमें अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरुआती 24 मिनट शामिल होते हैं।
  • पूजा विधि: इस दौरान 108 कमल के फूल, 108 बेलपत्र, 108 दीपक और 108 घी के दीयों से देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
  • फल: मान्यता है कि इस समय की गई पूजा से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भक्तों को असीम शक्ति और साहस प्राप्त होता है।

2. कन्या पूजा और उनके स्वरूप

कन्या पूजा में नौ कन्याओं को देवी के नौ रूपों का प्रतीक मानकर उनकी पूजा की जाती है। यह माना जाता है कि इन कन्याओं की पूजा करने से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

  • नवरात्रि के नौ स्वरूप: हर कन्या देवी के एक विशेष स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती है:
    1. कुमारी (कुमकुम): शक्ति और उत्साह
    2. त्रिमूर्ति: ज्ञान और धन
    3. कल्याणी: समृद्धि और सफलता
    4. रोहिणी: स्वास्थ्य और दीर्घायु
    5. कालिका: भय पर विजय
    6. चंडिका: बुराई का नाश
    7. शांभवी: ज्ञान और मोक्ष
    8. दुर्गा: बुराई का नाश
    9. सुभद्रा: सौभाग्य और शांति
  • पूजा विधि: कन्याओं के पैरों को धोएं, उनके माथे पर तिलक लगाएं, उन्हें नए वस्त्र और उपहार दें, और उन्हें हलवा, पूरी और चने का भोग खिलाएं।

3. दुर्गा महा नवमी और हवन का महत्व

नवमी के दिन हवन का विशेष महत्व है। हवन को यज्ञ भी कहते हैं। हवन के माध्यम से देवी-देवताओं को प्रसन्न किया जाता है और वातावरण को शुद्ध किया जाता है।

  • मंत्र और आहुति: हवन में दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप करते हुए आहुति दी जाती है। इससे व्यक्ति के मन से अहंकार, क्रोध, लोभ और अन्य नकारात्मक भावनाएं दूर होती हैं।
  • शुद्धिकरण: हवन से निकलने वाला धुआं वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मकता का संचार करता है।
  • आशीर्वाद: हवन के बाद, सभी भक्त देवी दुर्गा की आरती करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

⚔️ आयुध पूजा का महत्व (शस्त्र पूजा)

महा नवमी का दिन **आयुध पूजा** या **शस्त्र पूजा** के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह पूजा विशेष रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में मनाई जाती है। यह देवी के शक्ति स्वरूप का सम्मान करने का एक तरीका है।

  • क्या है आयुध पूजा: इस दिन, लोग अपने औजारों, मशीनों, वाहनों और हथियारों की पूजा करते हैं। मान्यता है कि यह पूजा करने से इन वस्तुओं को बुरी नजर और नकारात्मक शक्तियों से बचाया जा सकता है।
  • पूजा विधि: औजारों और वाहनों को साफ किया जाता है, उन पर हल्दी और कुमकुम लगाया जाता है, और उन्हें फूलों से सजाया जाता है। इसके बाद, देवी की पूजा की जाती है और प्रसाद अर्पित किया जाता है।
  • महत्व: यह पूजा इस विश्वास पर आधारित है कि देवी दुर्गा सभी प्रकार की शक्ति का स्रोत हैं, और हमारी आजीविका के साधन भी उन्हीं की कृपा से चलते हैं।

🌟 देवी सिद्धिदात्री का स्वरूप और मंत्र

देवी सिद्धिदात्री देवी दुर्गा का नौवां और अंतिम स्वरूप हैं। उनकी पूजा से सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

  • स्वरूप:
    • वे कमल पर विराजमान हैं और उनके चार हाथ हैं।
    • उनके दाहिने हाथों में गदा और चक्र हैं, और बाएं हाथों में शंख और कमल हैं।
    • वे शांत, सौम्य और प्रसन्न मुद्रा में हैं।
  • पूजा मंत्र:
    • बीज मंत्र: **”ॐ ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः।।”**
    • ध्यान मंत्र: **”सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।”**

🔢 नवरात्रि में अंक 9 का रहस्य

नवरात्रि के नौ दिन सिर्फ एक संख्या नहीं हैं, बल्कि उनका गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है।

  • नौ स्वरूप: देवी दुर्गा के नौ स्वरूप – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
  • नौ ग्रह: नवग्रहों (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु) को भी नौ की संख्या से जोड़ा जाता है। इन नौ दिनों में देवी की पूजा करने से सभी ग्रहों के अशुभ प्रभाव शांत होते हैं।
  • नौ रस: भारतीय कला में नौ रसों का भी विशेष महत्व है – श्रृंगार, हास्य, करुणा, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत और शांत। यह दर्शाता है कि देवी जीवन के हर पहलू और भावना को नियंत्रित करती हैं।
  • नौ गुण: ये नौ दिन व्यक्ति के नौ गुणों को विकसित करने का अवसर भी देते हैं – ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, तपस्या, सेवा, त्याग, धैर्य, साहस और शक्ति।

📍 दुर्गा पूजा कहाँ-कहाँ मनाई जाती है?

दुर्गा पूजा सिर्फ एक धार्मिक त्यौहार नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है जो भारत और दुनिया भर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।

  • पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल में, दुर्गा पूजा सबसे बड़ा त्यौहार है। यहाँ इसे भव्य पंडालों, विशाल मूर्तियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और सिंदूर खेला (विदाई के समय विवाहित महिलाओं द्वारा सिंदूर खेलने की रस्म) के साथ मनाया जाता है। कोलकाता की दुर्गा पूजा विशेष रूप से यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल है।
  • ओडिशा: ओडिशा में भी यह त्यौहार बहुत उत्साह से मनाया जाता है। कटक में, दुर्गा पूजा के दौरान चांदी और सोने से सजे पंडाल और मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जिन्हें ‘चांदी मेढ़ा’ कहा जाता है।
  • असम और त्रिपुरा: पश्चिम बंगाल की तरह, इन राज्यों में भी दुर्गा पूजा का विशेष महत्व है। यहाँ भी पंडालों और पारंपरिक पूजा अनुष्ठानों के साथ उत्सव मनाया जाता है।
  • बिहार और झारखंड: यहाँ भी लोग अपने-अपने घरों और स्थानीय पंडालों में दुर्गा पूजा का आयोजन करते हैं। यह त्यौहार यहाँ पारंपरिक रीति-रिवाजों और लोकगीतों के साथ मनाया जाता है।
  • गुजरात: गुजरात में, नवरात्रि का त्यौहार मुख्य रूप से **गरबा** और **डांडिया रास** के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ लोग नौ रातों तक देवी की पूजा करते हैं और पारंपरिक नृत्य करते हैं।
  • दक्षिण भारत: दक्षिण भारत में, दुर्गा पूजा को **नवरात्रि** या **दशहरा** के रूप में मनाया जाता है। यहाँ पूजा के दौरान **गोलू** (गुड़ियों का प्रदर्शन) का रिवाज बहुत लोकप्रिय है। लोग अपने घरों में सीढ़ियों पर गुड़िया और मूर्तियों को सजाते हैं।
  • उत्तर प्रदेश और दिल्ली: इन क्षेत्रों में भी दुर्गा पूजा बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। यहाँ बंगाली और उत्तर भारतीय दोनों परंपराओं का मिश्रण देखने को मिलता है। दिल्ली के चितरंजन पार्क जैसे क्षेत्रों में भव्य पंडाल लगाए जाते हैं।

⚠️ इस दिन क्या करें और क्या न करें:

  • करें:
    • देवी सिद्धिदात्री की पूजा करें।
    • कन्या पूजा का आयोजन करें।
    • गरीबों और जरूरतमंदों को दान दें।
    • देवी मंत्रों का जाप करें।
  • न करें:
    • तामसिक भोजन (मांस, शराब, प्याज, लहसुन) का सेवन न करें।
    • किसी का अनादर न करें।
    • घर में नकारात्मक माहौल न रखें।

महा नवमी का यह पावन दिन आपके और आपके परिवार के लिए सुख, समृद्धि और शांति लेकर आए। देवी दुर्गा का आशीर्वाद आप पर हमेशा बना रहे।

पौष पुत्रदा एकादशी || षटतिला एकादशी || जया एकादशी || विजया एकादशी || आमलकी एकादशी || आमलकी एकादशी 2025 || आज की तिथि || प्रदोष व्रत 2025 || सावन शिवरात्रि 2025 || हरियाली तीज 2025 || श्रावण अमावस्या 2025 || श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 || कजरी तीज 2025 || प्रदोष व्रत (शुक्ल) 2025 || अजा एकादशी 2025 || श्रावण पूर्णिमा व्रत 2025|| सिंह संक्रांति 2025|| गणेश चतुर्थी 2025|| 2025 संकष्टी चतुर्थी उपवास के दिन|| ओणम/थिरुवोणम 2025|| जन्माष्टमी 2025|| भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 2025|| कन्या संक्रांति 2025|| इन्दिरा एकादशी 2025|| भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 2025|| परिवर्तिनी एकादशी 2025|| शरद नवरात्रि 2025|| कल्पारंभ 2025|| नवपत्रिका 2025|| घटस्थापना 2025|| संकष्टी चतुर्थी 2025|| दुर्गा महा अष्टमी पूजा 2025|| दशहरा 2025||

Scroll to Top