दुर्गा महा अष्टमी पूजा 2025

दुर्गा महा अष्टमी पूजा 2025
महा अष्टमी
30
सितंबर 2025
मंगलवार
मां दुर्गा का पूजन
दुर्गा महा अष्टमी पूजा
पूजा का शुभ मुहूर्त: सुबह 09:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक (लगभग)

महा अष्टमी पूजा सुबह के समय की जाती है, जिसमें कन्या पूजन और हवन मुख्य रूप से शामिल होते हैं। महा अष्टमी और महानवमी के बीच का समय संधि काल कहलाता है, जो विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। सटीक मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंचांग का अवश्य अवलोकन करें।

शारदीय नवरात्र के आठवें दिन, यानी महा अष्टमी को मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन का विशेष धार्मिक महत्व है क्योंकि यह माना जाता है कि इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। यह दिन शक्ति, विजय और नारी शक्ति का प्रतीक है।

🌟 महा अष्टमी का महत्व

महा अष्टमी का दिन नौ दुर्गाओं में से एक, मां **महागौरी** को समर्पित है। यह दिन भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा की पूजा से सभी कष्टों और पापों का नाश होता है। इस दिन कई लोग व्रत रखते हैं और मां को प्रसन्न करने के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। यह दिन विजय, समृद्धि और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

🙏 पूजा विधि: कैसे करें महा अष्टमी पूजा?

महा अष्टमी की पूजा विधि इस प्रकार है:

  1. स्नान और तैयारी: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर की सफाई करें और पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें।
  2. कलश पूजा: पूजा शुरू करने से पहले कलश और स्थापित देवी-देवताओं की पूजा करें।
  3. मंत्र और ध्यान: मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें और उनका ध्यान करें। महा अष्टमी पर मां दुर्गा के **महागौरी** स्वरूप की पूजा की जाती है।
  4. पुष्पांजलि: देवी को फूल, फल, मिठाई और अन्य प्रसाद अर्पित करें।
  5. हवन: इस दिन हवन का विशेष महत्व है। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित कर दुर्गा सप्तशती के मंत्रों का जाप करते हुए आहुति दें।
  6. कन्या पूजन: महा अष्टमी का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान **कन्या पूजन** है।

👧 कन्या पूजन का विशेष महत्व

कन्या पूजन, जिसे **कंजक पूजा** भी कहते हैं, महा अष्टमी या महानवमी के दिन किया जाता है। इस दिन नौ छोटी कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। एक छोटे लड़के (लंगूर) को भगवान गणेश के रूप में पूजा जाता है।

  1. कन्याओं का सम्मान: कन्याओं के पैर धोकर उन्हें साफ आसन पर बिठाया जाता है।
  2. पूजा और भोग: उन्हें रोली, कुमकुम और अक्षत लगाकर उनका पूजन किया जाता है। उन्हें हलवा, पूरी और चना का भोग लगाया जाता है।
  3. भेंट: प्रसाद के बाद, कन्याओं को दक्षिणा, वस्त्र या अन्य उपहार देकर उनका आशीर्वाद लिया जाता है।

यह मान्यता है कि कन्या पूजन करने से देवी दुर्गा अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

संधि पूजा का महत्व

महा अष्टमी की पूजा का एक सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा **संधि पूजा** है। यह वह समय होता है जब महा अष्टमी की तिथि समाप्त होती है और महानवमी की तिथि शुरू होती है। यह संक्रमण काल 48 मिनट का होता है।

  • समय: संधि काल अष्टमी के अंतिम 24 मिनट और नवमी के शुरुआती 24 मिनट का होता है।
  • अनुष्ठान: इस दौरान 108 कमल के फूल और 108 दीपक जलाकर देवी को अर्पित किए जाते हैं। यह माना जाता है कि इस समय की गई पूजा भक्तों को असीम शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करती है।

दुर्गा महा अष्टमी का दिन शक्ति, भक्ति और प्रकृति के साथ जुड़ाव का एक अद्भुत संगम है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है और नारी शक्ति सर्वोपरि है।

🔱 नवदुर्गा के नौ स्वरूप

नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों को समर्पित हैं। अष्टमी पर मां महागौरी की पूजा की जाती है। इन नौ देवियों का संक्षिप्त परिचय:

  • प्रथम दिन – मां शैलपुत्री: पर्वतराज हिमालय की पुत्री। शांति और पवित्रता की प्रतीक।
  • द्वितीय दिन – मां ब्रह्मचारिणी: तप की देवी। यह रूप हमें तपस्या और संयम का महत्व सिखाता है।
  • तृतीय दिन – मां चंद्रघंटा: जिनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। साहस और वीरता की प्रतीक।
  • चतुर्थ दिन – मां कूष्मांडा: ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली देवी। ऊर्जा और रचनात्मकता की देवी।
  • पंचम दिन – मां स्कंदमाता: भगवान स्कंद (कार्तिकेय) की माता। वात्सल्य और ममता की प्रतीक।
  • षष्ठम दिन – मां कात्यायनी: ऋषि कात्यायन की पुत्री। यह रूप भक्तों को शक्ति और विजय प्रदान करता है।
  • सप्तम दिन – मां कालरात्रि: यह देवी का रौद्र रूप है, जो सभी बुराइयों और अंधकार का नाश करती हैं।
  • अष्टम दिन – मां महागौरी: यह देवी का शांत और सौम्य रूप है। यह तपस्या और शुद्धि का प्रतीक है।
  • नवम दिन – मां सिद्धिदात्री: सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली देवी। यह रूप मोक्ष और ज्ञान का प्रतीक है।

🕉️ अष्टमी पूजा के विशेष मंत्र

महा अष्टमी पर इन मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। आप अपनी पूजा के दौरान इन मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं:

  • मां महागौरी का मंत्र: ॐ देवी महागौर्यै नमः ||
  • दुर्गा सप्तशती मंत्र: “सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते॥”
  • या देवी सर्वभूतेषु: “या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥”

🔥 हवन सामग्री

महा अष्टमी के दिन हवन करने के लिए इन सामग्रियों का उपयोग किया जाता है:

  • आम की लकड़ी या हवन सामग्री (सूखी)
  • घी
  • कपूर
  • लोबान
  • गुग्गुल
  • चावल, तिल, जौ
  • सुपारी, लौंग, इलायची
  • नारियल (सूखा)
  • लाल कपड़ा
  • अशोक के पत्ते
  • फूल और फल

💖 मां दुर्गा को प्रिय चीजें और भोग

देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए पूजा में कुछ विशेष चीजें अर्पित की जाती हैं, जो उन्हें बहुत प्रिय हैं। इन चीजों को चढ़ाने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

  • रंग और वस्त्र: मां दुर्गा को लाल रंग अत्यंत प्रिय है, जो शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। इसलिए उन्हें लाल चुनरी, लाल वस्त्र और लाल सिंदूर चढ़ाया जाता है।
  • फूल: लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल और गुलाब मां को विशेष रूप से प्रिय हैं। इसके अलावा, कमल, चंपा और चमेली के फूल भी उन्हें अर्पित किए जाते हैं।
  • भोग/प्रसाद: महा अष्टमी के दिन कन्या पूजन में हलवा, पूरी और चना का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा, नवरात्रि के दिनों में मां को नारियल, केला, खीर, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी), और मालपुआ भी चढ़ाया जाता है।
  • अन्य सामग्री: पूजा में अक्षत (चावल), सुपारी, लौंग, लायची, कपूर, और शुद्ध देशी घी का विशेष महत्व है।
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