अश्विन पूर्णिमा व्रत 2025
अश्विन पूर्णिमा का व्रत मंगलवार, 7 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा।
पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ: 6 अक्टूबर, 2025 को दोपहर 12:23 बजेपूर्णिमा तिथि का समापन: 7 अक्टूबर, 2025 को सुबह 09:16 बजे
चंद्र दर्शन और पूजा का समय: 7 अक्टूबर, 2025 को शाम 06:01 बजे
व्रत का आरंभ 6 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि के प्रारंभ से ही हो जाएगा, लेकिन पूजा और व्रत का मुख्य दिन 7 अक्टूबर को रहेगा।
🌟 अश्विन पूर्णिमा का महत्व: कोजागरी पूर्णिमा और अमृत की वर्षा
हिंदू धर्म में, पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है, और अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या अश्विन पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से माता लक्ष्मी और चंद्रमा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
यह माना जाता है कि इस रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है और उसकी किरणों से अमृत बरसता है, जिससे स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है। इसी कारण इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘कौन जाग रहा है?’। मान्यता है कि इस रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और देखती हैं कि कौन जागकर उनकी पूजा कर रहा है, और उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
📜 अश्विन पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियाँ थीं। दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी बेटी व्रत को पूरी तरह से नहीं करती थी। एक बार उसने पूर्णिमा का व्रत अधूरा किया, जिससे उसके बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। उसने अपनी इस समस्या का समाधान एक ज्ञानी पंडित से पूछा।
पंडित ने उसे बताया कि उसने पूर्णिमा का व्रत अधूरा किया था, जिसकी वजह से उसे यह दुख भोगना पड़ रहा है। पंडित की सलाह पर उसने विधि-विधान से पूर्णिमा का व्रत किया और उसके आशीर्वाद से उसका बच्चा जीवित हो गया। यह कथा बताती है कि व्रत को पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करना कितना महत्वपूर्ण है।
🙏 अश्विन पूर्णिमा व्रत पूजा विधि
इस व्रत का पालन करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:
- सुबह का अनुष्ठान: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूरे दिन उपवास रखने का संकल्प लें।
- पूजा की तैयारी: घर के मंदिर में भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्र देव की प्रतिमा स्थापित करें।
- दिन भर का उपवास: दिन भर निराहार रहें या केवल फलाहार करें।
- शाम की पूजा: शाम को, चंद्र दर्शन के बाद, भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। उन्हें खीर, फल और मिठाई का भोग लगाएं।
- चंद्रमा को अर्घ्य: चंद्र दर्शन के समय, एक पात्र में दूध, जल, गंगाजल, चीनी और चावल मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- अमृत वाली खीर: इस दिन चावल और दूध से बनी खीर को रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है, ताकि उसमें अमृत की किरणें समा जाएं। अगले दिन सुबह इस खीर को प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
🌙 खीर का महत्व: आध्यात्मिक और वैज्ञानिक
अश्विन पूर्णिमा की रात खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा का गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है:
- आध्यात्मिक महत्व: माना जाता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है, जो खीर में समा जाता है। इस खीर को खाने से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति और दीर्घायु मिलती है।
- वैज्ञानिक महत्व: इस रात चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, जिससे उसकी किरणें सबसे ज्यादा शक्तिशाली होती हैं। दूध में लैक्टिक एसिड होता है जो चंद्रमा की किरणों से और भी अधिक गुणकारी हो जाता है। चावल और चीनी के साथ मिलकर यह खीर शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होती है।
💰 माता लक्ष्मी की विशेष पूजा
इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय किए जाते हैं:
- पूजा: रात में माता लक्ष्मी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं। कमल का फूल और लाल वस्त्र अर्पित करें।
- मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः” मंत्र का जाप करें।
- दान: इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
📚 पूर्णिमा से जुड़े अन्य तथ्य
पूर्णिमा का दिन केवल व्रत और पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे कई अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक पहलू भी जुड़े हुए हैं:
- सत्यनारायण पूजा: कई हिंदू घरों में पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा का आयोजन किया जाता है, जो सुख-शांति और समृद्धि के लिए बहुत शुभ मानी जाती है।
- स्नान और दान: पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है। इस दिन दान-पुण्य करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।