संकष्टी चतुर्थी व्रत 2025

संकष्टी चतुर्थी 2025
चतुर्थी व्रत
10
अक्टूबर 2025
शुक्रवार
भगवान गणेश
भगवान गणेश

संकष्टी चतुर्थी व्रत शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को रखा जाएगा। इस दिन चंद्रोदय के बाद ही व्रत खोला जाता है।

चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: 9 अक्टूबर, 2025 को रात 10:54 बजे
चतुर्थी तिथि का समापन: 10 अक्टूबर, 2025 को शाम 07:38 बजे
चंद्रोदय का समय: 10 अक्टूबर, 2025 को रात 08:53 बजे

संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश को समर्पित एक अत्यंत शुभ और फलदायी व्रत है। ‘संकष्टी’ का अर्थ है ‘संकट से मुक्ति’ और ‘चतुर्थी’ का अर्थ है ‘चौथा दिन’। हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से भक्तों के जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।

📜 संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती चौसर खेल रहे थे। खेलते समय दोनों के बीच यह विवाद हुआ कि कौन जीत रहा है। निर्णय लेने के लिए, उन्होंने एक मिट्टी का पुतला बनाया और उसमें प्राण डालकर उससे पूछा कि कौन जीत रहा है। उस बालक ने, जिसे वे ‘गणेश’ कहते थे, भगवान शिव का नाम लिया। माता पार्वती को क्रोध आया, क्योंकि उन्हें लग रहा था कि वह जीत रही हैं, और उन्होंने बालक को श्राप दिया कि वह कीचड़ में चला जाए।

बालक ने माता से क्षमा मांगी, जिसके बाद पार्वती ने कहा कि ‘तुम श्राप से मुक्त हो जाओगे, यदि तुम चतुर्थी के दिन व्रत करोगे।’ चतुर्थी का व्रत करने से बालक को श्राप से मुक्ति मिली, और तभी से यह व्रत संकष्टी चतुर्थी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

🙏 संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजा विधि

इस व्रत का पालन अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है।

  1. सुबह का अनुष्ठान: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूरे दिन उपवास रखने का संकल्प लें।
  2. पूजा की तैयारी: भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें सिंदूर, फूल, दुर्वा घास और मोदक (गणेश जी का प्रिय भोग) अर्पित करें।
  3. दिन भर का उपवास: दिन भर निराहार रहें या केवल फलाहार करें। इस दिन तिल का सेवन करना शुभ माना जाता है।
  4. शाम की पूजा और चंद्र दर्शन: शाम को पूजा करें और कथा का पाठ करें। चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
  5. व्रत का पारण: चंद्र दर्शन और पूजा के बाद ही व्रत खोला जाता है। व्रत का पारण मोदक या अन्य सात्विक भोजन से करें।

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

यह व्रत भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है:

  • संकटों से मुक्ति: इस व्रत को करने से भगवान गणेश सभी संकटों और बाधाओं को दूर करते हैं।
  • सुख और समृद्धि: यह व्रत घर में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
  • सौभाग्य और स्वास्थ्य: व्रत करने से सौभाग्य और अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
  • विद्या और ज्ञान: गणेश जी बुद्धि और ज्ञान के देवता हैं। उनकी पूजा करने से विद्यार्थियों को शिक्षा में सफलता मिलती है।

🐘 भगवान गणेश और माता पार्वती की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान गणेश की उत्पत्ति माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से की थी। एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं, तो उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने उस बालक को अपना द्वारपाल बना दिया और निर्देश दिया कि जब तक वह स्नान कर रही हैं, कोई भी अंदर न आए।

इसी बीच भगवान शिव वहाँ आए और अंदर जाने लगे। बालक ने उन्हें रोका। भगवान शिव ने बालक को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। क्रोधित होकर भगवान शिव ने त्रिशूल से बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।

जब माता पार्वती को इस बात का पता चला, तो वह बहुत क्रोधित हुईं। उनके क्रोध को शांत करने के लिए, भगवान शिव ने अपने गणों से कहा कि वे एक ऐसे बालक का सिर ले आएं जिसका मुख उत्तर दिशा की ओर हो। गणों को एक हाथी का बच्चा मिला, जिसका मुख उत्तर की ओर था। भगवान शिव ने उस हाथी के बच्चे का सिर बालक के धड़ पर लगा दिया और उसे पुनर्जीवित कर दिया। तभी से बालक का नाम गणेश पड़ा और उसे सभी देवों में सबसे पहले पूजे जाने का वरदान मिला।

🐘 भगवान गणेश के 12 प्रमुख नाम

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को 12 प्रमुख नामों से पूजा जाता है, जिनमें से प्रत्येक का अपना विशेष महत्व है। इन नामों का जाप करने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि आती है। ये नाम इस प्रकार हैं:

  1. सुमुख: इसका अर्थ है ‘सुंदर मुख वाले’। इस नाम का जाप करने से व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व और समाज में सम्मान मिलता है।
  2. एकदंत: इसका अर्थ है ‘एक दाँत वाले’। यह नाम त्याग और एकाग्रता का प्रतीक है। मान्यता है कि गणेश जी ने महाभारत लिखने के लिए अपना एक दाँत तोड़ दिया था।
  3. कपिल: इसका अर्थ है ‘लाल-भूरे रंग के’। यह नाम ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है।
  4. गजकर्ण: इसका अर्थ है ‘हाथी जैसे कान वाले’। इसका महत्व यह है कि भगवान गणेश अपने बड़े कानों से भक्तों की प्रार्थनाओं को सुनते हैं।
  5. लंबोदर: इसका अर्थ है ‘बड़े पेट वाले’। उनका बड़ा पेट इस बात का प्रतीक है कि वे सभी सुख-दुःख को अपने अंदर समा लेते हैं।
  6. विकट: इसका अर्थ है ‘विकट (कठिन) परिस्थितियों को दूर करने वाले’। इस नाम का जाप करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
  7. विघ्नराज: इसका अर्थ है ‘विघ्नों के राजा’। इस नाम से पता चलता है कि वे सभी बाधाओं को दूर करने की शक्ति रखते हैं।
  8. धूम्रवर्ण: इसका अर्थ है ‘धुएँ जैसे रंग वाले’। यह नाम उनके उस रूप को दर्शाता है जो बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा का नाश करता है।
  9. गजानन: इसका अर्थ है ‘हाथी का मुख वाले’। यह नाम उनकी पहचान है और ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक है।
  10. गणेश: इसका अर्थ है ‘गणों के ईश्वर’। वे सभी गणों के स्वामी हैं।
  11. भालचंद्र: इसका अर्थ है ‘जिनके मस्तक पर चंद्रमा है’। चंद्रमा मन का कारक है, और इस नाम से पता चलता है कि गणेश जी मन को नियंत्रित करने की शक्ति रखते हैं।
  12. वक्रतुण्ड: इसका अर्थ है ‘जिनकी सूंड मुड़ी हुई है’। यह नाम उनकी अद्वितीयता और शक्ति का प्रतीक है।

🌺 गणेश जी के प्रिय मंत्र

संकष्टी चतुर्थी पर इन मंत्रों का जाप करने से भगवान गणेश शीघ्र प्रसन्न होते हैं:

  • गणेश गायत्री मंत्र: “ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात्।”
  • गणेश मूल मंत्र: “ॐ गं गणपतये नमः।”
  • वक्रतुण्ड महाकाय: “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”

🌿 पूजा में विशेष सामग्री का महत्व

भगवान गणेश की पूजा में कुछ विशेष सामग्री का इस्तेमाल होता है, जिनका अपना महत्व है:

  • दुर्वा घास: दुर्वा घास गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। इसे अर्पित करने से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है।
  • मोदक: मोदक गणेश जी का प्रिय भोग है। इसे अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं।
  • सिंदूर: गणेश जी को सिंदूर लगाने से जीवन में सौभाग्य आता है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

🏛️ गणेश जी के प्रमुख मंदिर और उनकी मान्यताएँ

भारत में भगवान गणेश को समर्पित कई प्रसिद्ध और पूजनीय मंदिर हैं। ये मंदिर न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि अपनी भव्य वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाने जाते हैं।

  • सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई: यह मुंबई का सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिर है। यहाँ गणेश जी की मूर्ति की सूंड दाईं ओर मुड़ी हुई है, जिसे सिद्धि पीठ से जुड़ा माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ तुरंत पूरी हो जाती हैं।
  • श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति मंदिर, पुणे: यह मंदिर अपनी भव्यता और समृद्धि के लिए जाना जाता है। इसकी स्थापना एक मिठाई व्यापारी ने अपने बेटे को खोने के बाद की थी। यहाँ गणपति को ‘इच्छापूर्ति गणेश’ के रूप में पूजा जाता है।
  • मोदक गणेश मंदिर, सिद्धटेक: यह महाराष्ट्र के ‘अष्टविनायक’ मंदिरों में से एक है। इसकी मान्यता है कि यहाँ भगवान विष्णु ने गणेश जी की तपस्या कर सिद्धि प्राप्त की थी, इसीलिए इसका नाम सिद्धटेक पड़ा।
  • गणपतिपुले मंदिर, रत्नागिरी: यह मंदिर महाराष्ट्र के कोंकण तट पर स्थित है। यहाँ गणेश जी की प्रतिमा स्वयंभू (खुद प्रकट हुई) मानी जाती है। इस मंदिर की एक और खासियत यह है कि यहाँ गणेश जी की मूर्ति पश्चिम की ओर है, जिसे पश्चिम द्वार का रक्षक माना जाता है।

🍚 मोदक का महत्व: गणेश जी का प्रिय भोग

मोदक भगवान गणेश को सबसे प्रिय है, और इसे उनकी पूजा में विशेष रूप से अर्पित किया जाता है। मोदक का अर्थ है ‘खुशी’ या ‘आनंद’। इसे भगवान गणेश को अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

  • मोदक का आध्यात्मिक महत्व: मोदक का ऊपरी हिस्सा कठोर होता है, जबकि अंदर का हिस्सा नरम और मीठा होता है। यह इस बात का प्रतीक है कि जीवन का बाहरी रूप कैसा भी हो, हमें अपने अंदर प्रेम और मिठास बनाए रखनी चाहिए।
  • इसे अर्पित करने की विधि: संकष्टी चतुर्थी पर मोदक को प्रसाद के रूप में चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। पूजा के बाद इसे भक्तों में बाँटना चाहिए।
  • घर पर मोदक बनाना: मोदक चावल के आटे, गुड़, नारियल और सूखे मेवों से बनाया जाता है। इसे भाप में पकाया जाता है, जिससे यह नरम और स्वादिष्ट बनता है।

गणपति बप्पा मोरया!

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