दशहरा 2025: विजय का पर्व

दशहरा 2025
विजय दशमी
02
अक्टूबर 2025
गुरुवार
भगवान राम और रावण
दशहरा - भगवान राम और रावण
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:29 बजे से दोपहर 03:09 बजे तक

दशहरा, जिसे विजयदशमी भी कहते हैं, गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। इस शुभ मुहूर्त में शस्त्र पूजा और अन्य शुभ कार्य किए जाते हैं।

दशहरा, जिसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, असत्य पर सत्य की विजय और अधर्म पर धर्म की स्थापना का प्रतीक है। यह हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। दशहरा का त्योहार नौ दिवसीय नवरात्रि उत्सव के समापन का भी प्रतीक है और इसके ठीक बीस दिन बाद दिवाली का महापर्व आता है।

💡 नवरात्रि और दशहरा का संबंध

दशहरा का त्योहार नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्रि उत्सव के ठीक बाद आता है। नवरात्रि के दौरान, देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों (नवदुर्गा) की पूजा की जाती है, जो शक्ति का प्रतीक हैं। ये नौ रूप हैं: शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। इन नौ दिनों की पूजा के बाद, दसवां दिन ‘विजयदशमी’ के रूप में मनाया जाता है, जो देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि देवी की शक्ति हर बुराई पर विजय प्राप्त करती है।

📜 दशहरे का महत्व और पौराणिक कथा:

दशहरा मुख्य रूप से दो प्रमुख पौराणिक घटनाओं से जुड़ा है:

भगवान राम और रावण की कहानी:

रामायण की कथा के अनुसार, अयोध्या के राजकुमार भगवान राम को अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार करना पड़ा। वनवास के दौरान, लंका के राक्षस राजा रावण ने छल से उनकी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया। सीता को बचाने के लिए भगवान राम ने वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की। नौ दिनों तक चली इस भीषण युद्ध में, भगवान राम ने दसवें दिन रावण का वध कर धर्म की स्थापना की। यह विजय असत्य पर सत्य की और अहंकार पर विनम्रता की विजय का प्रतीक है।

देवी दुर्गा और महिषासुर की कहानी:

दशहरे का त्योहार शक्ति की देवी, दुर्गा माँ की महिषासुर नामक शक्तिशाली राक्षस पर विजय का भी प्रतीक है। महिषासुर ने अपनी क्रूरता से तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। तब सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों से देवी दुर्गा को प्रकट किया। देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन, यानी दशमी तिथि को उसका संहार किया। इसीलिए इस दिन को ‘विजयदशमी’ भी कहा जाता है।

🙏 दशहरा की पूजा विधि और अनुष्ठान:

दशहरा के दिन कई विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, जिनमें से प्रमुख हैं:

  1. शस्त्र पूजा: इस दिन शस्त्रों (हथियारों) और औजारों की पूजा करने का विशेष महत्व है। यह पूजा इस बात का प्रतीक है कि शक्ति का उपयोग धर्म और न्याय की रक्षा के लिए किया जाना चाहिए। सैनिक, पुलिसकर्मी, और किसान भी अपने-अपने औजारों की पूजा करते हैं।
  2. रावण दहन: शाम के समय, रावण, उसके भाई कुंभकरण और पुत्र मेघनाद के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है। यह बुराई और अहंकार के अंत का प्रतीक है। यह दहन हमें याद दिलाता है कि भले ही बुराई कितनी भी बड़ी और शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में अच्छाई की ही जीत होती है।
  3. अपांर्जन (अपराजिता) पूजा: इस दिन देवी अपराजिता की पूजा भी की जाती है। यह माना जाता है कि उनकी पूजा से भक्तों को सभी कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
  4. शमी वृक्ष और अप्टा पत्तों का आदान-प्रदान: इस दिन शमी वृक्ष की पूजा की जाती है और उसके पत्तों को ‘सोना’ मानकर एक-दूसरे को भेंट किया जाता है। यह परंपरा महाभारत काल से जुड़ी है, जब पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान शमी वृक्ष पर अपने शस्त्र छिपाए थे और विजयदशमी के दिन उन्हें वापस निकाला था। यह प्रेम, सम्मान और समृद्धि के आदान-प्रदान का प्रतीक है।

⚔️ सीमा लंघन और विजय का महत्व:

दशहरे के दिन ‘सीमा लंघन’ का भी विशेष महत्व है। पुराने समय में, राजा-महाराजा इस दिन युद्ध के लिए प्रस्थान करने से पहले अपनी राज्य की सीमा को लांघते थे। यह कार्य विजय की कामना के लिए किया जाता था। यह परंपरा आज भी कुछ स्थानों पर प्रतीकात्मक रूप से निभाई जाती है। यह हमें सिखाता है कि किसी भी बड़े कार्य की शुरुआत शुभ मुहूर्त और पूर्ण तैयारी के साथ करनी चाहिए।

🎯 रावण दहन का गहरा अर्थ:

रावण दहन केवल एक पुतला जलाने की रस्म नहीं है, बल्कि इसका गहरा प्रतीकात्मक महत्व है। रावण के दस सिर दस बुराइयों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें हमें हर साल दशहरे पर जलाने का संकल्प लेना चाहिए:

  • काम: वासना और अनैतिक इच्छाएं।
  • क्रोध: गुस्सा जो विवेक को नष्ट कर देता है।
  • लोभ: लालच जो व्यक्ति को गलत रास्ते पर ले जाता है।
  • मोह: सांसारिक लगाव जो आध्यात्मिक प्रगति को रोकता है।
  • मद: अहंकार जो दूसरों को नीचा दिखाता है।
  • मत्सर: ईर्ष्या और द्वेष।
  • अहंकार: अपने आप को सबसे श्रेष्ठ मानना।
  • आलस्य: कर्म से बचने की प्रवृत्ति।
  • हिंसा: शारीरिक या मानसिक पीड़ा देना।
  • छल: धोखा देना और कपट करना।

🪔 दशहरा और दिवाली का संबंध:

दशहरा और दिवाली का गहरा संबंध है। दशहरा रावण पर भगवान राम की विजय का प्रतीक है, जिसके बाद भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या वापस लौटे थे। दशहरे और दिवाली के बीच 20 दिन का अंतर होता है। दिवाली का पर्व इसी खुशी में मनाया जाता है, जब अयोध्यावासी भगवान राम के स्वागत में घी के दीए जलाते हैं। इस प्रकार, दशहरा दिवाली की शुरुआत का प्रतीक भी है।

🥘 दशहरे के पकवान और उत्सव:

नौ दिनों के व्रत के बाद, दशहरे का दिन उत्सव और पकवानों का होता है। यह एक अवसर है जब लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ मिलकर स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हैं। विभिन्न क्षेत्रों में कुछ खास पकवान बनाए जाते हैं:

  • जलेबी और फाफड़ा: गुजरात में, दशहरे के दिन जलेबी और फाफड़ा खाने की परंपरा है। लोग सुबह-सुबह इन मिठाइयों का नाश्ता करते हैं।
  • लड्डू और पूरनपोली: महाराष्ट्र में, दशहरे पर पूरनपोली और लड्डू बनाए जाते हैं। ये पारंपरिक मिठाइयां त्योहार की मिठास बढ़ाती हैं।
  • छोले-भटूरे और खीर-पूरी: उत्तर भारत में, दशहरे पर रामलीला देखने के बाद लोग अक्सर छोले-भटूरे, पूरी, हलवा या खीर जैसे व्यंजन खाते हैं।
  • अप्पम और वड़ा: दक्षिण भारत में, दशहरे (जिसे विजयादशमी कहते हैं) पर अप्पम और वड़ा जैसे पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जो उत्सव का हिस्सा होते हैं।

🎊 दशहरे के आधुनिक उत्सव:

आजकल, दशहरे का उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी बन गया है। इस दिन देशभर में भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है, जिनमें झूले, स्टॉल, और पारंपरिक कला का प्रदर्शन होता है। रामलीला के मंचन के बाद होने वाला आतिशबाजी का शो लोगों को खूब आकर्षित करता है। लोग नए कपड़े पहनकर और एक-दूसरे को ‘दशहरा की शुभकामनाएं’ कहकर बधाई देते हैं।

🌟 दशहरा और भारत के विभिन्न क्षेत्र:

  • मैसूर का दशहरा: कर्नाटक में मैसूर का दशहरा सबसे भव्य रूप से मनाया जाता है। यहाँ नौ दिनों तक विशेष पूजा और उत्सव होते हैं, और अंतिम दिन एक भव्य जुलूस (जंबो सवारी) निकाला जाता है।
  • कोलकाता का दुर्गा पूजा: पश्चिम बंगाल में दशहरे को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पांच दिनों का उत्सव होता है, जिसमें देवी दुर्गा की भव्य प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं और उनकी पूजा की जाती है। दशमी के दिन, प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
  • उत्तर भारत का रामलीला: उत्तर भारत में, दशहरा नौ दिनों तक चलने वाली ‘रामलीला’ का समापन होता है, जिसमें भगवान राम के जीवन की कहानी का नाट्य रूपांतरण होता है।
  • कुल्लू का दशहरा: हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में दशहरा एक अनोखे तरीके से मनाया जाता है। यहां पर रावण दहन नहीं होता, बल्कि रथ यात्रा निकाली जाती है जिसमें भगवान रघुनाथ (राम) की पालकी को लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। यह उत्सव सात दिनों तक चलता है और यह देवताओं के मिलन का प्रतीक है।
  • बस्तर का दशहरा: छत्तीसगढ़ के बस्तर में दशहरा सबसे लंबा चलने वाला त्योहार है, जो 75 दिनों तक मनाया जाता है। यह दशहरा रावण दहन या राम की विजय से संबंधित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय देवी दंतेश्वरी की पूजा और आदिवासी संस्कृति का जश्न है।

🌾 दशहरा और कृषि का संबंध:

दशहरे का पर्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि कृषि से भी जुड़ा हुआ है। यह खरीफ फसल की कटाई के समय मनाया जाता है। किसान अपनी मेहनत से उगाई हुई फसल के लिए देवी माँ और प्रकृति का आभार व्यक्त करते हैं। यही कारण है कि इस दिन शस्त्रों और औजारों की पूजा की जाती है, जो किसानों के लिए उनकी आजीविका का साधन हैं।

✨ दशहरा का आध्यात्मिक महत्व:

दशहरा केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन में आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि:

  • अंदर के रावण का दहन: रावण के दस सिर दस बुराइयों (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और छल) का प्रतीक हैं। दशहरा हमें अपने भीतर की इन बुराइयों को खत्म करने और एक बेहतर इंसान बनने की प्रेरणा देता है।
  • धर्म पर चलने का संदेश: भगवान राम का जीवन हमें मर्यादा, धर्म, और सच्चाई के रास्ते पर चलने का संदेश देता है। यह पर्व हमें अपने कर्तव्यों और आदर्शों के प्रति समर्पित रहने की याद दिलाता है।
  • शक्ति की पूजा: देवी दुर्गा की पूजा हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए आंतरिक शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह हमें सिखाता है कि हर व्यक्ति में बुराई पर विजय पाने की शक्ति होती है।

📖 रामायण के प्रमुख पात्र:

दशहरा का संबंध रामायण से है, जिसमें कई महत्वपूर्ण पात्र हैं जिनके बिना यह कथा अधूरी है।

भगवान राम:

  • परिचय: अयोध्या के राजकुमार, भगवान विष्णु के सातवें अवतार।
  • महत्व: मर्यादा पुरुषोत्तम, धर्म और नैतिकता के प्रतीक।

माता सीता:

  • परिचय: राजा जनक की पुत्री और भगवान राम की पत्नी, देवी लक्ष्मी का अवतार।
  • महत्व: पवित्रता, पतिव्रता और त्याग की प्रतीक।

लक्ष्मण:

  • परिचय: भगवान राम के छोटे भाई और उनका साया।
  • महत्व: निःस्वार्थ भाईचारा और समर्पण के प्रतीक।

हनुमान:

  • परिचय: भगवान शिव के अवतार और भगवान राम के परम भक्त।
  • महत्व: सेवा, भक्ति और शक्ति के प्रतीक।

रावण:

  • परिचय: लंका का दस सिरों वाला राजा।
  • महत्व: अहंकार, अधर्म और बुराई का प्रतीक, जो अंततः ज्ञान और शक्ति होने के बाद भी नष्ट हुआ।
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