दुर्गा विसर्जन 2025

दुर्गा विसर्जन 2025
दुर्गा विसर्जन
02
अक्टूबर 2025
गुरुवार
माँ दुर्गा की विदाई
दुर्गा विसर्जन
शुभ मुहूर्त: सुबह 06:14 बजे से सुबह 07:44 बजे तक

दुर्गा विसर्जन विजयदशमी के दिन किया जाता है। दशमी तिथि 2 अक्टूबर 2025 को शाम 06:15 बजे समाप्त होगी। सटीक मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंचांग का अवश्य अवलोकन करें।

**गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025** को, दुर्गा पूजा का भव्य उत्सव अपने अंतिम चरण पर पहुंचेगा, जब भक्त देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन करेंगे। यह दिन **विजयदशमी** के रूप में भी जाना जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

दुर्गा विसर्जन का महत्व:

दुर्गा विसर्जन, जिसे सिंदूर खेला के बाद किया जाता है, देवी दुर्गा की कैलाश पर्वत पर उनके पति भगवान शिव के पास वापसी का प्रतीक है। यह कोई दुखद घटना नहीं है, बल्कि यह एक पुनर्मिलन और विदाई का उत्सव है। भक्त इस दिन देवी को भावभीनी विदाई देते हैं और उनसे अगले वर्ष फिर से आने का वादा लेते हैं। विसर्जन के साथ ही नवरात्रि के नौ दिनों की पूजा और साधना का समापन होता है। यह दर्शाता है कि हर चीज़ की शुरुआत होती है और उसका अंत भी होता है।

🙏 दुर्गा विसर्जन की पूजा विधि:

विसर्जन से पहले, कुछ विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं:

  1. षोडशोपचार पूजा: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। देवी दुर्गा की मूर्ति को फिर से स्थापित करें और उन्हें अंतिम बार षोडशोपचार पूजा अर्पित करें। इसमें 16 प्रकार के उपचार शामिल होते हैं, जैसे कि स्नान, वस्त्र, फूल, माला, धूप, दीप, और नैवेद्य (भोग)।
  2. सिंदूर खेला: यह विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक पारंपरिक अनुष्ठान है। विवाहित महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं और देवी दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। यह देवी को उनकी विदाई से पहले सौभाग्य और समृद्धि के लिए धन्यवाद देने का प्रतीक है।
  3. विसर्जन: पूजा और सिंदूर खेला के बाद, देवी को विदा करने का समय आता है। भक्त देवी की मूर्ति को ढोल, नगाड़ों और पारंपरिक नृत्यों के साथ जुलूस में निकालते हैं। मूर्ति को किसी नदी, तालाब या झील में विसर्जित किया जाता है। विसर्जन के बाद, भक्त प्रसाद और मिठाई एक-दूसरे में बांटते हैं।

🔔 दुर्गा विसर्जन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें:

  • पुनर्मिलन का प्रतीक: दुर्गा विसर्जन सिर्फ विदाई नहीं है, बल्कि यह इस विश्वास का प्रतीक है कि देवी अगले साल फिर से आएंगी।
  • पर्यावरण का ध्यान रखें: आजकल, इको-फ्रेंडली मूर्तियों का उपयोग करने का चलन बढ़ रहा है, जिन्हें प्राकृतिक मिट्टी और रंगों से बनाया जाता है ताकि जल प्रदूषण न हो।
  • सकारात्मकता का संचार: विसर्जन के बाद, यह मान्यता है कि देवी दुर्गा अपने साथ सभी नकारात्मकता, बुराई और दुर्भाग्य को ले जाती हैं, और भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती हैं।

⚔️ विजयदशमी का महत्व:

दुर्गा विसर्जन का दिन ही **विजयदशमी** या **दशहरा** कहलाता है। यह त्यौहार दो प्रमुख घटनाओं की याद दिलाता है:

  • दुर्गा की महिषासुर पर विजय: पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन देवी दुर्गा ने दस दिनों के युद्ध के बाद महिषासुर का वध किया था। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
  • भगवान राम की रावण पर विजय: इसी दिन भगवान राम ने अहंकारी रावण का वध कर धर्म की स्थापना की थी। इस दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं।

यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न हों, सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है।


🌟 विभिन्न राज्यों में दुर्गा विसर्जन:

  • पश्चिम बंगाल: पश्चिम बंगाल में, विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का विशेष अनुष्ठान किया जाता है। इसके बाद, देवी की मूर्तियों को ढोल और नगाड़ों के साथ जुलूस में ले जाया जाता है और विसर्जित किया जाता है।
  • ओडिशा: यहाँ, विसर्जन को ‘भासिन’ कहा जाता है। भव्य जुलूस निकाले जाते हैं, जिनमें लोग पारंपरिक संगीत और नृत्य के साथ भाग लेते हैं।
  • उत्तर भारत: उत्तर भारत में, दशहरे के दिन रावण दहन का आयोजन होता है, जिसमें रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। इसके बाद, विजयादशमी की बधाई देकर उत्सव मनाया जाता है।
  • मैसूर (कर्नाटक): मैसूर का दशहरा उत्सव विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ, देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा को एक विशाल रथ में सजाकर निकाला जाता है, जिसे ‘जंबू सवारी’ कहते हैं।

🔄 विसर्जन का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

दुर्गा विसर्जन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी छिपा है।

  • चक्र का प्रतीक: विसर्जन इस बात का प्रतीक है कि जीवन एक चक्र है, जिसमें जन्म, जीवन और मृत्यु शामिल हैं। देवी की मिट्टी की मूर्ति पानी में विलीन होकर वापस प्रकृति में मिल जाती है, जो यह दर्शाता है कि हर चीज को अपने मूल तत्व में लौटना होता है।
  • नकारात्मकता का अंत: यह माना जाता है कि नौ दिनों की पूजा के दौरान देवी सभी नकारात्मक ऊर्जाओं और बुराइयों को अपने अंदर समाहित कर लेती हैं। विसर्जन के साथ, वे इन बुराइयों को अपने साथ ले जाती हैं, जिससे भक्तों का जीवन शुद्ध और सकारात्मक हो जाता है।
  • पर्यावरण संरक्षण: पारंपरिक रूप से मूर्तियों को मिट्टी से बनाया जाता था और प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था, जो पानी में आसानी से घुल जाते थे। यह पर्यावरण के अनुकूल था। आज, पर्यावरण को बचाने के लिए भक्तों को इको-फ्रेंडली मूर्तियों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

💦 शांति जल का महत्व

दुर्गा विसर्जन के बाद ‘शांति जल’ का छिड़काव एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।

  • क्या है शांति जल: यह वह जल है जिसमें विसर्जन के बाद देवी की शक्ति और ऊर्जा शेष रहती है।
  • अनुष्ठान: विसर्जन के बाद, भक्त इस जल को अपने घरों में लाते हैं और परिवार के सदस्यों पर इसका छिड़काव करते हैं।
  • लाभ: यह माना जाता है कि शांति जल का छिड़काव करने से घर में सुख, समृद्धि, शांति और सकारात्मकता आती है, और बुरी शक्तियों से बचाव होता है।

🥁 ढोल और धुनुची नाच का महत्व

दुर्गा विसर्जन के जुलूस में ढोल और धुनुची नाच का विशेष महत्व होता है, खासकर पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत में। यह उत्सव का सबसे जीवंत और ऊर्जावान हिस्सा होता है।

  • ढोल का महत्व: ढोल की थाप देवी की शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है। यह विसर्जन के दौरान माहौल को उत्साह और भक्ति से भर देती है।
  • धुनुची नाच: धुनुची नाच एक पारंपरिक नृत्य है जो पुरुष और महिलाएं दोनों करते हैं। वे धुनुची (मिट्टी के बर्तन) में जलता हुआ कपूर और नारियल का खोल रखते हैं और उसे अपने हाथों में लेकर देवी के सामने नाचते हैं। यह देवी को सम्मान देने का एक तरीका है।

🍬 बिजॉय दशमी के अभिवादन और परंपराएं

विजयदशमी सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक मेल-मिलाप का भी दिन है।

  • कोलाकुली: विसर्जन के बाद, पुरुष एक-दूसरे से गले मिलते हैं, जिसे ‘कोलाकुली’ कहते हैं। यह भाईचारे और एकता का प्रतीक है।
  • चरण स्पर्श और आशीर्वाद: छोटे लोग अपने से बड़ों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं, और बड़े उन्हें ‘शुभकामनाएं’ देते हैं।
  • मिठाई का आदान-प्रदान: इस दिन, भक्त एक-दूसरे के घर जाकर मिठाई और प्रसाद बांटते हैं, जैसे कि संदेश, रसगुल्ला और नारियल के लड्डू।

💖 दुर्गा माँ के 108 नाम और उनके अर्थ

देवी दुर्गा के 108 नाम हैं, जिनमें से हर एक उनके विभिन्न गुणों, शक्तियों और रूपों का प्रतीक है। यहाँ कुछ प्रमुख नामों और उनके अर्थ दिए गए हैं:

  • आद्या (Adya): वह जो सबसे पहली है, सृष्टि की शुरुआत।
  • भवानी (Bhavani): ब्रह्मांड की दाता।
  • चामुंडा (Chamunda): जिन्होंने चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध किया।
  • चित्त रूपा (Chitta Rupa): वह जो चेतना के रूप में है।
  • दुर्गा (Durga): वह जो सभी बाधाओं और दुखों को दूर करती है।
  • गौरी (Gauri): वह जो गोरे रंग की है, शुद्धता का प्रतीक।
  • जया (Jaya): विजय दिलाने वाली।
  • कमला (Kamala): कमल के समान सुंदर।
  • नित्या (Nitya): शाश्वत, अनंत।
  • रुद्राणी (Rudrani): भगवान रुद्र (शिव) की शक्ति।
  • सती (Sati): वह जो सत्य और पवित्र है।
  • सर्वमंगला (Sarvamangala): वह जो सभी के लिए शुभ है।
  • शिवा (Shivaa): शुभ और कल्याणकारी।
  • सुभद्रा (Subhadra): वह जो सभी के लिए सौभाग्य लाती है।
  • अष्टभुजा (Ashtabhuja): आठ भुजाओं वाली।
  • महिषासुरमर्दिनी (Mahishasuramardini): जिन्होंने महिषासुर का वध किया।

दुर्गा विसर्जन का यह दिन हमें सिखाता है कि जीवन एक चक्र है, जिसमें शुरुआत, अंत और फिर से नई शुरुआत होती है। यह बुराई पर अच्छाई की शाश्वत विजय का भी प्रतीक है।

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