शरद नवरात्रि 2025: तिथि, महत्व, कलश स्थापना और पूजा विधि
नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना के साथ होती है। यह मुहूर्त स्थिर लग्न और शुभ योगों में होता है, जो पूजा के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
हिंदू धर्म में, शरद नवरात्रि का पर्व अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। यह नौ दिनों तक चलने वाला उत्सव है, जो माँ दुर्गा के नौ दिव्य स्वरूपों को समर्पित है। यह पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर नवमी तक चलता है, जिसके बाद दसवें दिन विजयादशमी या दशहरा मनाया जाता है। इस दौरान, भक्त उपवास रखते हैं, पूजा-अर्चना करते हैं और देवी से सुख, समृद्धि और शक्ति का आशीर्वाद मांगते हैं।
🗓️ शरद नवरात्रि 2025: दिन और तिथि:
शरद नवरात्रि 2025, 22 सितंबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलेगी। हर दिन माँ के एक विशेष स्वरूप की पूजा की जाएगी।
- पहला दिन (सोमवार, 22 सितंबर): माँ शैलपुत्री की पूजा।
- दूसरा दिन (मंगलवार, 23 सितंबर): माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा.
- तीसरा दिन (बुधवार, 24 सितंबर): माँ चंद्रघंटा की पूजा।
- चौथा दिन (गुरुवार, 25 सितंबर): माँ कूष्मांडा की पूजा.
- पांचवा दिन (शुक्रवार, 26 सितंबर): माँ स्कंदमाता की पूजा।
- छठा दिन (शनिवार, 27 सितंबर): माँ कात्यायनी की पूजा।
- सातवां दिन (रविवार, 28 सितंबर): माँ कालरात्रि की पूजा।
- आठवां दिन (सोमवार, 29 सितंबर): माँ महागौरी की पूजा।
- नवां दिन (मंगलवार, 30 सितंबर): माँ सिद्धिदात्री की पूजा और कन्या पूजन।
- दशवां दिन (बुधवार, 1 अक्टूबर): विजयादशमी या दशहरा।
🙏 कलश स्थापना और नवरात्रि पूजा विधि:
नवरात्रि का पर्व कलश स्थापना के साथ शुरू होता है, जिसे घटस्थापना भी कहते हैं। यह पूजा का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है।
कलश स्थापना की विधि:
- तैयारी: कलश स्थापना के लिए एक साफ जगह चुनें। उस जगह पर गंगाजल छिड़ककर उसे पवित्र करें। फिर एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- जौ बोना: एक मिट्टी के पात्र में जौ बोएं। इस पात्र को चौकी के बीच में रखें।
- कलश सजाना: कलश (तांबा, पीतल या मिट्टी का) लें और उसे गंगाजल, पानी, सुपारी, अक्षत, सिक्का और आम के पत्ते से भरें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं।
- नारियल स्थापित करना: एक जटा वाला नारियल लें और उसे लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें।
- स्थापना: अब इस कलश को जौ बोए हुए पात्र के ऊपर स्थापित करें। यह कलश देवी माँ का प्रतीक माना जाता है।
- संकल्प: हाथ में फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प करें।
स्थापना की शुभ दिशा:
नवरात्रि में कलश या मूर्ति की स्थापना के लिए **उत्तर-पूर्व (ईशान कोण)** दिशा सबसे शुभ मानी जाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, यह दिशा देवताओं का वास मानी जाती है और यहाँ पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
नौ दिनों की पूजा विधि:
कलश स्थापना के बाद, नौ दिनों तक इस प्रकार पूजा करें:
- दैनिक पूजा: रोज सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं। माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की तस्वीर या प्रतिमा को गंगाजल से पवित्र करें।
- आरती और मंत्र जाप: हर दिन माँ के विशेष स्वरूप की आरती करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
माँ दुर्गा का प्रमुख मंत्र:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे॥
यह नवार्ण मंत्र नवरात्रि में बहुत प्रभावशाली माना जाता है।
- भोग: हर दिन माँ को उनके प्रिय भोग अर्पित करें, जैसा कि पहले बताया गया है।
- दुर्गा सप्तशती पाठ: यदि संभव हो तो प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
- अष्टमी या नवमी पर हवन और कन्या पूजन: अष्टमी या नवमी के दिन हवन करें और उसके बाद नौ कन्याओं को भोजन कराएं। उन्हें दक्षिणा और उपहार देकर उनका आशीर्वाद लें।
- विसर्जन: विजयादशमी के दिन कलश को सम्मानपूर्वक उठाएं और जवारे के साथ किसी नदी या पवित्र स्थान पर विसर्जित करें।
🙏 कन्या पूजन: महत्व और पूजा विधि
नवरात्रि के पवित्र दिनों में, विशेष रूप से **अष्टमी (सोमवार, 29 सितंबर) या नवमी (मंगलवार, 30 सितंबर)** तिथि पर, कन्या पूजन का विशेष महत्व है। इस अनुष्ठान में छोटी कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक मानकर उनकी पूजा की जाती है। माना जाता है कि कन्या पूजन के बिना नवरात्रि का व्रत और पूजा अधूरी है।
कन्या पूजन का महत्व
- देवी का साक्षात स्वरूप: कन्याओं को देवी शक्ति का साक्षात रूप माना जाता है। उनकी पूजा करने से माँ दुर्गा बहुत प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं।
- सभी मनोकामनाओं की पूर्ति: शास्त्रों में कहा गया है कि नौ कन्याओं का पूजन करने से माँ दुर्गा के नौ रूपों का आशीर्वाद मिलता है। इससे धन, सुख, समृद्धि, और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- अखंड सौभाग्य और पारिवारिक सुख: माना जाता है कि विधि-विधान से कन्या पूजन करने पर घर में सुख-शांति बनी रहती है और सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं।
कन्या पूजन की विधि
कन्या पूजन के लिए 2 से 10 वर्ष की नौ कन्याओं और एक बालक (जिसे बटुक भैरव का प्रतीक माना जाता है) को आमंत्रित किया जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है:
- स्वागत और चरण धोना: कन्याओं और बटुक के घर आने पर उनका प्रेमपूर्वक स्वागत करें। एक थाली में जल लेकर उनके चरण धोएं और उन्हें साफ आसन पर बिठाएं।
- तिलक और आरती: सभी कन्याओं और बटुक को चंदन या कुमकुम का तिलक लगाएं। इसके बाद उनकी आरती उतारें और उन्हें श्रद्धापूर्वक प्रणाम करें।
- भोजन कराना: कन्याओं को उनकी पसंद का सात्विक भोजन कराएं। पारंपरिक रूप से इस दिन **हलवा, पूरी और काले चने** का प्रसाद बनाया जाता है। भोजन में प्याज और लहसुन का प्रयोग बिल्कुल न करें।
- दक्षिणा और उपहार: भोजन कराने के बाद उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें। फिर अपनी सामर्थ्य के अनुसार उन्हें दक्षिणा (पैसे) और उपहार (जैसे लाल चुनरी, फल, या छोटी-मोटी चीज़ें) भेंट करें।
यह अनुष्ठान पूरे भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ करने से नवरात्रि का पर्व सफल होता है।
क्या भोग लगाया जाता है?
कन्या पूजन में मुख्य रूप से तीन पकवानों का भोग लगाया जाता है, जो माँ दुर्गा को बहुत प्रिय हैं:
- **काले चने:** इन्हें बिना प्याज और लहसुन के बनाया जाता है।
- **सूजी का हलवा:** घी में भुना हुआ स्वादिष्ट हलवा।
- **पूरी:** ताज़ी तली हुई पूरी।
इसके अलावा, आप खीर, फल या अन्य सात्विक मिठाई भी खिला सकते हैं।
🌸 माँ दुर्गा के नौ स्वरूप, रंग और भोग:
नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर स्वरूप का अपना एक विशेष महत्व है।
- पहला दिन: माँ शैलपुत्री (सोमवार, 22 सितंबर)
- स्वरूप: पर्वतराज हिमालय की पुत्री। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में कमल है।
- पूजा विधि और महत्व: इस दिन, भक्त शुद्ध मन से पूजा की शुरुआत करते हैं। शैलपुत्री माता की पूजा से भक्तों को जीवन में दृढ़ता, स्थिरता और साहस मिलता है। यह शक्ति के पहले स्वरूप की आराधना है, जो हमें प्रकृति की शक्ति से जोड़ती है।
- रंग: नारंगी
- भोग: शुद्ध घी से बनी मिठाई जैसे **घी के लड्डू या हलवा**। इससे शरीर में ऊर्जा आती है।
- दूसरा दिन: माँ ब्रह्मचारिणी (मंगलवार, 23 सितंबर)
- स्वरूप: श्वेत वस्त्र धारण किए, एक हाथ में कमंडल और दूसरे में जपमाला लिए हुए।
- पूजा विधि और महत्व: इस दिन, माँ की पूजा तपस्या और वैराग्य के लिए की जाती है। यह स्वरूप हमें जीवन में अनुशासन, संयम और त्याग का महत्व सिखाता है। उनकी पूजा से मन की शुद्धि होती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- रंग: सफेद
- भोग: शक्कर और मिश्री, या **चीनी और दूध से बनी मिठाइयां**।
- तीसरा दिन: माँ चंद्रघंटा (बुधवार, 24 सितंबर)
- स्वरूप: मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र। उनके दस हाथ हैं, जो विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों से सुशोभित हैं।
- पूजा विधि और महत्व: चंद्रघंटा देवी की पूजा से हमें आंतरिक शांति और बाहरी भय से मुक्ति मिलती है। उनका घंटा राक्षसों का नाश करता है, इसलिए इस दिन उनकी पूजा से सभी बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- रंग: लाल
- भोग: खीर या **दूध से बनी मिठाई**। इससे मानसिक शांति मिलती है।
- चौथा दिन: माँ कूष्मांडा (गुरुवार, 25 सितंबर)
- स्वरूप: आठ भुजाओं वाली देवी, जो ब्रह्मांड को अपनी मुस्कान से उत्पन्न करती हैं।
- पूजा विधि और महत्व: यह सृष्टि की देवी हैं। उनकी पूजा से रोग, शोक और कष्टों का नाश होता है। इस दिन भक्त अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति बढ़ाने के लिए इनकी पूजा करते हैं।
- रंग: गहरा नीला
- भोग: मालपुआ या **पूरी-हलवा**। इससे बुद्धि और आरोग्य बढ़ता है।
- पांचवा दिन: माँ स्कंदमाता (शुक्रवार, 26 सितंबर)
- स्वरूप: चार भुजाओं वाली देवी, जो शेर पर विराजमान हैं और उनकी गोद में कार्तिकेय (स्कंद) हैं।
- पूजा विधि और महत्व: स्कंदमाता मातृत्व और प्रेम की प्रतीक हैं। उनकी पूजा से भक्तों को संतान सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन माँ की पूजा करने से भक्तों को कार्तिकेय की पूजा का भी फल मिलता है।
- रंग: पीला
- भोग: केला या **केले से बनी मिठाई**। यह स्वास्थ्य और सौभाग्य का प्रतीक है।
- छठा दिन: माँ कात्यायनी (शनिवार, 27 सितंबर)
- स्वरूप: महर्षि कात्यायन की पुत्री, सिंह पर विराजमान और चार भुजाओं वाली।
- पूजा विधि और महत्व: यह देवी बुराई का नाश करने वाली हैं। उनकी पूजा से नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है और जीवन में सकारात्मकता आती है। इस दिन इनकी पूजा से विवाह में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं।
- रंग: हरा
- भोग: शहद या **शहद से बनी मिठाई**। इससे जीवन में मिठास आती है।
- सातवां दिन: माँ कालरात्रि (रविवार, 28 सितंबर)
- स्वरूप: घने काले रंग वाली, बिखरे बाल और तीन आँखों वाली। गधे पर विराजमान।
- पूजा विधि और महत्व: माँ कालरात्रि को भक्तों के लिए शुभ माना जाता है, क्योंकि वे सभी पापों और शत्रुओं का नाश करती हैं। उनकी पूजा से जीवन से अंधकार और अज्ञान दूर होता है। इस दिन दीपक जलाकर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- रंग: ग्रे
- भोग: गुड़ या **गुड़ से बने पकवान**। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- आठवां दिन: माँ महागौरी (सोमवार, 29 सितंबर)
- स्वरूप: अत्यंत सुंदर और शांत, बैल पर विराजमान।
- पूजा विधि और महत्व: इस दिन, भक्त कन्या पूजन करते हैं। महागौरी की पूजा से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं और उन्हें पवित्रता और शांति मिलती है। यह दिन सुख, समृद्धि और पारिवारिक शांति का प्रतीक है।
- रंग: बैंगनी
- भोग: नारियल या **नारियल से बनी मिठाई**। यह सौभाग्य और पवित्रता का प्रतीक है।
- नवां दिन: माँ सिद्धिदात्री (मंगलवार, 30 सितंबर)
- स्वरूप: कमल पर विराजमान और चार भुजाओं वाली, सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करने वाली।
- पूजा विधि और महत्व: यह नवरात्रि का अंतिम दिन है, जब भक्त सभी सिद्धियों की प्राप्ति के लिए माँ सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। इस दिन हवन और कन्या पूजन के साथ नवरात्रि का समापन होता है। यह दिन ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक है।
- रंग: गुलाबी
- भोग: तिल या **तिल से बनी मिठाई**। इससे ज्ञान और चेतना की वृद्धि होती है।
🎨 नवरात्रि के 9 रंगों का महत्व:
नवरात्रि के हर दिन एक विशेष रंग का उपयोग करने से जीवन में सकारात्मकता और समृद्धि आती है।
- पहला दिन (नारंगी): यह रंग **उत्साह, ऊर्जा और रचनात्मकता** का प्रतीक है। नारंगी रंग पहनकर माँ शैलपुत्री की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में नई उमंग और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- दूसरा दिन (सफेद): सफेद रंग **शांति, पवित्रता और सादगी** का प्रतीक है। इस दिन सफेद वस्त्र पहनकर माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना करने से मन शांत होता है और आध्यात्मिक शुद्धि का अनुभव होता है।
- तीसरा दिन (लाल): लाल रंग **शक्ति, प्रेम और साहस** का प्रतीक है। माँ चंद्रघंटा को लाल रंग बहुत प्रिय है। इस रंग के वस्त्र पहनने से जीवन में उत्साह और निडरता आती है।
- चौथा दिन (गहरा नीला): यह रंग **समृद्धि, शांति और स्थिरता** का प्रतीक है। माँ कूष्मांडा की पूजा में गहरा नीला रंग पहनने से स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है।
- पांचवा दिन (पीला): पीला रंग **सौभाग्य, खुशी और ज्ञान** का प्रतीक है। स्कंदमाता की पूजा में इस रंग का उपयोग करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियाँ और सफलता आती है।
- छठा दिन (हरा): हरा रंग **प्रकृति, नएपन और विकास** का प्रतीक है। माँ कात्यायनी की पूजा में हरा रंग पहनना शुभ माना जाता है, जिससे जीवन में प्रगति और नई शुरुआत होती है।
- सातवां दिन (ग्रे): ग्रे रंग **चुनौतियों का सामना करने और नकारात्मकता को दूर करने** की शक्ति का प्रतीक है। माँ कालरात्रि की पूजा में इस रंग का उपयोग करने से भय दूर होता है।
- आठवां दिन (बैंगनी): बैंगनी रंग **समृद्धि, रचनात्मकता और सम्मान** का प्रतीक है। माँ महागौरी को बैंगनी रंग अर्पित करने से जीवन में सफलता और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
- नवां दिन (गुलाबी): गुलाबी रंग **प्रेम, सद्भाव और दया** का प्रतीक है। माँ सिद्धिदात्री की पूजा में गुलाबी रंग पहनने से प्रेम संबंध मधुर होते हैं और परिवार में शांति बनी रहती है।
⚔️ नवरात्रि की पौराणिक कथा (माँ दुर्गा और महिषासुर):
नवरात्रि का पर्व माँ दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुए भयंकर युद्ध का प्रतीक है। महिषासुर को भगवान ब्रह्मा से वरदान मिला था कि कोई भी देवता या दानव उसे नहीं मार सकता। इस वरदान के अहंकार में महिषासुर ने पृथ्वी और स्वर्गलोक में हाहाकार मचा दिया। सभी देवता भयभीत होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास गए।
तब त्रिदेवों ने अपनी-अपनी शक्तियों का तेज मिलाकर एक दिव्य शक्ति का सृजन किया, जो माँ दुर्गा के रूप में प्रकट हुईं। माँ दुर्गा ने दस भुजाओं के साथ, सभी देवताओं के अस्त्र-शस्त्र धारण करके महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। यह युद्ध नौ दिनों तक चला। हर दिन माँ दुर्गा ने एक नया और उग्र रूप धारण किया। अंत में, दसवें दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
🍽️ नवरात्रि के दौरान उपवास के नियम:
नवरात्रि के नौ दिनों के उपवास का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है। यह शरीर और मन को शुद्ध करने में मदद करता है। उपवास के कुछ सामान्य नियम इस प्रकार हैं:
- सात्विक भोजन: उपवास के दौरान केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। इसमें फल, कुट्टू का आटा, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, आलू और दूध से बने पदार्थ शामिल हैं।
- अन्न का त्याग: नौ दिनों तक अनाज, दाल, प्याज, लहसुन और सामान्य नमक का सेवन नहीं किया जाता है।
- फलाहार: उपवास रखने वाले व्यक्ति दिन में एक या दो बार फलाहार कर सकते हैं।
- नियम का पालन: उपवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना और माँ दुर्गा के मंत्रों का जाप करना महत्वपूर्ण माना जाता है।
🗺️ भारत में नवरात्रि कहाँ-कहाँ मनाई जाती है?
नवरात्रि का पर्व पूरे भारत में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, और हर क्षेत्र की अपनी खास परंपरा और रीति-रिवाज हैं।
- उत्तर भारत: उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में नवरात्रि का पर्व नौ दिनों तक उपवास, पूजा-पाठ और भक्ति गीतों के साथ मनाया जाता है। यहाँ **रामलीला** का मंचन और अष्टमी-नवमी पर **कन्या पूजन** प्रमुख हैं। विजयादशमी के दिन रावण दहन के साथ उत्सव का समापन होता है।
- पश्चिम भारत: गुजरात और महाराष्ट्र में नवरात्रि का मतलब ही **गरबा और डांडिया** है। यह एक पारंपरिक लोक नृत्य है जिसे लोग देवी शक्ति की प्रतिमा के चारों ओर करते हैं। यह उत्सव पूरी रात चलता है और इसमें सभी लोग पारंपरिक पोशाकों में शामिल होते हैं।
- पूर्वी भारत: पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और त्रिपुरा में, नवरात्रि को **दुर्गा पूजा** के नाम से जाना जाता है और यह यहाँ का सबसे बड़ा त्योहार है। इस दौरान शहरों और गाँवों में भव्य पंडाल सजाए जाते हैं, जिनमें माँ दुर्गा की सुंदर मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। विजयादशमी के दिन **सिंदूर खेला** के बाद मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।
- दक्षिण भारत: तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में लोग नवरात्रि के दौरान अपने घरों में **गुड्डे-गुड़ियों का एक मंच (गोलू)** सजाते हैं। कर्नाटक में, मैसूर का दशहरा उत्सव पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, जिसमें हाथियों का भव्य जुलूस निकाला जाता है।
📿 नवरात्रि के महत्वपूर्ण अनुष्ठान और मंत्र:
नवरात्रि के दौरान कुछ विशेष अनुष्ठानों और मंत्रों का जाप करने से देवी माँ शीघ्र प्रसन्न होती हैं:
1. दुर्गा सप्तशती का पाठ
- क्या है: दुर्गा सप्तशती, माँ दुर्गा की महिमा और महिषासुर से उनके युद्ध का वर्णन करने वाला एक प्राचीन ग्रंथ है।
- महत्व: नवरात्रि के नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे घर में सकारात्मकता आती है और सभी बाधाएं दूर होती हैं।
2. सिद्ध कुंजिका स्तोत्र
- क्या है: यह दुर्गा सप्तशती का एक छोटा और शक्तिशाली पाठ है।
- महत्व: माना जाता है कि सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने से दुर्गा सप्तशती के संपूर्ण पाठ का फल प्राप्त होता है और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
3. देवी मंत्र
माँ दुर्गा के कुछ प्रमुख मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है:
- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तु ते॥ (यह मंत्र हर प्रकार की बाधाओं को दूर करता है।)
- या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ (यह मंत्र माँ दुर्गा के शक्ति स्वरूप की आराधना के लिए है।)
- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे॥ (यह नवार्ण मंत्र है, जिसका जाप नवरात्रि में बहुत प्रभावशाली माना जाता है।)
✅ नवरात्रि में क्या करें और क्या न करें:
नवरात्रि के पवित्र दिनों में पूजा-पाठ और व्रत के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है:
क्या करें (Do’s)
- व्रत का पालन: यदि आपने व्रत रखा है, तो उसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाएं। नौ दिनों तक सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- स्वच्छता: घर और पूजा स्थल की साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। रोजाना स्नान करके ही पूजा करें।
- अखंड ज्योति: यदि संभव हो तो नौ दिनों तक अखंड ज्योति (लगातार जलने वाला दीपक) जलाएं।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ: रोजाना दुर्गा सप्तशती या देवी के मंत्रों का पाठ करें।
- कन्या पूजन: अष्टमी या नवमी को नौ कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें उपहार दें।
- दान: गरीबों और जरूरतमंदों को दान-पुण्य करें।
- पवित्रता बनाए रखें: मन और वचन की पवित्रता बनाए रखें, किसी से झगड़ा न करें और झूठ न बोलें।
क्या न करें (Don’ts)
- तामसिक भोजन: नवरात्रि में लहसुन, प्याज, मांसाहार और शराब का सेवन बिल्कुल न करें।
- बाल और नाखून: नौ दिनों तक बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए।
- चमड़े का सामान: पूजा के दौरान चमड़े के बेल्ट, जूते या पर्स का उपयोग न करें।
- काला रंग: पूजा के समय काले रंग के वस्त्र पहनने से बचें।
- निंदा और क्रोध: किसी की निंदा न करें, किसी पर क्रोध न करें और अपशब्दों का प्रयोग न करें।
- अन्न का सेवन: व्रत के दौरान अन्न का सेवन न करें। यदि व्रत नहीं है तो भी सात्विक भोजन ही करें।
- दिन में सोना: नवरात्रि में दिन के समय सोने से बचना चाहिए, और रात में जागरण करके माँ का भजन-कीर्तन करना चाहिए।
🎶 नवरात्रि के लोकप्रिय भजन और गीत:
नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्त देवी की महिमा का गुणगान करने के लिए विभिन्न भजन और गीतों का उपयोग करते हैं। ये गीत न केवल भक्ति का भाव जगाते हैं, बल्कि उत्सव के माहौल को भी जीवंत बनाते हैं। कुछ लोकप्रिय नवरात्रि गीत और भजन इस प्रकार हैं:
- ‘चलो बुलावा आया है’ : यह माता रानी के भक्तों के बीच सबसे प्रसिद्ध और पसंदीदा गीत है।
- ‘ओ जंगल के राजा मेरी मैया को लेके आजा’ : यह गीत देवी माँ को उनके वाहन सिंह पर बैठाकर लाने का आह्वान करता है।
- ‘तेरी चुनरिया लाल’ : यह भजन माँ दुर्गा को लाल चुनरी चढ़ाने और उनकी सुंदरता का वर्णन करता है।
- ‘मेरी अंखियों के सामने ही रहना’ : यह भजन देवी माँ से हमेशा अपने भक्तों के साथ रहने की प्रार्थना करता है।
- ‘तूने मुझे बुलाया शेरांवालिये’ : यह लोकप्रिय गीत भक्तों द्वारा माता के दरबार में बुलाए जाने की खुशी को व्यक्त करता है।
- ‘नवरात्रि में गाएंगे गरबा और डांडिया’ : यह गीत खासकर गुजरात में गरबा और डांडिया के दौरान गाया जाता है।
ये गीत और भजन भक्तों की श्रद्धा और प्रेम को दर्शाते हैं, जिससे नवरात्रि का पर्व और भी पवित्र और आनंदमय हो जाता है।