मासिक शिवरात्रि 2025
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 20 सितंबर 2025, सुबह 05:00 बजे तक
निशीथ काल पूजा का समय – 19 सितंबर की रात 11:30 बजे से 12:20 बजे तक
निशीथ काल का विशेष महत्व: निशीथ काल वह समय होता है जब भगवान शिव ब्रह्मांड में तांडव करते हैं। इस समय की गई पूजा और मंत्र जाप का फल कई गुना अधिक मिलता है।
मासिक शिवरात्रि हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है और भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
मासिक शिवरात्रि का महत्व:
- मासिक शिवरात्रि का व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए यह दिन शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है।
- अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है।
- विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और भय दूर होता है।
- मानसिक शांति और सकारात्मकता: इस दिन भगवान शिव का ध्यान करने से मन शांत होता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- रोगों से मुक्ति: शिवरात्रि का व्रत और पूजा करने से शारीरिक कष्टों और रोगों से मुक्ति मिलती है, तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
पूजा विधि और व्रत के नियम:
- प्रातःकाल स्नान: मासिक शिवरात्रि के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- संकल्प: पूजा से पहले हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें। भगवान शिव से प्रार्थना करें कि आपका व्रत निर्विघ्न संपन्न हो।
- पूजा की तैयारी: पूजा स्थल को साफ करें। एक चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा या शिवलिंग स्थापित करें।
- अभिषेक: भगवान शिव का जलाभिषेक (जल से अभिषेक) और दुग्धाभिषेक (दूध से अभिषेक) करें। इसके बाद दही, घी, शहद, गंगाजल और गन्ने के रस से भी अभिषेक कर सकते हैं।
- जलाभिषेक: जल से अभिषेक करने से मन की शांति और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- दुग्धाभिषेक: दूध से अभिषेक करने से संतान प्राप्ति और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
- दही अभिषेक: दही से अभिषेक करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।
- घी अभिषेक: घी से अभिषेक करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और आरोग्य प्राप्त होता है।
- शहद अभिषेक: शहद से अभिषेक करने से वाणी में मधुरता आती है और समाज में मान-सम्मान बढ़ता है।
- सामग्री अर्पित करें: भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, सफेद चंदन, अक्षत, पुष्प (सफेद फूल विशेष रूप से), फल और मिठाई अर्पित करें। माता पार्वती को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं और लाल फूल अर्पित करें।
- बेलपत्र: भगवान शिव को बेलपत्र अत्यंत प्रिय है। इसे अर्पित करने से तीनों लोकों के पापों का नाश होता है।
- धतूरा और भांग: ये भगवान शिव को बहुत पसंद हैं और इन्हें अर्पित करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- अक्षत (चावल): अखंडित चावल अर्पित करने से धन-धान्य की कमी नहीं होती।
- सफेद चंदन: चंदन अर्पित करने से शीतलता और शांति मिलती है।
- मंत्र जाप: ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। आप महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
- शिव चालीसा और आरती: शिव चालीसा का पाठ करें और भगवान शिव की आरती करें।
- फलाहार/निर्जला व्रत: मासिक शिवरात्रि का व्रत आप अपनी क्षमतानुसार निर्जला (बिना पानी के) या फलाहार (फल और दूध का सेवन करके) रख सकते हैं।
- रात्रि जागरण: रात में भगवान शिव का ध्यान करें, भजन-कीर्तन करें और शिव पुराण का पाठ करें। निशीथ काल में विशेष पूजा करें।
- व्रत का पारण: अगले दिन प्रातःकाल स्नान करके भगवान शिव की पूजा करें और किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराकर स्वयं व्रत का पारण करें।
शिवजी के प्रभावशाली मंत्र और उनके लाभ:
मासिक शिवरात्रि के पावन पर्व पर भगवान शिव के इन मंत्रों का जाप करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं। इन मंत्रों का जाप श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
महामृत्युंजय मंत्र:
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
यह मंत्र अकाल मृत्यु से बचाता है, रोगों का नाश करता है और दीर्घायु प्रदान करता है। यह सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाता है।
शिव मूल मंत्र:
“ॐ नमः शिवाय॥”
यह भगवान शिव का मूल मंत्र है, जो अत्यंत सरल और प्रभावी है। इसका जाप करने से मन शांत होता है, नकारात्मकता दूर होती है और जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिव गायत्री मंत्र:
“ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥”
यह मंत्र भगवान शिव के रुद्र स्वरूप को समर्पित है और जीवन में सकारात्मकता, ज्ञान और शक्ति प्रदान करता है। इसका जाप करने से बुद्धि और विवेक में वृद्धि होती है।
रुद्राष्टकम्:
रुद्राष्टकम् का पाठ या श्रवण करना भी बहुत शुभ माना जाता है। यह भगवान शिव की असीम शक्ति और उनकी महिमा का वर्णन करता है। इसका पाठ करने से सभी भय दूर होते हैं और आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
मासिक शिवरात्रि की पौराणिक कथा:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच अपनी श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। दोनों ही स्वयं को श्रेष्ठ मान रहे थे। तभी वहां एक विशालकाय अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ, जिसका न तो आदि था और न ही अंत। दोनों देवताओं ने इस स्तंभ के आदि और अंत का पता लगाने का निश्चय किया।
भगवान विष्णु वराह रूप धारण कर नीचे की ओर गए, जबकि ब्रह्मा जी हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर उड़े। हजारों वर्षों तक यात्रा करने के बाद भी दोनों में से कोई भी उस अग्नि स्तंभ का आदि या अंत नहीं खोज पाया। अंत में, वे दोनों वापस लौटे और देखा कि वह अग्नि स्तंभ स्वयं भगवान शिव थे।
भगवान शिव ने तब अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर दोनों देवताओं को बताया कि वही सृष्टि के रचयिता, पालक और संहारक हैं। इस घटना के बाद से ही भगवान शिव की श्रेष्ठता स्थापित हुई और इसी दिन को मासिक शिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए यह दिन शिव-पार्वती के मिलन का भी प्रतीक है। इस दिन व्रत रखने से अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भगवान शिव के प्रमुख व्रत और उनका महत्व:
मासिक शिवरात्रि के अलावा, भगवान शिव को समर्पित कई अन्य महत्वपूर्ण व्रत भी हैं, जिनका हिंदू धर्म में विशेष स्थान है।
महाशिवरात्रि:
यह सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण शिवरात्रि है, जो फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन व्रत, रात्रि जागरण और शिव पूजा का विशेष महत्व है। यह व्रत मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है।
सावन सोमवार व्रत:
सावन का महीना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इस महीने के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखने से शिव-पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर के लिए और विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती हैं।
प्रदोष व्रत:
यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय) में शिव पूजा करने से सभी दोषों का निवारण होता है। वार के अनुसार इसके अलग-अलग लाभ होते हैं, जैसे बुध प्रदोष से बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
मासिक शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक की विशेषता:
मासिक शिवरात्रि के पावन अवसर पर भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। यह दिन स्वयं भगवान शिव को समर्पित है, और इस दिन किया गया रुद्राभिषेक सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना अधिक फल प्रदान करता है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- असीम कृपा की प्राप्ति: मासिक शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करने से भगवान शिव और माता पार्वती की असीम कृपा प्राप्त होती है। यह भक्तों के सभी कष्टों को दूर करता है और घर में सुख-समृद्धि लाता है।
- शीघ्र मनोकामना पूर्ति: इस विशेष दिन पर रुद्राभिषेक करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। चाहे वह विवाह, संतान, स्वास्थ्य, धन या करियर से संबंधित हो।
- नकारात्मक ऊर्जा का नाश: रुद्राभिषेक नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करता है और घर में सकारात्मकता का संचार करता है। यह भय, चिंता और तनाव से मुक्ति दिलाता है।
- ग्रह दोषों का निवारण: मासिक शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करने से कुंडली में मौजूद अशुभ ग्रहों के प्रभाव शांत होते हैं, विशेषकर शनि, राहु और केतु के कारण उत्पन्न होने वाले दोषों से राहत मिलती है।
- आध्यात्मिक शुद्धि: यह अनुष्ठान आत्मिक शुद्धि प्रदान करता है और व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है। यह मोक्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
- रोगों से मुक्ति और आरोग्य: इस दिन रुद्राभिषेक करने से असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को उत्तम स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- शिव-पार्वती का आशीर्वाद: चूंकि मासिक शिवरात्रि शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है, इस दिन रुद्राभिषेक करने से पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता आती है और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
इसलिए, जो भक्त मासिक शिवरात्रि के दिन रुद्राभिषेक करते हैं, उन्हें भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं।
भगवान शिव के कुछ अनूठे नाम:
भगवान शिव के अनेक नाम हैं, जिनमें से कुछ उनके अद्वितीय गुणों और विशेषताओं को दर्शाते हैं। प्रदोष व्रत के दिन इन नामों का स्मरण करने से भी विशेष पुण्य मिलता है:
- आशुतोष: इसका अर्थ है ‘जो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं’। वे अपने भक्तों की थोड़ी सी भक्ति से भी संतुष्ट हो जाते हैं।
- नटराज: शिव का यह रूप ब्रह्मांडीय नृत्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो सृष्टि और विनाश के चक्र का प्रतीक है।
- अर्धनारीश्वर: यह शिव और पार्वती का संयुक्त रूप है, जो पुरुष और प्रकृति के बीच के सामंजस्य और समानता को दर्शाता है।
- व्योमकेश: इसका अर्थ है ‘जिसके बाल आसमान तक फैले हों’। यह उनकी सर्वव्यापी और निराकार प्रकृति को दर्शाता है।
- चंद्रमौलेश्वर: इसका अर्थ है ‘जिसके मस्तक पर चंद्रमा विराजमान हो’।
- गंगाधर: यह नाम गंगा नदी को अपनी जटाओं में धारण करने के कारण पड़ा।
- नीलकंठ: समुद्र मंथन के दौरान विष पीने के कारण उनका गला नीला हो गया था, इसलिए उन्हें यह नाम दिया गया।
मासिक शिवरात्रि पर शिव मंदिरों में विशेष आयोजन:
मासिक शिवरात्रि के दिन देश भर के शिव मंदिरों में विशेष आयोजन और पूजा-अर्चना की जाती है। भक्तगण बड़ी संख्या में मंदिरों में जाकर भगवान शिव के दर्शन करते हैं और अभिषेक करते हैं:
- विशेष अभिषेक: मंदिरों में शिवलिंग का विशेष अभिषेक किया जाता है, जिसमें दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल और विभिन्न औषधियों का प्रयोग होता है।
- भजन-कीर्तन और आरती: दिनभर भजन-कीर्तन का आयोजन होता है और शाम को महाआरती की जाती है, जिसमें भक्तगण उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।
- शिव पुराण कथा: कई मंदिरों में शिव पुराण की कथा का पाठ किया जाता है, जिसे सुनने से भक्तों को आध्यात्मिक ज्ञान और शांति मिलती है।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है।
मासिक शिवरात्रि पर ध्यान और योग का महत्व:
मासिक शिवरात्रि केवल पूजा-पाठ और व्रत का ही दिन नहीं, बल्कि आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक विकास का भी अवसर है। इस दिन ध्यान और योग का अभ्यास करने से मन को एकाग्र करने और आंतरिक शांति प्राप्त करने में मदद मिलती है:
- मन की एकाग्रता: ध्यान और योग से मन शांत होता है, नकारात्मक विचार दूर होते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- तनाव मुक्ति: यह दिन तनाव और चिंता से मुक्ति पाने के लिए उत्तम है। ध्यान और योग मानसिक शांति प्रदान करते हैं।
- आत्मिक संबंध: भगवान शिव से आत्मिक संबंध स्थापित करने के लिए ध्यान एक शक्तिशाली माध्यम है।
मासिक शिवरात्रि पर क्या करें और क्या न करें:
क्या करें:
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि चढ़ाएं।
- ‘ॐ नमः शिवाय’ और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- शिव चालीसा और शिव आरती का पाठ करें।
- मंदिर जाकर भगवान शिव के दर्शन करें।
- गरीबों और जरूरतमंदों को दान करें।
- मन को शांत रखें और सकारात्मक विचार लाएं।
- रात्रि जागरण कर भगवान शिव का ध्यान करें।
क्या न करें:
- तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा) का सेवन न करें।
- किसी का अपमान न करें और अपशब्दों का प्रयोग न करें।
- दिन में सोना वर्जित है (विशेषकर व्रत रखने वालों के लिए)।
- शिवलिंग पर तुलसी, हल्दी और कुमकुम न चढ़ाएं।
- व्रत के दौरान अनाज का सेवन न करें (फलाहार कर सकते हैं)।
- नकारात्मक विचार और क्रोध से बचें।
मासिक शिवरात्रि के दिन दान का महत्व:
मासिक शिवरात्रि के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन अपनी क्षमतानुसार दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। आप निम्नलिखित वस्तुओं का दान कर सकते हैं:
- अनाज: गरीबों को अनाज दान करने से घर में अन्न की कमी नहीं होती।
- वस्त्र: जरूरतमंदों को वस्त्र दान करने से सुख-समृद्धि आती है।
- धन: अपनी क्षमतानुसार धन दान करने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।
- दूध और फल: मंदिर में या गरीबों को दूध और फल दान करना शुभ माना जाता है।
- रुद्राक्ष: रुद्राक्ष दान करने से आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।
मासिक शिवरात्रि और ज्योतिष:
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मासिक शिवरात्रि का दिन ग्रह दोषों को शांत करने और कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो या शनि, राहु, केतु जैसे ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो, तो मासिक शिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा करने से इन दोषों से मुक्ति मिलती है। शिवजी को चंद्रदेव का अधिपति माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा से चंद्र संबंधी दोष दूर होते हैं।
मासिक शिवरात्रि के व्रत का पारण:
मासिक शिवरात्रि के व्रत का पारण अगले दिन यानी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को किया जाता है। पारण हमेशा सूर्योदय के बाद और चतुर्दशी तिथि समाप्त होने से पहले करना चाहिए। यदि चतुर्दशी तिथि अगले दिन सुबह समाप्त हो जाती है, तो पारण उसी अवधि में करें। पारण के लिए स्नान करके भगवान शिव की पूजा करें और किसी ब्राह्मण या गरीब व्यक्ति को भोजन कराकर स्वयं व्रत का पारण करें।
मासिक शिवरात्रि के व्रत के लाभों का सारांश:
संक्षेप में, मासिक शिवरात्रि का व्रत और पूजा जीवन में कई प्रकार के लाभ प्रदान करती है:
- सुख-समृद्धि: भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- मनोकामना पूर्ति: सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अटके हुए कार्य सफल होते हैं।
- पितृ दोष से मुक्ति: पितरों को शांति मिलती है और पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
- स्वास्थ्य और आरोग्य: शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
- ज्ञान और बुद्धि: भगवान शिव की कृपा से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है।
- मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
मासिक शिवरात्रि का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धापूर्वक किए गए कर्मों से व्यक्ति को पितरों और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।