कन्या संक्रांति 2025
पुण्य काल मुहूर्त – 17 सितंबर 2025, सुबह 06:15 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
महापुण्य काल मुहूर्त – 17 सितंबर 2025, सुबह 10:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
यह दिन सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश का प्रतीक है और पितृ पक्ष के दौरान आता है, इसलिए इसका विशेष महत्व है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, जब सूर्य देव एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उस दिन को संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। बुधवार, 17 सितंबर 2025 को सूर्य देव सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर क्योंकि यह पितृ पक्ष के दौरान आता है। आइए, जानते हैं कन्या संक्रांति के महत्व, पूजा विधि और इस दिन के नियमों के बारे में।
☀️ कन्या संक्रांति का महत्व
कन्या संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा का विशेष विधान है। इस दिन सूर्य को जल अर्पित करने से स्वास्थ्य, सम्मान और सफलता की प्राप्ति होती है। चूंकि यह दिन पितृ पक्ष में आता, इसलिए इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध और दान-पुण्य करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन किए गए दान से पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह दिन विशेष रूप से कन्या राशि के लोगों के लिए शुभ होता है, क्योंकि सूर्य उनके जीवन में सकारात्मकता लाता है।
☀️ भगवान सूर्य के बारे में
सूर्य देव हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं और उन्हें प्रत्यक्ष देव माना जाता है। वे ब्रह्मांड की ऊर्जा और जीवन के स्रोत हैं।
- पौराणिक महत्व: सूर्य देव को भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माना जाता है और उन्हें सृष्टि के पालनहार के रूप में पूजा जाता है। वे नवग्रहों के राजा हैं और उनकी पूजा से सभी ग्रह शांत होते हैं।
- सप्त अश्व रथ: पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश में भ्रमण करते हैं। ये सात घोड़े सप्ताह के सात दिनों और इंद्रियों का प्रतीक हैं।
- सूर्य नमस्कार: सूर्य को नमस्कार करना एक प्राचीन योग और पूजा पद्धति है, जिसे करने से शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता है।
- मंत्र: सूर्य देव की पूजा का सबसे प्रभावी मंत्र **”ॐ घृणि सूर्याय नमः”** है, जिसका जाप करने से तेज, ऊर्जा और सम्मान की प्राप्ति होती है।
☀️ भगवान सूर्य के प्रमुख नाम और उनका अर्थ
भगवान सूर्य को उनके गुणों और कार्यों के आधार पर कई नामों से जाना जाता है। उनके कुछ प्रमुख नाम और उनके गहरे अर्थ इस प्रकार हैं:
- आदित्य: अदिति के पुत्र होने के कारण उन्हें आदित्य कहा जाता है।
- दिनकर: दिन की शुरुआत करने वाले या दिन के स्वामी।
- भास्कर: प्रकाश देने वाले या रोशनी बिखेरने वाले।
- रवि: ब्रह्मांड में ऊर्जा और चमक प्रदान करने वाले।
- सविता: उत्पन्न करने वाले या जीवन प्रदान करने वाले।
- मित्र: सभी प्राणियों के मित्र और कल्याणकारी।
- अर्क: प्रकाश की किरण या पूजनीय।
👨👩👧👦 भगवान सूर्य के परिवार और उनसे जुड़ी कथाएं
सूर्य देव का परिवार भी पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनके परिवार के सदस्यों से जुड़ी कुछ रोचक बातें इस प्रकार हैं:
- पत्नी: सूर्य देव की पत्नी का नाम संज्ञा है। उनकी एक छाया पत्नी भी थीं, जिनका नाम छाया था।
- पुत्र: सूर्य देव के प्रमुख पुत्रों में यम (धर्मराज), यमी (यमुना नदी), शनि देव और अश्विनी कुमार शामिल हैं। शनि देव को सूर्य पुत्र के रूप में जाना जाता है, जिनकी कथा बहुत प्रसिद्ध है।
- कर्ण की कथा: महाभारत के महायोद्धा कर्ण भी सूर्य देव के ही पुत्र थे, जिनका जन्म कुंती के वरदान से हुआ था।
- हनुमान जी: हनुमान जी ने सूर्य देव को अपना गुरु बनाया था। उन्होंने सूर्य देव से सभी वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था।
✨ ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व
संक्रांति का व्रत और पूजा न केवल धार्मिक बल्कि ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
- स्वास्थ्य और ऊर्जा: सूर्य देव की पूजा करने और उन्हें जल अर्पित करने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। सूर्य की किरणें विटामिन डी का प्राकृतिक स्रोत हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है।
- मन का संतुलन: ज्योतिष के अनुसार, सूर्य आत्मा और पिता का प्रतिनिधित्व करता है। संक्रांति के दिन सूर्य की पूजा करने से मन में शांति और संतुलन बना रहता है, और पिता के साथ संबंध बेहतर होते हैं।
- सकारात्मकता का संचार: संक्रांति एक राशि से दूसरी राशि में सूर्य के प्रवेश का प्रतीक है, जो जीवन में सकारात्मक बदलावों को प्रेरित करता है। इस दिन की पूजा और ध्यान से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- ऋतु परिवर्तन: कन्या संक्रांति के साथ ही शरद ऋतु की शुरुआत होती है। इस समय मौसम में बदलाव आता है, और यह शरीर को नए मौसम के अनुकूल ढालने के लिए तैयार करता है।
⚒️ विश्वकर्मा पूजा का महत्व
कन्या संक्रांति के दिन ही भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाती है। भगवान विश्वकर्मा को ब्रह्मांड का दिव्य वास्तुकार (Divine Architect) माना जाता है।
- कौन हैं विश्वकर्मा? भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के लिए महलों, अस्त्र-शस्त्रों और रथों का निर्माण किया था। वे इंजीनियरिंग, शिल्प कला और वास्तुकला के देवता हैं।
- पूजा का महत्व: इस दिन कारीगर, इंजीनियर, मजदूर और सभी तकनीकी पेशेवर अपने औजारों और मशीनों की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पूजा से काम में सफलता मिलती है और व्यवसाय में तरक्की होती है।
- शुभता का प्रतीक: विश्वकर्मा पूजा करने से घर और कार्यस्थल पर शुभता आती है और सुरक्षा बनी रहती है।
📍 भगवान सूर्य के प्रमुख मंदिर
भारत में भगवान सूर्य को समर्पित कई प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर हैं। ये मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए जाने जाते हैं।
- कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा: 13वीं शताब्दी में बना यह मंदिर एक विशाल रथ के आकार में है, जिसमें 12 जोड़ी पहिये और 7 घोड़े हैं। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) है और अपनी भव्य वास्तुकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
- मोढेरा सूर्य मंदिर, गुजरात: यह 11वीं शताब्दी में चालुक्य वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर अपनी अद्भुत नक्काशी और वास्तुकला के लिए जाना जाता है, जिसमें एक विशाल सूर्य कुंड भी शामिल है।
- मार्तंड सूर्य मंदिर, जम्मू-कश्मीर: 8वीं शताब्दी में बना यह मंदिर अब खंडहर हो चुका है, लेकिन इसकी भव्यता आज भी देखने लायक है। यह कश्मीर की वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है।
- देव सूर्य मंदिर, बिहार: बिहार के औरंगाबाद जिले में स्थित यह मंदिर अपनी अनूठी पश्चिमाभिमुख दिशा के लिए जाना जाता है, जो इसे अन्य सूर्य मंदिरों से अलग बनाती है।
- अरसावल्ली सूर्य मंदिर, आंध्र प्रदेश: यह मंदिर अपनी विशेष बनावट के लिए प्रसिद्ध है, जहां साल में दो बार (संक्रांति के समय) सूर्य की किरणें सीधे गर्भगृह में स्थित सूर्य प्रतिमा पर पड़ती हैं।
🎶 भगवान सूर्य के शक्तिशाली मंत्र और उनके लाभ
सूर्य देव की पूजा में मंत्रों का जाप करना बहुत ही शुभ और प्रभावशाली माना जाता है। यहां कुछ प्रमुख सूर्य मंत्र और उनके लाभ दिए गए हैं:
- सूर्य मूल मंत्र: **ॐ घृणि सूर्याय नमः।** इस मंत्र का नियमित जाप करने से व्यक्ति को तेज, सम्मान और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। यह मंत्र कुंडली में सूर्य को मजबूत बनाता है।
- सूर्य गायत्री मंत्र: **ॐ आदित्याय विद्महे, दिवाकराय धीमहि, तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।** यह मंत्र मानसिक शांति, बुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति के लिए बहुत फलदायी माना जाता है। इसके जाप से नकारात्मकता दूर होती है।
- आदित्य हृदय स्तोत्र: यह एक शक्तिशाली स्तोत्र है जिसका पाठ करने से सभी शत्रुओं का नाश होता है और हर कार्य में विजय प्राप्त होती है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक है।
- आरोग्य मंत्र: **ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्रकिरणाय ऐं अतुलबलपराक्रमाय नवग्रहदशदिक्पाल लक्ष्मीदेवतायै नमः।** यह मंत्र विशेष रूप से उत्तम स्वास्थ्य और रोग-मुक्ति के लिए जपा जाता है।
📜 पूजा विधि
कन्या संक्रांति के दिन की पूजा विधि इस प्रकार है:
- पवित्र स्नान: संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- सूर्य पूजा: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर सूर्य देव को जल अर्पित करें। जल में लाल चंदन, लाल फूल और अक्षत मिलाएं। **”ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः”** मंत्र का जाप करें।
- पितृ तर्पण: पितृ पक्ष के कारण इस दिन पितरों के लिए तर्पण अवश्य करें। जल में काले तिल मिलाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पितरों को अर्घ्य दें।
- विष्णु पूजा: इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करना भी बहुत शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को पीले फूल, तुलसी दल और पीली मिठाई का भोग लगाएं।
- ब्राह्मण भोजन: संभव हो तो किसी योग्य ब्राह्मण को घर बुलाकर भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
🎁 कन्या संक्रांति पर दान
इस दिन दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। दान करने से पितरों को शांति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
- अनाज और वस्त्र: जरूरतमंद लोगों को गेहूं, चावल, दाल और वस्त्र दान करें।
- फल और मिठाई: फलों और मिठाइयों का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
- काला तिल और जौ: पितरों की शांति के लिए काले तिल और जौ का दान करें।
- घी और गुड़: सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए घी और गुड़ का दान करें।
✅ व्रत के नियम: क्या करें और क्या न करें
क्या करें:
- पवित्र नदियों में स्नान करें।
- सूर्य देव को जल अर्पित करें।
- पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करें।
- जरूरतमंदों को दान दें।
- मन को शांत और पवित्र रखें।
क्या न करें:
- तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा) का सेवन न करें।
- इस दिन लड़ाई-झगड़ा और किसी का अपमान न करें।
- झूठ बोलने से बचें।
- सूर्य अस्त होने के बाद भोजन न करें।
कन्या संक्रांति का दिन सूर्य और पितरों दोनों की कृपा प्राप्त करने का एक अद्भुत अवसर है। इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजा और दान-पुण्य करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और घर में सुख-समृद्धि आती है।