भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 2025

भाद्रपद पूर्णिमा 2025
भाद्रपद पूर्णिमा
7
सितंबर 2025
रविवार
भगवान सत्यनारायण
भाद्रपद पूर्णिमा
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ6 सितंबर 2025, शाम 04:30 बजे से

पूर्णिमा तिथि समाप्त7 सितंबर 2025, शाम 04:00 बजे तक

विशेष योग: रविवार

यह तिथि रविवार को पड़ने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि रविवार सूर्य देव को समर्पित है और पूर्णिमा तिथि चंद्रमा से संबंधित है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

भाद्रपद पूर्णिमा, हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा और व्रत का विशेष विधान है, साथ ही यह तिथि पितृ पक्ष के आरंभ का भी प्रतीक है।

भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व:

  • सत्यनारायण भगवान की पूजा: यह दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण स्वरूप की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा का पाठ करने और व्रत रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • पितृ पक्ष का आरंभ: भाद्रपद पूर्णिमा से ही 16 दिवसीय पितृ पक्ष का आरंभ होता है। इस दिन से पितरों को श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है और उनके निमित्त तर्पण, श्राद्ध और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं।
  • उमा-महेश्वर व्रत: कुछ क्षेत्रों में इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है, जिसमें भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह व्रत वैवाहिक सुख और संतान प्राप्ति के लिए फलदायी माना जाता है।
  • चंद्र दर्शन और अर्घ्य: पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं में होता है। इस दिन चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अर्घ्य देने से मानसिक शांति मिलती है और चंद्र दोष दूर होते हैं।
  • पुण्य और मोक्ष: इस दिन दान-पुण्य और धार्मिक कार्य करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

🙏 पूजा विधि और व्रत के नियम:

  1. प्रातःकाल स्नान: पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
  2. संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर व्रत का संकल्प लें।
  3. पूजा स्थल की तैयारी: घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में एक चौकी स्थापित करें। उस पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। भगवान सत्यनारायण और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  4. सत्यनारायण भगवान की पूजा:
    • सबसे पहले दीपक प्रज्वलित करें।
    • भगवान सत्यनारायण को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल का मिश्रण) से स्नान कराएं।
    • उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, फूल, तुलसी दल, फल (केला विशेष रूप से), और नैवेद्य (पंचामृत, पंजीरी) अर्पित करें।
    • सत्यनारायण कथा का पाठ करें या सुनें।
    • भगवान सत्यनारायण की आरती करें।
  5. पितरों का तर्पण: पूर्णिमा तिथि से पितृ पक्ष का आरंभ होता है। इसलिए इस दिन पितरों के निमित्त तर्पण अवश्य करें। दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल, काले तिल और जौ मिलाकर पितरों को अर्घ्य दें।
  6. चंद्रमा को अर्घ्य: शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को दूध, जल, अक्षत और सफेद फूल मिलाकर अर्घ्य दें।
  7. दान: अपनी क्षमतानुसार अन्न, वस्त्र, फल, मिठाई या धन का दान करें। ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराएं।
  8. व्रत का पारण: व्रत का पारण अगले दिन सुबह स्नान के बाद करें।

📜 सत्यनारायण भगवान की कथा:

सत्यनारायण कथा भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की महिमा का वर्णन करती है। यह कथा विभिन्न अध्यायों में विभाजित है, जिनमें अलग-अलग पात्रों के माध्यम से सत्य के महत्व और व्रत के फल को दर्शाया गया है।

पहला अध्याय:

एक बार नारद मुनि पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने देखा कि पृथ्वी पर लोग अनेक प्रकार के दुखों से पीड़ित हैं। तब वे भगवान विष्णु के पास गए और उनसे इन दुखों को दूर करने का उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने नारद मुनि को सत्यनारायण व्रत का महत्व बताया और कहा कि इस व्रत को करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्त हो जाता है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भगवान ने नारद को बताया कि इस व्रत को करने से धन, संतान, सौभाग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

दूसरा अध्याय:

एक गरीब ब्राह्मण था जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन यापन करता था। वह बहुत दुखी था। भगवान सत्यनारायण एक वृद्ध ब्राह्मण के रूप में उसके पास आए और उसे सत्यनारायण व्रत करने की सलाह दी। ब्राह्मण ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया और कथा सुनी। इसके प्रभाव से उसकी गरीबी दूर हो गई और वह सुखी जीवन व्यतीत करने लगा। उसने नियमित रूप से यह व्रत करना शुरू कर दिया और अपने परिवार तथा पड़ोसियों को भी इसका महत्व बताया।

तीसरा अध्याय:

एक लकड़हारा था जो जंगल से लकड़ियाँ काटकर बेचता था। वह भी गरीबी में जीवन बिता रहा था। एक दिन उसने एक ब्राह्मण को सत्यनारायण कथा करते देखा। उसने ब्राह्मण से इस व्रत के बारे में पूछा और विधि जानकर स्वयं भी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसे धन की प्राप्ति हुई और उसके जीवन में सुख-समृद्धि आ गई। लकड़हारे ने भी इस व्रत को अपने मित्रों और परिवार के साथ साझा किया।

चौथा अध्याय:

एक राजा था जिसका नाम उल्कामुख था। वह बहुत धार्मिक और सत्यवादी था। उसकी पत्नी लीलावती और पुत्री कलावती थीं। राजा ने सत्यनारायण व्रत का संकल्प लिया, लेकिन कथा सुनने से पहले ही वह अपनी पुत्री के विवाह के लिए चला गया। व्रत का अपमान होने के कारण उसे और उसके परिवार को अनेक कष्ट सहने पड़े। बाद में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने श्रद्धापूर्वक व्रत किया, तो उनके कष्ट दूर हो गए और उन्हें पुनः सुख की प्राप्ति हुई।

पांचवा अध्याय:

एक साधु और उसके शिष्य थे। साधु ने सत्यनारायण व्रत किया और कथा सुनी। उसके बाद वह अपने शिष्य के साथ भिक्षा मांगने गया। रास्ते में उन्हें एक व्यापारी मिला जिसका नाम साधुवैश्य था। साधुवैश्य ने साधु से व्रत के बारे में पूछा और विधि जानकर स्वयं भी व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उसके व्यापार में वृद्धि हुई और उसे बहुत धन मिला। लेकिन एक बार जब वह अपने घर आया तो उसने भगवान का प्रसाद नहीं खाया और उसका अपमान किया, जिससे उसे और उसके परिवार को फिर से कष्टों का सामना करना पड़ा। बाद में जब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने फिर से श्रद्धापूर्वक व्रत किया, तो उनके कष्ट दूर हो गए और उन्हें सुख-समृद्धि मिली।

यह कथा हमें सिखाती है कि सत्यनारायण व्रत को श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए और प्रसाद का अपमान नहीं करना चाहिए। भगवान सत्यनारायण अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, बशर्ते वे सच्चे मन से उनकी पूजा करें और सत्य के मार्ग पर चलें।

📍 सत्यनारायण भगवान के प्रमुख मंदिर:

भारत में भगवान सत्यनारायण के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहाँ भक्तगण दूर-दूर से दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख मंदिरों का विवरण दिया गया है:

1. अन्नवरम सत्यनारायण स्वामी मंदिर, आंध्र प्रदेश:

  • स्थान: यह मंदिर आंध्र प्रदेश के काकीनाडा जिले में रत्नागिरी पहाड़ी पर स्थित है। यह दक्षिण भारत के सबसे प्रसिद्ध और धनी मंदिरों में से एक है, जिसे तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • विशेषता: मंदिर द्रविड़ शैली में निर्मित है और इसका मुख्य गर्भगृह एक रथ के आकार में है, जिसके चार कोनों पर चार पहिए हैं। यह मंदिर भगवान सत्यनारायण, श्री अनंत लक्ष्मी और भगवान शिव के संयुक्त रूप को समर्पित है। यहाँ सत्यनारायण व्रतम् करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • इतिहास: इस मंदिर का निर्माण 1891 में राजा रामनारायण ने करवाया था, जिन्हें भगवान ने सपने में मंदिर बनाने का आदेश दिया था।

2. श्री सत्यनारायण स्वामी देवस्थानम, बेंगलुरु, कर्नाटक:

  • स्थान: यह मंदिर बेंगलुरु, कर्नाटक में स्थित है और यह भी भगवान सत्यनारायण के प्रमुख मंदिरों में से एक है।
  • विशेषता: यहाँ भी भक्तगण अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए सत्यनारायण पूजा और व्रत करते हैं।

3. श्री सत्यनारायण मंदिर, वाराणसी, उत्तर प्रदेश:

  • स्थान: यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है।
  • विशेषता: यह एक प्राचीन मंदिर है जहाँ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्तियों के साथ राम दरबार भी स्थापित है। यह मंदिर लगभग 115 वर्ष पुराना है और यहाँ प्रत्येक वर्ष विभिन्न उत्सव आयोजित होते हैं।
  • इतिहास: इसका निर्माण संवत 1968 (लगभग 1911 ईस्वी) में बाबू केशव दास शाह ने अपने पिता के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए करवाया था।

4. श्री सत्यनारायण मंदिर, मुंगेली, छत्तीसगढ़:

  • स्थान: यह मंदिर छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिला मुख्यालय के मलहापारा (राजेंद्र वार्ड) में स्थित है।
  • विशेषता: कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, यह पूरे देश में भगवान सत्यनारायण का दूसरा सबसे अनूठा मंदिर है। यहाँ स्थापित प्रतिमा अन्य मंदिरों से भिन्न मानी जाती है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है।

5. श्री सत्यनारायण मंदिर, कोयल, निम्बी जोधा, नागौर, राजस्थान:

  • स्थान: यह मंदिर राजस्थान के नागौर जिले के निम्बी जोधा के पास कोयल गाँव में स्थित है।
  • विशेषता: यह मंदिर दूर-दराज से आने वाले भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यहाँ भगवान सत्यनारायण और बालाजी महाराज की कृपा से हर इच्छा पूरी होती है।
  • इतिहास: इसका निर्माण सारडा परिवार के एक सेठ जी ने करवाया था।

6. श्री सत्यनारायण मंदिर, बांदनवाड़ा, राजस्थान:

  • स्थान: यह प्राचीन मंदिर NH 48 पर बांदनवाड़ा के मुख्य चौराहे पर स्थित है।
  • विशेषता: यह मंदिर भी भगवान सत्यनारायण के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है।

7. श्री सत्यनारायण मंदिर, रायवाला, देहरादून, उत्तराखंड:

  • स्थान: यह मंदिर उत्तराखंड के देहरादून जिले के रायवाला में स्थित है।
  • विशेषता: यह भी भगवान सत्यनारायण के समर्पित एक पूजनीय स्थल है।

8. श्री सत्यनारायण मंदिर, के.जी. मार्ग, दिल्ली:

  • स्थान: यह मंदिर दिल्ली के के.जी. मार्ग पर स्थित है है।
  • विशेषता: दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों के भक्तगण यहाँ भगवान सत्यनारायण की पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।

इन मंदिरों में सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ और पूजा-अर्चना विशेष रूप से की जाती है, जिससे भक्तों को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

💖 भगवान सत्यनारायण को क्या पसंद है और क्या नहीं:

भगवान सत्यनारायण विष्णु का ही एक सौम्य रूप हैं, और उनकी पूजा में कुछ विशेष चीजें उन्हें अत्यंत प्रिय होती हैं, जबकि कुछ चीजों से परहेज किया जाता है।

भगवान सत्यनारायण को क्या पसंद है?

भगवान सत्यनारायण को श्रद्धा और पवित्रता से अर्पित की गई हर वस्तु प्रिय है, लेकिन कुछ चीजें उन्हें विशेष रूप से पसंद हैं, जो पूजा का अभिन्न अंग मानी जाती हैं:

  • प्रसाद (सवाया): सत्यनारायण भगवान को सवाया प्रसाद (सवा गुना मात्रा में) अर्पित करने का विशेष महत्व है। यह प्रसाद गेहूं के आटे के चूरन या पंजीरी से बनता है, जिसमें घी, चीनी/गुड़ और केले को मिलाया जाता है। यदि गेहूं का आटा उपलब्ध न हो तो चावल के आटे का भी उपयोग किया जा सकता है।
  • केला: केले का फल भगवान सत्यनारायण को बहुत प्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, केला बहुत शुद्ध फल है और ज्योतिषीय दृष्टि से इस पर गुरु ग्रह का प्रभाव होता है, जो विष्णु स्वरूप ही हैं। इसलिए पूजा में केले का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है।
  • दूध और दही: पंचामृत में दूध और दही मुख्य घटक होते हैं, और ये दोनों ही भगवान को अत्यंत प्रिय हैं।
  • तुलसी दल: भगवान विष्णु को तुलसी दल अत्यंत प्रिय है। सत्यनारायण पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है, क्योंकि इनके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
  • पंचामृत: दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण पंचामृत भगवान को स्नान कराने और भोग लगाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • फूल और माला: पीले या सफेद रंग के फूल, जैसे गेंदा, कमल, या गुलाब, और फूलों की माला भगवान को अर्पित की जाती है।
  • धूप, दीप और अगरबत्ती: पूजा के दौरान वातावरण को शुद्ध और सुगंधित रखने के लिए इनका प्रयोग किया जाता है।
  • पान, सुपारी, लौंग, इलायची: ये सभी शुभ मानी जाती हैं और पूजा में अर्पित की जाती हैं।
  • नैवेद्य: फलों (विशेषकर केला), मिठाई, पंचमेवा (सूखे मेवे) आदि का भोग लगाया जाता है।
  • सफेद चंदन और कुमकुम: भगवान को तिलक लगाने के लिए इनका उपयोग किया जाता है।

भगवान सत्यनारायण को क्या नापसंद है? (क्या वर्जित है?)

सत्यनारायण भगवान की पूजा में कुछ चीजों से परहेज किया जाता है, या उनका उपयोग वर्जित माना जाता है:

  • तामसिक भोजन: पूजा के दिन और व्रत के दौरान प्याज, लहसुन, मांस और मदिरा का सेवन पूरी तरह वर्जित है।
  • चावल और जौ: एकादशी तिथि पर चावल और जौ का सेवन वर्जित माना जाता है, क्योंकि यह ऋषि मेधा के रक्त और मांस का सेवन करने के समान माना गया है। हालांकि सत्यनारायण पूजा मुख्यतः पूर्णिमा पर की जाती है, फिर भी वैष्णव व्रतों में अक्षत (चावल) का प्रयोग वर्जित होता है। प्रसाद में गेहूं के आटे या पंजीरी का ही प्रयोग किया जाता है।
  • प्रसाद का अपमान: कथा में वर्णित है कि प्रसाद का अपमान करने से व्यक्ति को कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए प्रसाद को श्रद्धापूर्वक ग्रहण करना चाहिए।
  • लोहे, स्टील और एल्युमीनियम के बर्तन: पूजा और धार्मिक क्रियाकलापों में इन धातुओं के बर्तनों का उपयोग वर्जित माना गया है, क्योंकि इन्हें अपवित्र धातु माना जाता है। तांबे के बर्तन शुभ होते हैं।
  • अशुद्धता और नकारात्मकता: शारीरिक और मानसिक अशुद्धता, क्रोध, लड़ाई-झगड़ा, झूठ बोलना और किसी का अपमान करना पूजा के दौरान वर्जित है। मन को शांत और पवित्र रखना चाहिए।

इन बातों का ध्यान रखकर भगवान सत्यनारायण की पूजा करने से वे शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

क्या करें और क्या न करें:

क्या करें:

  • पवित्र नदियों में स्नान करें।
  • भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा का पाठ करें।
  • पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध करें।
  • चंद्रमा को अर्घ्य दें।
  • दान-पुण्य के कार्य करें।
  • सात्विक भोजन का सेवन करें।
  • मन को शांत और पवित्र रखें।

क्या न करें:

  • तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा) का सेवन न करें।
  • किसी नए कार्य या शुभ कार्य की शुरुआत न करें।
  • बाल कटवाना या नाखून काटना वर्जित है।
  • लड़ाई-झगड़ा या किसी का अपमान न करें।
  • किसी भी प्रकार का झूठ बोलने से बचें।

🎁 दान का महत्व और वस्तुएं:

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। दान की जाने वाली कुछ प्रमुख वस्तुएं:

  • अनाज: गेहूं, चावल, जौ।
  • तिल: काले तिल का दान विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • वस्त्र: गरीबों को वस्त्र दान करें।
  • गुड़ और घी: इन वस्तुओं का दान भी पुण्यकारी होता है।
  • चांदी: चांदी का दान पितरों को प्रसन्न करने के लिए उत्तम माना जाता है।
  • छाता और जूते: शनि देव की कृपा के लिए इनका दान शुभ होता है।
  • श्रीमद् भागवतम्: इस दिन श्रीमद् भागवतम् ग्रंथ का दान करना बहुत विशेष महत्व रखता है।

ज्योतिषीय महत्व और उपाय:

भाद्रपद पूर्णिमा का ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी विशेष महत्व है:

  • चंद्रमा का प्रभाव: पूर्णिमा पर चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस दिन चंद्रमा की पूजा करने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है और मानसिक शांति व स्थिरता प्राप्त होती है।
  • लक्ष्मी कृपा: इस दिन माँ लक्ष्मी धरती लोक का विचरण करती हैं। माँ लक्ष्मी की पूजा करने से धन-समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • सूर्य और चंद्रमा का योग: रविवार को पूर्णिमा होने से सूर्य और चंद्रमा दोनों की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन में संतुलन और सकारात्मकता लाती है।
  • महामृत्युंजय हवन: इस दिन महामृत्युंजय हवन करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है, जिससे जीवन से सभी नकारात्मकता दूर होती है।
  • पीपल वृक्ष की पूजा: इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा करने और जल अर्पित करने से धन-समृद्धि में वृद्धि होती है और मानसिक तनाव दूर होता है।

📜 पौराणिक कथाएं और विशेष उल्लेख:

  • श्रीमद् भागवतम् का आविर्भाव दिवस: भाद्रपद पूर्णिमा को श्रीमद् भागवतम् का आविर्भाव दिवस भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन भागवत कथा का समापन हुआ था। यह ग्रंथ भगवान श्री कृष्ण का ही अवतार माना गया है।
  • कुशोत्पाटिनी अमावस्या से संबंध: हालांकि यह भाद्रपद पूर्णिमा है, लेकिन “कुशोत्पाटिनी अमावस्या” या “कुशग्रहणी अमावस्या” का उल्लेख भाद्रपद अमावस्या से जुड़ा है, जहाँ पवित्र कुश घास एकत्रित की जाती है। यह दर्शाता है कि भाद्रपद मास में पवित्रता और धार्मिक कार्यों के लिए विशेष महत्व है।

🚿 स्नान और तुलसी पूजा का विशेष महत्व:

  • पवित्र नदियों में स्नान: गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और पितरों को शांति प्राप्त होती है।
  • तुलसी पूजा: भाद्रपद पूर्णिमा पर तुलसी पूजा का भी विशेष महत्व है। तुलसी को जल अर्पित करें, परिक्रमा करें और शाम को दीपक जलाएं। इससे भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

📈 व्रत के लाभों का सारांश:

संक्षेप में, भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत और पूजा जीवन में कई प्रकार के लाभ प्रदान करती है:

  • सुख-समृद्धि: भगवान सत्यनारायण और माँ लक्ष्मी की कृपा से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
  • मनोकामना पूर्ति: सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अटके हुए कार्य सफल होते हैं।
  • पितृ दोष से मुक्ति: पितरों को शांति मिलती है और पितृ दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
  • स्वास्थ्य और आरोग्य: शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
  • ज्ञान और बुद्धि: भगवान विष्णु की कृपा से ज्ञान और बुद्धि में वृद्धि होती है।
  • मोक्ष की प्राप्ति: यह व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

भाद्रपद पूर्णिमा का दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धापूर्वक किए गए कर्मों से व्यक्ति को पितरों और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं दूर होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।

सफला एकादशी || पौष पुत्रदा एकादशी || षटतिला एकादशी || जया एकादशी || विजया एकादशी || आमलकी एकादशी || आमलकी एकादशी 2025 || आज की तिथि || प्रदोष व्रत 2025 || सावन शिवरात्रि 2025 || हरियाली तीज 2025 || श्रावण अमावस्या 2025 || श्रावण पुत्रदा एकादशी 2025 || कजरी तीज 2025 || प्रदोष व्रत (शुक्ल) 2025 || अजा एकादशी 2025 || श्रावण पूर्णिमा व्रत 2025|| सिंह संक्रांति 2025|| गणेश चतुर्थी 2025|| 2025 संकष्टी चतुर्थी उपवास के दिन|| ओणम/थिरुवोणम 2025|| जन्माष्टमी 2025||
Scroll to Top