भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी 2025

भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी 2025
संकष्टी चतुर्थी
12
अगस्त 2025
Tuesday / मंगलवार
भगवान गणेश
Lord Ganesha for Sankashti Chaturthi

हिंदू धर्म में भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना जाता है। किसी भी शुभ कार्य से पहले उनकी वंदना करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और कार्य निर्विघ्न संपन्न होता है। गणेश जी को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है संकष्टी चतुर्थी का व्रत। यह व्रत हर माह कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है।

वर्ष 2025 में, भाद्रपद मास की संकष्टी चतुर्थी का पावन पर्व मंगलवार, 12 अगस्त को मनाया जाएगा। मंगलवार के दिन पड़ने के कारण इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी भी कहा जा सकता है, जिसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इस दिन व्रत रखकर भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आइए, जानते हैं इस विशेष चतुर्थी का महत्व, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इससे जुड़ी एक प्रचलित कथा।

तिथि मंगलवार, 12 अगस्त 2025

चतुर्थी तिथि प्रारंभ 12 अगस्त को सुबह 08:41 बजे से

चतुर्थी तिथि समाप्त 13 अगस्त को सुबह 06:36 बजे तक

चंद्रोदय का समय 12 अगस्त 2025 को रात्रि लगभग 09 बजकर 30 मिनट (चंद्रोदय का सटीक समय आपके स्थान पर थोड़ा भिन्न हो सकता है)

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

“संकष्टी” शब्द का अर्थ है “संकटों को हरने वाली”। यह चतुर्थी विशेष रूप से भगवान गणेश को समर्पित है, जो ‘विघ्नहर्ता’ के नाम से जाने जाते हैं। इस दिन व्रत रखने और विधि-विधान से गणेश जी की पूजा करने से:

  • संकटों से मुक्ति: भक्तों के जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और परेशानियां दूर होती हैं।
  • मनोकामना पूर्ति: भगवान गणेश सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, चाहे वह संतान प्राप्ति हो, धन-धान्य की वृद्धि हो या शत्रुओं पर विजय।
  • बुद्धि और ज्ञान: गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। इस व्रत से एकाग्रता बढ़ती है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  • सुख-समृद्धि: घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है।
  • मंगल कार्य: किसी भी नए कार्य या अनुष्ठान को शुरू करने से पहले इस व्रत का पालन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

संकष्टी चतुर्थी का व्रत नियमों और श्रद्धा के साथ किया जाता है:

  • सुबह का स्नान और संकल्प: चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत का संकल्प लें कि आप पूरे दिन अन्न का त्याग करेंगे और विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करेंगे।
  • गणेश जी की स्थापना: पूजा स्थल पर भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  • पूजा सामग्री: गणेश जी को दूर्वा (दूब घास), मोदक या लड्डू, फल, फूल, रोली, अक्षत (चावल) और धूप-दीप अर्पित करें।
  • मंत्र जाप: “ॐ गं गणपतये नमः” या गणेश गायत्री मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। गणेश चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
  • व्रत कथा का श्रवण: दिन में संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा सुनें या पढ़ें। इससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
  • फलाहार: यदि आप निर्जल व्रत नहीं रख सकते, तो दिन भर फलाहार कर सकते हैं। नमक का सेवन न करें।
  • चंद्रोदय की प्रतीक्षा: शाम को चंद्रोदय होने पर चंद्रमा के दर्शन करें।
  • चंद्रमा को अर्घ्य: एक लोटे में जल, दूध, चंदन, अक्षत और फूल मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य दें।
  • व्रत का पारण: चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद गणेश जी की आरती करें और मोदक या अन्य प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारण करें।

संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा

संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, उनमें से एक प्रमुख कथा इस प्रकार है:

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे हुए थे। तभी माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने का आग्रह किया। शिवजी तैयार हो गए, लेकिन समस्या यह थी कि हार-जीत का फैसला कौन करेगा? तब शिवजी ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें प्राण फूंके और उसे निर्णायक बना दिया।

खेल शुरू हुआ। हर बार माता पार्वती ही जीत रही थीं। जब खेल समाप्त हुआ, तो शिवजी ने निर्णायक से पूछा कि विजयी कौन हुआ। निर्णायक बालक ने सोचा कि शिवजी प्रसन्न हो जाएंगे, यदि मैं उन्हें विजयी बताऊं। उसने भगवान शिव का नाम ले लिया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को श्राप दे दिया कि वह लंगड़ा हो जाए और कीचड़ में पड़ा रहे।

बालक ने क्षमा मांगी और अपनी गलती स्वीकार की। माता पार्वती का हृदय पसीज गया और उन्होंने कहा, “हे बालक! यहाँ गणेश पूजा के लिए कुछ देव कन्याएं आएंगी। तुम उनसे संकष्टी चतुर्थी व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को श्रद्धापूर्वक करना। इससे तुम श्राप मुक्त हो जाओगे.”

बालक ने वैसा ही किया। उसने पूरी श्रद्धा से संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा और भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त किया। गणेश जी की कृपा से बालक श्राप से मुक्त हो गया और स्वस्थ होकर कैलाश पर्वत पर शिव-पार्वती के पास पहुंच गया।

तब से यह मान्यता है कि जो कोई भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान गणेश उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

यह भाद्रपद संकष्टी चतुर्थी आपके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लेकर आए। भगवान गणेश की कृपा आप पर सदैव बनी रहे।

ॐ गं गणपतये नमः!

साल में कितनी चतुर्थी होती है? प्रकार और महत्व

हर साल में 24 चतुर्थी तिथियां होती हैं, यानी प्रत्येक महीने में दो चतुर्थी पड़ती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, एक चंद्र मास को दो पक्षों में बांटा गया है – **कृष्ण पक्ष** और **शुक्ल पक्ष**। इन दोनों पक्षों में एक-एक चतुर्थी तिथि आती है, और दोनों का अपना अलग महत्व और नाम है।

चतुर्थी क्या है?

चतुर्थी हिंदू पंचांग की चौथी तिथि है। यह तिथि भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती है, जिन्हें ‘विघ्नहर्ता‘ यानी बाधाओं को दूर करने वाला देवता कहा जाता है। चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति के जीवन से संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि आती है।

चतुर्थी के प्रकार

वर्ष में पड़ने वाली 24 चतुर्थी को मुख्य रूप से दो प्रकारों में बांटा गया है:

1. संकष्टी चतुर्थी (कृष्ण पक्ष की चतुर्थी)

  • कब आती है: यह पूर्णिमा के बाद आने वाले कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ती है।
  • महत्व: संकष्टी का अर्थ है ‘संकटों को हरने वाली‘। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने और व्रत रखने से जीवन की सभी बाधाएं दूर होती हैं। भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह व्रत रखते हैं। इस व्रत में चंद्रमा के दर्शन और उन्हें अर्घ्य देने का विशेष महत्व है, जिसके बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
  • विशिष्ट नाम: प्रत्येक माह की संकष्टी चतुर्थी का एक विशिष्ट नाम होता है (जैसे माघ माह की संकष्टी चतुर्थी को सकट चौथ या तिल चौथ कहते हैं)। यदि संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को पड़ती है, तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है, जिसका महत्व कई गुना अधिक बढ़ जाता है।

2. विनायक चतुर्थी (शुक्ल पक्ष की चतुर्थी)

  • कब आती है: यह अमावस्या के बाद आने वाले शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ती है।
  • महत्व: विनायक चतुर्थी का व्रत मुख्य रूप से भगवान गणेश को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस दिन व्रत रखने से बुद्धि, ज्ञान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • विशिष्ट नाम: सभी विनायक चतुर्थी में, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी दिन गणेश चतुर्थी का महापर्व मनाया जाता है, जब भगवान गणेश का जन्म हुआ था। यह त्योहार पूरे भारत में, विशेषकर महाराष्ट्र में, बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करना कुछ मान्यताओं के अनुसार शुभ नहीं माना जाता है।

चतुर्थी व्रत के सामान्य लाभ

भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए चतुर्थी व्रत का विशेष महत्व है। इन व्रतों का पालन करने से:

  • व्यक्ति के जीवन के कष्ट और बाधाएं दूर होती हैं।
  • ज्ञान और बुद्धि की प्राप्ति होती है।
  • घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
  • सभी शुभ कार्यों में सफलता मिलती है।

इस प्रकार, साल भर में पड़ने वाली ये 24 चतुर्थी तिथियां भक्तों को भगवान गणेश की आराधना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती हैं।

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