मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत 2025
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत और पूजा गुरुवार, 4 दिसंबर 2025 को की जाएगी। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व है।
हिंदू धर्म में, पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है, और मार्गशीर्ष (अगहन) मास में आने वाली पूर्णिमा को “मार्गशीर्ष पूर्णिमा” या “अगहन पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और चंद्रमा को समर्पित है। इस दिन व्रत, स्नान, और दान करने से व्यक्ति को विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। यह माना जाता है कि मार्गशीर्ष मास में भगवान विष्णु और चंद्रमा की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।
💡 मार्गशीर्ष मास का विशेष महत्व:
मार्गशीर्ष माह का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। इसे ‘अगहन’ मास भी कहा जाता है, और यह भगवान कृष्ण को समर्पित है। श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने स्वयं कहा है, **”महीनों में मैं मार्गशीर्ष हूँ।”** इस महीने में जप, तप, दान और स्नान का विशेष महत्व होता है। यह महीना आध्यात्मिक जागृति और धार्मिक कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है।
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान कृष्ण की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
🌟 मार्गशीर्ष पूर्णिमा का महत्व:
इस पूर्णिमा का उल्लेख कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। यह माना जाता है कि सतयुग में, इसी दिन से भगवान विष्णु ने सत्यनारायण व्रत की शुरुआत की थी। इस दिन पवित्र नदियों, जैसे गंगा, यमुना, या किसी भी तीर्थस्थल के जल में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- गंगा स्नान: इस दिन गंगा स्नान से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है।
- दान-पुण्य: गरीबों और जरूरतमंदों को दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
- श्री सत्यनारायण कथा: इस दिन श्री सत्यनारायण की कथा का पाठ करना या सुनना बहुत ही फलदायी माना जाता है।
- चंद्रमा की पूजा: पूर्णिमा की रात चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ माना जाता है, क्योंकि इससे मानसिक शांति मिलती है और स्वास्थ्य बेहतर होता है।
📜 मार्गशीर्ष पूर्णिमा की पौराणिक कथा:
एक प्रचलित कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक धनवान व्यक्ति था, जिसके पास सब कुछ था लेकिन संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उसने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उसे मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण व्रत करने का आदेश दिया। व्यक्ति ने पूरी श्रद्धा से यह व्रत किया और उसे संतान सुख की प्राप्ति हुई। इस कथा से यह सीख मिलती है कि इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
🙏 मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा विधि:
- स्नान: सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी या घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- व्रत का संकल्प: स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा: भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, हल्दी, चंदन, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
- दीपक जलाएं: घी का दीपक जलाएं और अगरबत्ती लगाएं।
- सत्यनारायण कथा: इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पाठ करें या सुनें।
- मंत्र जाप: ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ या ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का जाप करें।
- भोग: भगवान विष्णु को खीर, मिठाई या अन्य सात्विक भोग लगाएं।
- चंद्रमा को अर्घ्य: शाम को चंद्रमा को दूध, जल और गंगाजल मिलाकर अर्घ्य दें।
- दान: पूजा के बाद गरीबों को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा का दान करें।
📚 श्री सत्यनारायण कथा और इसका महत्व:
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह कथा जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने, सुख-समृद्धि प्राप्त करने और मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए की जाती है।
- कथा का उद्देश्य: यह कथा भगवान सत्यनारायण (जो भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं) की महिमा और उनके प्रति श्रद्धा रखने वाले भक्तों को मिलने वाले लाभों को दर्शाती है।
- महत्व: कथा के पांच अध्यायों में विभिन्न पात्रों के माध्यम से यह समझाया गया है कि भगवान पर विश्वास और ईमानदारी से किए गए कर्मों का फल हमेशा शुभ होता है। इस कथा को सुनने मात्र से ही व्यक्ति के पापों का नाश होता है।
- विशेष भोग: सत्यनारायण पूजा में विशेष रूप से ‘प्रसाद’ का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘पंचामृत’ और आटे, शक्कर, केले, और घी से बने ‘चरनामृत’ से तैयार किया जाता है।
🌱 तुलसी पूजा का विशेष महत्व:
एकादशी और पूर्णिमा दोनों ही तिथियों पर तुलसी का विशेष महत्व है। तुलसी को भगवान विष्णु का अत्यंत प्रिय माना जाता है।
- तुलसी और विष्णु: पौराणिक कथाओं के अनुसार, तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का ही एक रूप माना गया है। इसलिए तुलसी की पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
- पूजा विधि: पूर्णिमा के दिन तुलसी के पौधे के सामने घी का दीपक जलाएं और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करते हुए 11 या 21 बार परिक्रमा करें। ऐसा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
🌟 मार्गशीर्ष पूर्णिमा के विशेष मंत्र:
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा के समय इन मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ माना जाता है:
- विष्णु गायत्री मंत्र: “ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥”
- लक्ष्मी मंत्र: “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नमः॥”
- चंद्रमा मंत्र: “ॐ सों सोमाय नमः॥”
🔬 व्रत से जुड़े वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण:
पूर्णिमा का व्रत केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
- पाचन तंत्र: व्रत से हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर की आंतरिक शुद्धि होती है।
- चंद्रमा का प्रभाव: वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी के जल पर अधिक प्रभाव डालता है। व्रत के दौरान पानी और तरल पदार्थ लेने से शरीर का संतुलन बना रहता है।
- मानसिक लाभ: व्रत और पूजा-पाठ से मन को शांति मिलती है, तनाव कम होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
🕉️ दत्तात्रेय जयंती का विशेष महत्व:
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन ही भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश – त्रिदेवों का संयुक्त स्वरूप माना जाता है। उनका जन्म महर्षि अत्रि और माता अनुसूया के यहाँ हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को ज्ञान, योग और तंत्र के गुरु के रूप में पूजा जाता है।
दत्तात्रेय जयंती पर उनकी पूजा करने से त्रिदेवों का आशीर्वाद एक साथ प्राप्त होता है। यह दिन ज्ञान की प्राप्ति, आध्यात्मिक उन्नति और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
दत्तात्रेय जयंती पूजा विधि:
- ध्यान: सुबह स्नान के बाद भगवान दत्तात्रेय का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें।
- पूजा: भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। उन्हें फूल, फल, धूप, और दीप अर्पित करें।
- मंत्र जाप: ‘दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा’ मंत्र का जाप करें। यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली माना जाता है।
- भोग: भगवान दत्तात्रेय को पंचामृत, मिठाई और सात्विक भोजन का भोग लगाएं।
- स्तुति पाठ: दत्तात्रेय स्तोत्र और उनके 108 नामों (दत्तात्रेय अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र) का पाठ करें।
🎁 विशेष दान-पुण्य के कार्य:
पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार दान करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
- अन्न दान: गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न दान करना महापुण्य माना जाता है।
- वस्त्र दान: ठंड के मौसम में गरीबों को कंबल, शॉल या गरम वस्त्र दान करना बहुत शुभ माना जाता है।
- गाय को भोजन: गाय को हरा चारा, गुड़ या रोटी खिलाने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
- पक्षी और जानवरों के लिए भोजन: इस दिन पक्षियों को दाना और जानवरों को भोजन देने से भी विशेष लाभ मिलता है।
पूर्णिमा का यह व्रत हमें आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों तरह से शुद्ध करता है। इस दिन की गई पूजा और दान से हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।