देवउठनी एकादशी 2025: तिथि, महत्व और पूजा विधि
देवउठनी एकादशी रविवार, 2 नवंबर 2025 को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की योगनिद्रा से जागते हैं और शुभ कार्यों का आरंभ होता है। तुलसी विवाह का आयोजन भी इसी दिन होता है।
हिंदू धर्म में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु चार महीने की लंबी निद्रा, जिसे योगनिद्रा कहा जाता है, से जागते हैं। इस एकादशी के साथ ही चतुर्मास का भी समापन हो जाता है और विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। यह पर्व मुख्य रूप से भगवान विष्णु की पूजा और तुलसी विवाह के लिए जाना जाता है।
🗓️ देवउठनी एकादशी पंचांग 2025:
देवउठनी एकादशी व्रत का शुभ फल प्राप्त करने के लिए तिथि और मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यहाँ 2025 के लिए एकादशी तिथि और पारण का समय दिया गया है:
- एकादशी तिथि प्रारंभ: शनिवार, 1 नवंबर 2025 को शाम 07:44 बजे से।
- एकादशी तिथि समाप्त: रविवार, 2 नवंबर 2025 को रात 07:31 बजे तक।
- पारण (व्रत खोलने) का समय: सोमवार, 3 नवंबर 2025 को सुबह 06:40 बजे से 08:44 बजे तक।
यह व्रत द्वादशी तिथि को समाप्त होता है, इसलिए व्रत का पारण द्वादशी तिथि के शुभ मुहूर्त में करना चाहिए।
🌟 देवउठनी एकादशी का महत्व:
देवउठनी एकादशी का महत्व हिंदू धर्म में बहुत गहरा है। माना जाता है कि भगवान विष्णु, सृष्टि के पालनहार, आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी एकादशी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चार महीने क्षीरसागर में विश्राम करते हैं। इन चार महीनों के दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। जैसे ही भगवान विष्णु जागते हैं, सृष्टि में फिर से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में उत्सव और उमंग वापस लौट आते हैं।
- मांगलिक कार्यों का आरंभ: देवउठनी एकादशी के साथ ही शादी-विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश आदि सभी शुभ कार्य पुनः शुरू हो जाते हैं।
- व्रत का फल: इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- स्वास्थ्य लाभ: यह एकादशी आध्यात्मिक और शारीरिक दोनों तरह के लाभ प्रदान करती है। इस व्रत से मन शांत होता है और शरीर शुद्ध होता है।
- तुलसी विवाह: इस दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम (विष्णु जी का एक रूप) का विवाह कराया जाता है, जो भक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
💍 देवउठनी एकादशी और विवाह का महत्व:
हिंदू धर्म में विवाह जैसे शुभ कार्य केवल तभी किए जाते हैं जब भगवान विष्णु जागृत अवस्था में हों। चतुर्मास के दौरान भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने से मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के जाग्रत होते ही समस्त शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं, इसलिए इसे अबूझ मुहूर्त भी कहा जाता है। इस दिन बिना किसी पंडित या मुहूर्त के भी विवाह संपन्न हो सकते हैं। इस दिन विवाह करने से दांपत्य जीवन में सुख, समृद्धि और भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है।
📜 तुलसी विवाह की पौराणिक कथा:
देवउठनी एकादशी का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान तुलसी विवाह है। इसके पीछे एक रोचक कथा है। माना जाता है कि राक्षस कुल में जन्मी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनका विवाह जालंधर नाम के एक शक्तिशाली असुर से हुआ था। वृंदा के पतिव्रता धर्म और विष्णु भक्ति के कारण जालंधर को कोई भी देवता पराजित नहीं कर पा रहा था। तब भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता धर्म को भंग कर दिया। जैसे ही वृंदा का पतिव्रता धर्म टूटा, जालंधर का वध हो गया।
वृंदा को जब यह रहस्य पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुईं और उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया। भगवान विष्णु पत्थर (शालिग्राम) बन गए। देवताओं ने वृंदा से श्राप वापस लेने की प्रार्थना की, जिसके बाद वृंदा ने अपने पति के साथ सती होकर स्वयं को अग्नि में समर्पित कर दिया। वृंदा की राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने वृंदा को वचन दिया कि बिना तुलसी के कोई भी भोग स्वीकार नहीं किया जाएगा। इसी घटना की याद में हर वर्ष देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराया जाता है।
👑 एकादशी व्रत की एक अन्य पौराणिक कथा:
एक बार एक राजा ने घोषणा की कि उसके राज्य में कोई भी व्यक्ति एकादशी का व्रत नहीं रखेगा। राजा के आदेश का पालन करते हुए सभी लोग व्रत रखना छोड़ दिए। कुछ समय बाद, राज्य में अकाल पड़ गया। धरती सूख गई और लोग भूखे मरने लगे। राजा को समझ नहीं आया कि यह क्यों हो रहा है। वह एक ऋषि के पास गया और उनसे इस समस्या का समाधान पूछा। ऋषि ने बताया कि राजा के आदेश के कारण सभी लोगों ने एकादशी का व्रत करना छोड़ दिया है, जिससे भगवान विष्णु उनसे नाराज हो गए हैं।
ऋषि ने राजा को उपदेश दिया कि यदि वे सभी एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करें तो भगवान प्रसन्न होकर उनकी समस्या दूर कर देंगे। राजा ने ऋषि के कहे अनुसार पूरे राज्य में घोषणा करवाई कि सभी लोग एकादशी का व्रत रखें। सभी ने मिलकर व्रत रखा और भगवान विष्णु की पूजा की। व्रत के प्रभाव से इंद्र देव प्रसन्न हुए और राज्य में मूसलाधार बारिश हुई। देखते ही देखते पूरा राज्य फिर से हरा-भरा हो गया और समृद्धि वापस लौट आई। इस कथा से यह सीख मिलती है कि एकादशी व्रत का पालन करने से व्यक्ति को न केवल आध्यात्मिक, बल्कि भौतिक सुख-समृद्धि भी मिलती है।
🙏 पूजा विधि और अनुष्ठान:
पूजा की सामग्री:
- भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र
- पवित्र तुलसी का पौधा
- गन्ना (मण्डप बनाने के लिए)
- फल और मिठाई (सिंघाड़ा, बेर, आंवला, मूली, शकरकंद, गन्ने का रस, लड्डू, पेड़ा आदि)
- गंगाजल या शुद्ध जल
- पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
- धूप, दीप, अगरबत्ती
- कपूर, माचिस
- कुमकुम, हल्दी, चंदन, रोली, चावल
- लाल चुनरी, चूड़ियाँ और श्रृंगार का सामान (माता तुलसी के लिए)
- फूल, तुलसी के पत्ते और माला
- पूजा की थाली
देवउठनी एकादशी पर पूजा विधि अत्यंत सरल और श्रद्धापूर्ण होती है:
- व्रत का संकल्प: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- घर की साफ-सफाई: घर की अच्छी तरह से सफाई करें, खासकर पूजा स्थल की।
- मण्डप सजाना: घर के आंगन में गेरू और हल्दी से रंगोली बनाएं। गन्ने का मण्डप बनाकर उसके नीचे भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का आसन बनाएं।
- पूजा करना: सभी सामग्री एकत्रित करें। भगवान विष्णु और तुलसी जी का विधिवत पूजन करें। उन्हें फूल, फल, मिठाई और श्रृंगार सामग्री अर्पित करें।
- मंत्र जाप: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” या “हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे” मंत्र का जाप करें।
- तुलसी विवाह: शुभ मुहूर्त में तुलसी और शालिग्राम की प्रतिमा का विवाह कराएं। परिवार के सभी सदस्य इस विवाह में शामिल होकर मंगल गीत गाएं।
- आरती और पारण: विवाह के बाद भगवान की आरती करें और भोग लगाएं। अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करें।
💡 व्रत के नियम:
- निर्जला व्रत: इस दिन निर्जला (बिना पानी) व्रत रखने का विधान है, लेकिन यदि संभव न हो तो फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं।
- सात्विक भोजन: एकादशी के दिन अन्न का सेवन पूरी तरह वर्जित है। व्रत तोड़ने के बाद ही अन्न ग्रहण करें।
- साधु-संतों का सम्मान: इस दिन दान-पुण्य करना बहुत शुभ माना जाता है। साधु-संतों और गरीबों को भोजन कराएं।
- नकारात्मकता से दूर रहें: क्रोध, लोभ, झूठ, और निंदा से दूर रहें। मन को शांत और भगवान के प्रति समर्पित रखें।
🔮 एकादशी व्रत के वैज्ञानिक और ज्योतिषीय लाभ:
धार्मिक महत्व के साथ-साथ, एकादशी व्रत के कई वैज्ञानिक और ज्योतिषीय लाभ भी हैं।
- पाचन तंत्र को आराम: उपवास से हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर की सफाई होती है। यह शरीर को डिटॉक्स करने का एक प्राकृतिक तरीका है।
- मानसिक शांति: व्रत और पूजा-पाठ से मन शांत होता है। यह तनाव और चिंता को कम करने में सहायक है।
- चंद्रमा का प्रभाव: ज्योतिष के अनुसार, एकादशी का व्रत चंद्रमा के नकारात्मक प्रभावों को शांत करने में सहायक होता है। यह मन की स्थिरता और सकारात्मकता बढ़ाता है।
- ग्रहों का शुभ प्रभाव: भगवान विष्णु की कृपा से कुंडली में स्थित अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
🌸 देवउठनी एकादशी से जुड़ी कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें:
- छत्तीगढ़ की अनोखी परंपरा: छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह को एक भव्य विवाह उत्सव की तरह मनाया जाता है। लोग गन्ने के मंडप के नीचे तुलसी और शालिग्राम का विवाह करते हैं, लोकगीत गाते हैं और नाचते हैं।
- विवाह के अबूझ मुहूर्त: देवउठनी एकादशी को साल के सबसे शुभ मुहूर्तों में से एक माना जाता है, जिसे **अबूझ मुहूर्त** कहते हैं। इस दिन बिना किसी पंडित से सलाह लिए भी विवाह जैसे शुभ कार्य किए जा सकते हैं।
🕉️ भगवान विष्णु के प्रमुख नाम:
भगवान विष्णु के कई नाम हैं जो उनके विभिन्न गुणों और रूपों को दर्शाते हैं। ये नाम जपने से भक्तों को शांति और समृद्धि मिलती है:
- विष्णु: सर्वव्यापी, जो हर जगह मौजूद हैं।
- नारायण: जो जल में निवास करते हैं।
- चतुर्भुज: चार भुजाओं वाले।
- जनार्दन: लोगों को मुक्ति देने वाले।
- गोविंद: गायों और इंद्रियों के स्वामी।
- केशव: जिनके केश सुंदर हैं या ब्रह्मा और शिव को नियंत्रित करने वाले।
- दामोदर: जिनकी कमर पर रस्सी बंधी है (बचपन में)।
- माधव: लक्ष्मी के पति।