प्रदोष व्रत (शुक्ल) 2025: तिथि, महत्व और पूजा विधि
प्रदोष व्रत सोमवार, 3 नवंबर 2025 को रखा जाएगा। प्रदोष काल सूर्यास्त के बाद का वह समय होता है जब भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। सटीक मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंचांग का अवश्य अवलोकन करें।
हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक अत्यंत पवित्र और फलदायी व्रत है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों में) को रखा जाता है। प्रदोष का अर्थ है ‘शाम का समय’ या ‘रात्रि का प्रारंभिक भाग’, और इस व्रत का पालन विशेष रूप से प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय) में किया जाता है। मान्यता है कि इस समय भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
✨ सोम प्रदोष व्रत का महत्व:
जब प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है, तो इसे **सोम प्रदोष** कहा जाता है। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है और सोम का अर्थ चंद्रमा भी होता है। यह व्रत चंद्रमा के अशुभ प्रभावों को दूर करने के लिए विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
- मानसिक शांति और स्थिरता: सोम प्रदोष व्रत मन को नियंत्रित करने और मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद करता है।
- रोग मुक्ति और स्वास्थ्य: यह व्रत शारीरिक व्याधियों और रोगों से मुक्ति दिलाता है, जिससे व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी जीवन जीता है।
- सौभाग्य और दांपत्य सुख: यह व्रत दांपत्य जीवन में सुख-शांति लाता है और अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त करने में सहायक होता है।
- चंद्र दोष का निवारण: जिन लोगों की कुंडली में चंद्र दोष होता है, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
📜 सोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा:
सोम प्रदोष व्रत की कथा चंद्रदेव से संबंधित है। एक बार चंद्रदेव ने दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों (जो 27 नक्षत्र हैं) से विवाह किया, लेकिन उनका प्रेम केवल एक पुत्री रोहिणी के प्रति अधिक था। इससे अन्य 26 पुत्रियां बहुत दुखी हुईं और उन्होंने अपने पिता दक्ष प्रजापति से इसकी शिकायत की। दक्ष ने क्रोधित होकर चंद्रदेव को क्षय रोग का श्राप दे दिया, जिससे चंद्रदेव की चमक और तेज धीरे-धीरे कम होने लगा।
चंद्रदेव इस श्राप से पीड़ित होकर भगवान शिव की शरण में गए। उन्होंने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्ति दिलाई और उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया। तभी से सोमवार को पड़ने वाला प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है। इस कथा से यह सीख मिलती है कि भगवान शिव अपने भक्तों की पुकार अवश्य सुनते हैं और उनके सभी कष्टों का निवारण करते हैं।
🙏 प्रदोष व्रत के अनुष्ठान और पूजा विधि:
प्रदोष व्रत का पालन अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है। यहाँ इसकी मुख्य पूजा विधि दी गई है:
- व्रत का संकल्प: प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- दिन भर का उपवास: दिन भर निराहार रहें। यदि संभव न हो तो फलाहार या दूध का सेवन कर सकते हैं।
- प्रदोष काल में पूजा: प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय) पूजा के लिए सबसे शुभ माना जाता है।
- पूजा स्थल को साफ करें और गंगाजल से पवित्र करें।
- भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और नंदी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर से अभिषेक करें (पंचामृत अभिषेक)।
- बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, सफेद फूल, चंदन, अक्षत आदि अर्पित करें।
- माता पार्वती को लाल वस्त्र, सिंदूर, बिंदी, चूड़ियां और अन्य सुहाग सामग्री अर्पित करें।
- धूप, दीप जलाएं और भगवान शिव के मंत्रों जैसे ‘ॐ नमः शिवाय’ या ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करें।
- प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
- आरती करें और भगवान को फल, मिठाई या अन्य सात्विक भोग लगाएं।
- रात्रि जागरण (वैकल्पिक): यदि संभव हो तो रात्रि में जागरण करें और भगवान शिव के भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन पारण: चतुर्दशी तिथि को सुबह स्नान के बाद भगवान शिव की पूजा करें और फिर ब्राह्मणों को भोजन कराकर या दान देकर स्वयं भोजन ग्रहण करें।
💡 प्रदोष व्रत से जुड़ी कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें:
प्रदोष व्रत के प्रकार और उनके विशिष्ट लाभ:
प्रदोष व्रत सप्ताह के जिस दिन पड़ता है, उसके अनुसार उसका विशेष महत्व और लाभ होता है:
- सोम प्रदोष (सोमवार): संतान प्राप्ति, स्वास्थ्य और मन की शांति के लिए विशेष फलदायी।
- भौम प्रदोष (मंगलवार): रोगों से मुक्ति, शत्रुओं पर विजय और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए लाभकारी।
- बुध प्रदोष (बुधवार): सभी प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति, शिक्षा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए शुभ।
- गुरु प्रदोष (गुरुवार): शत्रुओं पर विजय, पितृ दोष से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उत्तम।
- शुक्र प्रदोष (शुक्रवार): सौभाग्य, धन-संपदा, दांपत्य जीवन में सुख और सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए अत्यंत शुभ।
- शनि प्रदोष (शनिवार): संतान प्राप्ति, नौकरी और व्यापार में सफलता, और शनि दोष से मुक्ति के लिए महत्वपूर्ण।
- रवि प्रदोष (रविवार): अच्छी सेहत, लंबी आयु, मान-सम्मान और सरकारी कार्यों में सफलता के लिए फलदायी।
क्या करें और क्या न करें:
- क्या करें:
- प्रदोष काल में शिव मंत्रों का जाप करें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा आदि अर्पित करें।
- प्रदोष व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
- दान-पुण्य करें।
- सात्विक भोजन ग्रहण करें (यदि फलाहार व्रत हो)।
- क्या न करें:
- प्रदोष व्रत के दिन अन्न का सेवन न करें (निर्जला या फलाहार व्रत में)।
- तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा) का सेवन न करें।
- किसी का अनादर न करें और न ही किसी से झगड़ा करें।
- क्रोध, लोभ और मोह से दूर रहें।
🕉️ प्रमुख शिव मंत्र:
प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए इन मंत्रों और स्तोत्रों का जाप कर सकते हैं:
- महामृत्युंजय मंत्र: “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
- शिव पंचाक्षर मंत्र: “ॐ नमः शिवाय”
- रुद्राष्टकम: भगवान शिव की स्तुति में गाया जाने वाला यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
- शिव तांडव स्तोत्र: यदि संभव हो तो शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करें, यह भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।
इन मंत्रों और स्तोत्रों का जाप करने से भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मकता आती है।
🔔 शिव जी की आरती:
प्रदोष व्रत की पूजा का समापन भगवान शिव की आरती के साथ करना चाहिए। आरती का पाठ भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ एकानन चतुरानन पंचानन राजे। हंसासन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे॥ दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते, त्रिभुवन जन मोहे॥ अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी। चंदन शुभ सोहे, गले मुण्डन की माला॥ श्वेतांबर, पीतांबर, बाघंबर अंगे। सनकादिक, गरुणादिक, भूतादिक संगे॥ कर में कमंडलु, त्रिशूल और डमरू धारी। सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा। ॐ जय शिव ओंकारा॥
🎁 दान और पुण्य का महत्व:
प्रदोष व्रत के दिन पूजा-पाठ के साथ-साथ दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है और भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।
- अन्न दान: गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न दान करें।
- वस्त्र दान: सर्दी में वस्त्रों का दान करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।
- जल दान: प्यासे को पानी पिलाएं।
- गाय को भोजन: गाय को रोटी या हरा चारा खिलाएं।
- रुद्राक्ष दान: किसी योग्य व्यक्ति को रुद्राक्ष दान करना भी शुभ माना जाता है।
दान करने से व्यक्ति के पाप कर्मों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।