गोवर्धन पूजा 2025: प्रकृति और भक्ति का महापर्व

गोवर्धन पूजा 2025
गोवर्धन
22
अक्टूबर 2025
बुधवार
गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पर्वत
गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त: सुबह 06:28 बजे से सुबह 08:44 बजे तक (लगभग)

गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पवित्र पर्व बुधवार, 22 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। इस दिन सुबह गोवर्धन पूजा और गौ-पूजा का विधान है। सटीक मुहूर्त के लिए अपने स्थानीय पंचांग का अवश्य अवलोकन करें।

गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह पर्व भगवान कृष्ण को समर्पित है और प्रकृति के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम का प्रतीक है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है और उसकी पूजा की जाती है।


📜 गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा:

इस पर्व की शुरुआत भगवान कृष्ण से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा से हुई।

द्वापर युग में, ब्रज के लोग हर साल वर्षा के देवता इंद्र की पूजा करते थे, ताकि उनकी फसलों और पशुओं को पर्याप्त जल मिले। एक बार, बाल गोपाल कृष्ण ने देखा कि सभी गाँव वाले इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अपने पिता नंद बाबा से पूछा कि वे इंद्र की पूजा क्यों करते हैं। नंद बाबा ने उन्हें बताया कि इंद्र वर्षा के देवता हैं और उनकी पूजा करना आवश्यक है।

तब भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाया कि हमें उस चीज की पूजा करनी चाहिए जो हमें प्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुँचाती है, जैसे कि गोवर्धन पर्वत, जो हमें लकड़ी, घास, फल और जड़ी-बूटियाँ देता है, और हमारी गायों के लिए चारा प्रदान करता है। कृष्ण की बात सुनकर ब्रजवासियों ने इस बार इंद्र की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का फैसला किया।

जब इंद्र को यह पता चला, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होंने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए ब्रज पर भयंकर वर्षा शुरू कर दी। गाँव में बाढ़ आने लगी और लोग भयभीत हो गए। तब भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर विशाल गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी गाँव वालों और पशुओं को उसके नीचे आश्रय दिया। लगातार सात दिनों तक इंद्र ने वर्षा की, लेकिन गोवर्धन पर्वत के नीचे कोई भीग नहीं सका। अंत में, इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने हार मान ली। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।

यह कथा हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और अहंकार से दूर रहना चाहिए। यह त्योहार भगवान कृष्ण के ‘गोवर्धन लीला’ का प्रतीक है, जो उनकी दिव्यता और अद्भुत शक्ति को दर्शाता है।


🙏 गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की विधि:

गोवर्धन पूजा का अनुष्ठान बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है। यहाँ इसकी मुख्य पूजा विधि दी गई है:

  1. गोवर्धन पर्वत का निर्माण: पूजा से पहले घर के आँगन या मुख्य द्वार पर गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। इसे फूलों, दीयों और रंगोली से सजाया जाता है।
  2. गौ-पूजा: इस दिन गायों की पूजा का विशेष महत्व है। गायों को स्नान कराकर, उन्हें फूलों की माला पहनाई जाती है और उनका तिलक किया जाता है। उन्हें स्वादिष्ट भोजन भी खिलाया जाता है।
  3. अन्नकूट: अन्नकूट का अर्थ है ‘अन्न का पहाड़’। इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें मिठाई, नमकीन, सब्जियाँ और अनाज शामिल होते हैं। इन पकवानों का भोग भगवान कृष्ण को लगाया जाता है।
  4. पूजा: गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा की जाती है और भजन-कीर्तन किए जाते हैं। गोवर्धन पर्वत को भोग लगाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी पकवानों को बांटा जाता है।

🌾 गोवर्धन पूजा का महत्व:

यह त्योहार कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • प्रकृति का सम्मान: गोवर्धन पूजा हमें प्रकृति के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देती है। यह हमें सिखाता है कि हमें पहाड़ों, नदियों और पेड़ों का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे जीवन का आधार हैं।
  • गाय का महत्व: यह त्योहार गाय के महत्व को भी दर्शाता है, जिसे हिंदू धर्म में ‘माता’ का दर्जा दिया गया है। गौ-पूजा करने से सुख-समृद्धि आती है और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है।
  • आपसी सद्भाव: अन्नकूट की परंपरा परिवार और समुदाय के लोगों को एक साथ लाती है, जो आपसी प्रेम और सद्भाव को बढ़ाती है।
  • अहंकार पर विजय: यह त्योहार इंद्र के अहंकार पर भगवान कृष्ण की विजय का प्रतीक है, जो हमें यह संदेश देता है कि अहंकार हमेशा पतन का कारण बनता है।

💡 गोवर्धन पूजा से जुड़ी कुछ अन्य बातें:

  • इस दिन अन्नकूट का प्रसाद विशेष रूप से वितरित किया जाता है, जिसे बेहद शुभ माना जाता है।
  • गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • यह पर्व उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों में विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।
  • कई जगहों पर इस दिन कारीगर और मजदूर अपनी मशीनों और औजारों की पूजा भी करते हैं, क्योंकि वे उन्हें जीविका प्रदान करते हैं।

🪷 गोवर्धन पूजा के विभिन्न रूप और क्षेत्रीय परंपराएँ:

गोवर्धन पूजा को भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, जो इसकी सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं।

  • अन्नकूट: इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘अनाज का पहाड़’। इस दिन विभिन्न प्रकार के अनाज, सब्जियां और मिठाई से व्यंजन बनाकर भगवान कृष्ण को भोग लगाया जाता है। यह भगवान इंद्र पर विजय के बाद ब्रजवासियों द्वारा भगवान कृष्ण के लिए बनाए गए पकवानों का प्रतीक है।
  • बलि प्रतिपदा: महाराष्ट्र में इस दिन को ‘बलि प्रतिपदा’ के रूप में मनाया जाता है। यह दानव राजा बलि पर भगवान विष्णु के वामन अवतार की जीत का प्रतीक है। इस दिन पति अपनी पत्नी को उपहार देकर प्यार और सम्मान प्रकट करते हैं।
  • गुजराती नया साल: गुजरात में, गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन होती है और इसे साल के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है। इसे ‘बेस्तु वर्ष’ या नया साल कहते हैं।
  • भाई दूज से जुड़ाव: कई क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा भाई दूज के साथ ही मनाई जाती है, जहाँ बहनें अपने भाइयों के लिए लंबी उम्र की कामना करती हैं।

🐄 गौ-पूजा का विधान और महत्व:

गोवर्धन पूजा का एक अभिन्न अंग गायों की पूजा है। हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और इसे भगवान कृष्ण से भी जोड़ा जाता है।

  • गायों की सजावट: इस दिन गायों को स्नान कराकर, उन्हें फूलों की माला, कपड़े और आभूषणों से सजाया जाता है। उनके सींगों को रंग दिया जाता है और उन पर हल्दी-कुमकुम का तिलक लगाया जाता है।
  • गोबर का महत्व: गोबर को पवित्र माना जाता है और इसे ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि का स्रोत माना जाता है। इसका उपयोग गोवर्धन पर्वत बनाने, घरों को लीपने और शुभ कार्यों में किया जाता है।
  • आध्यात्मिक महत्व: यह माना जाता है कि गौ-पूजा करने से भगवान कृष्ण और देवी लक्ष्मी दोनों प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

🙏 गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक संदेश:

गोवर्धन पूजा हमें कई महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और नैतिक संदेश देती है, जो आज भी प्रासंगिक हैं:

  • प्रकृति का संरक्षण: यह पर्व हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और उसके साथ सामंजस्य बिठाकर रहना चाहिए। यह पर्यावरण संरक्षण का एक महत्वपूर्ण संदेश है।
  • अहंकार का त्याग: इंद्र के अहंकार पर भगवान कृष्ण की जीत हमें यह सिखाती है कि अहंकार का त्याग करना और विनम्रता को अपनाना कितना महत्वपूर्ण है।
  • भक्ति की शक्ति: यह कथा दर्शाती है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति की शक्ति किसी भी बाधा को पार कर सकती है, चाहे वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो।
  • सामुदायिक भावना: अन्नकूट की परंपरा सभी को एक साथ लाकर सामुदायिक भावना और आपसी सहयोग को बढ़ावा देती है।

🍲 अन्नकूट का महत्व और छप्पन भोग:

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन छप्पन भोग लगाने की परंपरा है।

  • क्या है छप्पन भोग?: छप्पन भोग, जिसे ’56 तरह के पकवान’ भी कहते हैं, भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह मान्यता है कि जब इंद्र ने गोकुल में लगातार सात दिनों तक वर्षा की थी, तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों को बचाया था। उस दौरान, कृष्ण ने सात दिनों तक कुछ नहीं खाया था। ब्रजवासियों ने उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक दिन में 8 प्रहर के हिसाब से 7×8=56 पकवान बनाकर उन्हें खिलाए थे।
  • छप्पन भोग का अर्थ: यह न केवल भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम और कृतज्ञता का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रकृति हमें कितनी विविधतापूर्ण और प्रचुर मात्रा में भोजन प्रदान करती है।

🚶‍♂️ गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा:

मथुरा के पास स्थित वास्तविक गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना एक बहुत ही पवित्र कार्य माना जाता है।

  • परिक्रमा का महत्व: यह परिक्रमा भगवान कृष्ण के प्रति भक्तों की गहरी श्रद्धा और विश्वास को दर्शाती है। मान्यता है कि परिक्रमा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है।
  • परिक्रमा पथ: परिक्रमा का पथ लगभग 21 किलोमीटर का है, जिसे भक्त पैदल या दंडवत प्रणाम करते हुए पूरा करते हैं। इस पथ पर कई महत्वपूर्ण मंदिर, कुंड और धार्मिक स्थल स्थित हैं, जो इस यात्रा को और भी आध्यात्मिक बनाते हैं।

🐄 गाय और बैल की पूजा:

गोवर्धन पूजा का केंद्र गाय और बैल हैं। यह त्योहार हमारे कृषि प्रधान समाज में उनकी भूमिका का सम्मान करता है।

  • गाय: गायों को ‘गौ-माता’ के रूप में पूजा जाता है क्योंकि वे हमें दूध, घी, और गोबर जैसे मूल्यवान उत्पाद देती हैं। इस दिन गायों को विशेष भोजन दिया जाता है और उनकी आरती की जाती है।
  • बैल: बैल किसानों के लिए खेत में काम करने और माल ढोने में सहायक होते हैं। इस दिन उनकी भी पूजा करके उनके प्रति सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।
  • गोबर का उपयोग: गोबर को पवित्र और शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता है। इसका उपयोग गोवर्धन पर्वत बनाने, घरों को लीपने और शुभ कार्यों में किया जाता है।

🌿 गोवर्धन पूजा और प्रकृति का गहरा संबंध:

गोवर्धन पूजा सिर्फ एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ हमारे संबंधों का भी एक उत्सव है। भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करवाकर यह संदेश दिया था कि हमें प्रकृति के हर अंग का सम्मान करना चाहिए। यह पर्व हमें बताता है कि जीवन के लिए आवश्यक सभी चीजें, जैसे कि पानी, भोजन और आश्रय, हमें प्रकृति से ही मिलती हैं।

  • पर्यावरण-अनुकूल उत्सव: यह त्योहार हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने का संदेश देता है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करना हमें सिखाता है कि हम अपने उत्सवों को पर्यावरण के अनुकूल कैसे मना सकते हैं।
  • वनस्पति और पशुओं का सम्मान: इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करके हम वनस्पति जगत और पशु-पक्षियों के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं, जो हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।

गोवर्धन पूजा का वैज्ञानिक और व्यावहारिक महत्व:

इस त्योहार का महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और व्यावहारिक भी है।

  • स्वच्छता और स्वास्थ्य: दिवाली के बाद, इस दिन घरों की साफ-सफाई की जाती है। गोबर में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, और इसका उपयोग घर को लीपने से वातावरण स्वच्छ होता है और बीमारियों का खतरा कम होता है।
  • पोषण और अन्न का महत्व: अन्नकूट के पकवानों में ताजी सब्जियां, अनाज और दालें शामिल होती हैं, जो पोषण से भरपूर होती हैं। यह हमें संतुलित आहार के महत्व की याद दिलाता है।
  • सामाजिक एकता: इस दिन सभी लोग मिलकर पकवान बनाते हैं और एक साथ भोजन करते हैं, जिससे परिवार और समुदाय के बीच एकता और प्रेम की भावना मजबूत होती है।

🤔 गोवर्धन पूजा का दार्शनिक और आध्यात्मिक संदेश:

गोवर्धन पूजा का गहरा अर्थ इसकी सतह से परे है। यह हमें जीवन के कुछ सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है:

  • अहंकार का पतन: इंद्र का अहंकार और उसका पतन यह दर्शाता है कि शक्ति और अधिकार का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। भगवान कृष्ण ने विनम्रता और प्रेम की शक्ति से उस अहंकार को हराया। यह हमें सिखाता है कि अहंकार से मुक्ति ही सच्ची विजय है।
  • आत्मनिर्भरता और प्रकृति से जुड़ाव: भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों को इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा, जिसका अर्थ है कि हमें अपनी आत्मनिर्भरता और जीवन के वास्तविक स्रोत (प्रकृति) को समझना चाहिए। हमें उन चीजों का सम्मान करना चाहिए जो हमें प्रत्यक्ष रूप से जीवन देती हैं।
  • भक्ति की शक्ति: यह कथा यह भी सिखाती है कि सच्ची और निस्वार्थ भक्ति में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी भी संकट से बचा सकती है। भक्तों का भगवान पर विश्वास ही वह पर्वत बना जो उन्हें भारी वर्षा से बचाया।
  • समर्पण और कृतज्ञता: छप्पन भोग की परंपरा भगवान के प्रति समर्पण और उनकी कृपा के लिए कृतज्ञता व्यक्त करने का एक तरीका है। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें जीवन में मिली सभी चीजों के लिए आभारी होना चाहिए।
  • समुदाय और प्रेम: गोवर्धन पूजा एक सामुदायिक उत्सव है। यह पर्व परिवार और दोस्तों को एक साथ लाता है, जिससे आपसी प्रेम और सौहार्द बढ़ता है। यह हमें यह संदेश देता है कि हमारी सच्ची शक्ति हमारे समुदाय में निहित है।

गोवर्धन पूजा सिर्फ एक दिन का त्योहार नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की एक कला है जो हमें प्रकृति से प्रेम करना, विनम्र रहना, दूसरों का सम्मान करना और भक्ति में लीन रहना सिखाती है।

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