नरक चतुर्दशी 2025: तिथि, महत्व और पूजा विधि

नरक चतुर्दशी 2025
नरक चतुर्दशी
20
अक्टूबर 2025
सोमवार
नरक चतुर्दशी और दीप
नरक चतुर्दशी के दीये
अभ्यंग स्नान मुहूर्त: सुबह 05:07 बजे से 06:28 बजे तक

नरक चतुर्दशी पर अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व है। यह स्नान सूर्योदय से पहले करना शुभ माना जाता है। इस दिन यमराज के लिए दीपदान भी किया जाता है, जिससे अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।

नरक चतुर्दशी, जिसे ‘छोटी दिवाली’, ‘रूप चौदस’ और ‘काली चौदस’ के नाम से भी जाना जाता है, दिवाली के पाँच दिवसीय महापर्व का दूसरा दिन है। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी मुख्य रूप से बुराई पर अच्छाई की जीत और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। इस दिन घर को साफ-सुथरा कर दीपों से रोशन किया जाता है और यमराज की पूजा की जाती है ताकि अकाल मृत्यु का भय दूर हो सके।

नरक चतुर्दशी का महत्व:

  • पाप से मुक्ति: इस दिन यमराज और भगवान कृष्ण की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और नरक में जाने से बचा जा सकता है।
  • सौंदर्य और रूप की प्राप्ति: इसे रूप चौदस भी कहते हैं। इस दिन उबटन लगाकर स्नान करने से शारीरिक सौंदर्य और चमक बढ़ती है।
  • अकाल मृत्यु का भय दूर: शाम के समय यमराज के लिए दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
  • नकारात्मक ऊर्जा का नाश: घर के कोने-कोने में दीये जलाने से नकारात्मकता दूर होती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

📜 नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा:

नरक चतुर्दशी से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा भगवान कृष्ण और नरकासुर की है। प्राचीन समय में, नरकासुर नामक एक शक्तिशाली असुर ने अपने बल से तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था। उसने 16,000 कन्याओं का अपहरण कर उन्हें अपनी कैद में डाल लिया था और देवताओं के साथ-साथ आम जनता को भी परेशान कर रहा था। उसकी क्रूरता से परेशान होकर, सभी ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की।

भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर पर आक्रमण किया। क्योंकि नरकासुर को एक स्त्री के हाथों ही मरने का श्राप था, इसलिए देवी सत्यभामा ने स्वयं उस असुर का वध किया। नरकासुर के वध के बाद, भगवान कृष्ण ने उन 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया और उन्हें समाज में सम्मान दिलाने के लिए उनसे विवाह किया। इस विजय के उपलक्ष्य में, लोगों ने खुशी से अपने घरों में दीये जलाए। यह घटना कार्तिक मास की चतुर्दशी को हुई, तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाने लगा।

इसके अलावा, एक अन्य कथा यमराज से संबंधित है। इस दिन यम के लिए दीपदान किया जाता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति नरक चतुर्दशी की शाम को दक्षिण दिशा में यम के नाम का दीपक जलाता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता।

🙏 नरक चतुर्दशी के अनुष्ठान और पूजा विधि:

नरक चतुर्दशी का पालन अत्यंत श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है। यहाँ इसकी मुख्य पूजा विधि दी गई है:

  1. सुबह का अभ्यंग स्नान: नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना शुभ माना जाता है। इस स्नान में तिल के तेल और उबटन का प्रयोग किया जाता है। इसे अभ्यंग स्नान कहते हैं।
  2. भगवान कृष्ण की पूजा: स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनकर भगवान कृष्ण और माँ लक्ष्मी की पूजा करें। उन्हें फूल, चंदन, और प्रसाद अर्पित करें।
  3. यमराज के लिए दीपदान: शाम के समय, घर के मुख्य द्वार पर आटे से बना एक चौमुखा दीपक (चार मुख वाला) जलाएँ। इस दीपक को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके रखें। यह दीपक यमराज के लिए समर्पित होता है।
  4. घर की सफाई और सजावट: इस दिन घर की अच्छी तरह से सफाई करें। मान्यता है कि नरक चतुर्दशी को घर में गंदगी नहीं होनी चाहिए। सफाई के बाद घर को दीयों, मोमबत्तियों और रंगोली से सजाएँ।
  5. हनुमान जी की पूजा: कुछ स्थानों पर इस दिन हनुमान जी की भी पूजा की जाती है, क्योंकि वे नरक चतुर्दशी की तिथि को ही जन्मे थे।

💡 नरक चतुर्दशी से जुड़ी कुछ अन्य बातें:

नरक चतुर्दशी के अन्य नाम:

  • छोटी दिवाली: यह दिवाली के ठीक एक दिन पहले आती है, इसलिए इसे छोटी दिवाली कहते हैं। इस दिन दिवाली की तैयारियों का अंतिम चरण पूरा होता है।
  • रूप चौदस: इस दिन उबटन और औषधीय स्नान से सौंदर्य प्राप्त होता है, इसलिए इसे रूप चौदस भी कहा जाता है।
  • काली चौदस: पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे पूर्वी राज्यों में इसे काली चौदस कहते हैं, जहाँ इस दिन माँ काली की विशेष पूजा की जाती है।

दिवाली से जुड़े अन्य पर्व:

नरक चतुर्दशी, दिवाली के पाँच दिवसीय महोत्सव का हिस्सा है। ये पाँच दिन इस प्रकार हैं:

  • धनतेरस (पहला दिन): धन और समृद्धि का पर्व। इस दिन नई वस्तुओं की खरीदारी शुभ मानी जाती है।
  • नरक चतुर्दशी (दूसरा दिन): छोटी दिवाली। नरकासुर पर भगवान कृष्ण की विजय का प्रतीक।
  • दिवाली (तीसरा दिन): मुख्य पर्व। माँ लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है और दीये जलाए जाते हैं।
  • गोवर्धन पूजा (चौथा दिन): भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
  • भाई दूज (पाँचवाँ दिन): भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का पर्व।

🪔 नरक चतुर्दशी पर दीपदान का महत्व और प्रकार

नरक चतुर्दशी पर दीपदान का विशेष महत्व होता है। यह अंधकार को दूर करने और मृत्यु के देवता यमराज को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।

  • यमराज के लिए दीपक: घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक चौमुखा (चार बत्ती वाला) दीपक जलाया जाता है। यह दीपक सरसों के तेल का होता है। मान्यता है कि इससे अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
  • घर के लिए दीपक: इसके अलावा, घर के अलग-अलग हिस्सों जैसे रसोईघर, पानी के स्थान, पूजा घर और आंगन में भी दीपक जलाए जाते हैं। ये दीपक नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता लाते हैं।
  • चौदह दीये: कई जगहों पर 14 दीये जलाने की भी परंपरा है, जो यमलोक के चौदह नरकों से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।

🎵 नरक चतुर्दशी पर यमराज की आरती

इस दिन यमराज की आरती करने का भी विधान है। यहाँ एक सरल आरती दी गई है:

ओम जय यम देव हरे, स्वामी जय यम देव हरे।

तुम हो सर्व के स्वामी, तुम हो सर्व के हरे॥ ओम जय यम देव हरे।

जो भी भक्ति से ध्यावे, उसके कष्ट मिटावे।

जन्म-मरण से मुक्ति, प्रभु तुम ही दिलावे॥ ओम जय यम देव हरे।

तुम ही धर्म के स्वामी, तुम ही कर्म के फल।

तुम ही सबका जीवन, तुम ही सबका अंत॥ ओम जय यम देव हरे।

🐒 नरक चतुर्दशी पर हनुमान जी की पूजा

नरक चतुर्दशी को हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि इस तिथि को ही हनुमान जी का जन्म हुआ था। इसलिए, इस दिन हनुमान जी की पूजा करना भी बहुत शुभ माना जाता है।

  • पूजा विधि: हनुमान जी की पूजा करने के लिए सिंदूर, चमेली का तेल, लाल फूल, और लड्डू का भोग लगाया जाता है। हनुमान चालीसा का पाठ करना अत्यंत फलदायी होता है।
  • महत्व: हनुमान जी की पूजा करने से व्यक्ति को बल, बुद्धि और ज्ञान प्राप्त होता है। यह सभी प्रकार के भय और संकटों से मुक्ति दिलाती है।

💧 अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व

नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले किया जाने वाला अभ्यंग स्नान न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि इसका वैज्ञानिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व भी है।

  • शरीर को शुद्ध करना: इस स्नान के लिए तिल के तेल से शरीर की मालिश की जाती है। यह तेल शरीर से सभी गंदगी, धूल और अशुद्धियों को हटाकर त्वचा को चमकदार और स्वस्थ बनाता है।
  • शुभता का प्रतीक: मान्यता है कि इस दिन अभ्यंग स्नान करने से व्यक्ति नरक में जाने से बच जाता है। यह स्नान शरीर और आत्मा दोनों की शुद्धि का प्रतीक है।
  • सुगंधित उबटन: स्नान के लिए सुगंधित उबटन का प्रयोग होता है, जो शरीर को ताजगी और नई ऊर्जा देता है।

🧐 नरक चतुर्दशी के दिन क्या करें और क्या न करें

इस शुभ दिन पर, कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए:

क्या करें:

  • सूर्योदय से पहले उठकर अभ्यंग स्नान करें।
  • घर और उसके आसपास की साफ-सफाई करें।
  • शाम को यमराज के लिए दीपदान करें।
  • घर में दीये जलाकर रोशनी करें।
  • हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • जरूरतमंदों को दान दें।

क्या न करें:

  • सूर्योदय के बाद स्नान न करें।
  • घर में अंधेरा न रखें।
  • किसी से झगड़ा न करें और न ही किसी का अनादर करें।
  • मांस और मदिरा जैसे तामसिक भोजन का सेवन न करें।

🌏 नरक चतुर्दशी का अन्य क्षेत्रों में महत्व

यह पर्व भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।

  • महाराष्ट्र और गोवा: यहाँ इसे ‘नरक चतुर्दशी’ के रूप में मनाया जाता है। लोग सुबह-सुबह स्नान करते हैं और ‘नरकासुर’ के पुतले जलाते हैं।
  • पश्चिम बंगाल: यहाँ इस दिन ‘काली चौदस’ या ‘काली पूजा’ का विशेष महत्व है, जहाँ माँ काली की पूजा की जाती है।
  • दक्षिण भारत: कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में इसे ‘दिवाली हब्बा’ के रूप में मनाते हैं। यहाँ भी सुबह के समय तेल स्नान का महत्व है।
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